Maharashtra News: महाराष्ट्र में BJP के लिए अलार्म हैं कर्नाटक के नतीजे! MVA के चलते विधानसभा की राह नहीं आसान h3>
मुंबई: कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजों को लेकर महाराष्ट्र में सत्ता की भागीदार बीजेपी के लिए चिंतित होना स्वाभाविक है। उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस बात पर संतोष व्यक्त किया है कि कर्नाटक में बीजेपी ने 2018 के पिछले विधानसभा चुनाव में मिले 36.41% वोट कमोबेश सुरक्षित रखे हैं। ताजा चुनाव में कर्नाटक में बीजेपी को लगभग इतने ही 36% वोट मिले हैं। यह अलग बात है कि लगभग आधे प्रतिशत वोट की कमी से कर्नाटक विधानसभा में उसकी 104 सीटें घटकर 65 रह जाएंगी। समस्या यह है कि बीजेपी की सहयोगी पार्टी जनता दल-सेक्यूलर (जेडी-एस) का वोट प्रतिशत 20.61% से घटकर लगभग 13.3% रह गया है।
फडणवीस ने नागपुर में पत्रकारों के सामने विश्लेषण करते हुए बताया कि जेडी-एस के पांच प्रतिशत वोट कांग्रेस की तरफ सरक जाने से सत्ता का उलटफेर हो गया है। कैमरे के सामने तो वे चिंतित नहीं नजर आ रहे हैं। यह सच्चाई भी है कि एक जगह के चुनाव जरूरी नहीं कि दूसरे राज्य को प्रभावित करें, मगर कर्नाटक की स्थिति अगर कहीं महाराष्ट्र में दोहराई जाती है तो परेशानी का सबब बन सकती है।
महाराष्ट्र में बीजेपी उतनी मजबूत नहीं दिख रही
महाराष्ट्र में 2019 के लोकसभा चुनाव और इसके कुछ ही महीनों बाद हुए राज्य के विधानसभा चुनाव में मिले वोट प्रतिशत पर गौर करें। तब लोकसभा में बीजेपी को महाराष्ट्र में अपने दम पर 27.83% वोट मिले थे। राज्य के विधानसभा चुनाव में यह आंकड़ा कुछ घटकर 25.75% रह गया था। उस समय उसके सहयोगी के तौर पर चुनाव लड़ रही अविभाजित शिवसेना को पिछले लोकसभा चुनाव में 23.5% और विधानसभा चुनाव में 16.41% वोट मिले थे। दोनों के वोट जुड़कर ही कमाल हुआ था। इसी की बदौलत दोनों ने पहले महाराष्ट्र में लोकसभा की 48 सीटों में 41 सीटें जीत ली थीं। बाद में साथ लड़कर महाराष्ट्र विधानसभा की 288 सीटों में बीजेपी ने 105 सीटें जीतीं और शिवसेना ने 56 सीटों पर जीत हासिल की थीं। इस सच से इनकार नहीं किया जा सकता कि कर्नाटक की तुलना में महाराष्ट्र के चुनावी पटल पर अकेले बीजेपी उतनी मजबूत नहीं दिख रही।
शिवसेना का एक हिस्सा ही उसके साथ रह गया है, ऐसे में यथास्थिति बनाए रखने से तो कतई काम नहीं चल सकता। महाराष्ट्र में पुराना परफॉर्मेंस दोहराने के लिए उसे अपने वोट प्रतिशत को लगभग दो गुना करना होगा। इस बार बीजेपी को यह सब एकनाथ शिंदे की शिवसेना और रामदास आठवले के बल को लेकर साधना होगा। इसे कतई आसान काम नहीं कहा जा सकता।
…तो बीजेपी की राह हो सकती है आसान
अब दूसरी तरफ, उद्धव ठाकरे के जुड़ जाने के बाद कांग्रेस और एनसीपी जमीनी तौर पर पहले से मजबूत होते दिखाई देने लगे हैं। तभी कर्नाटक के नतीजों से उत्साहित शरद पवार यह खुलकर बोल रहे हैं कि अब ‘मोदी है तो मुमकिन है’ का जादू काम नहीं कर रहा। आपसी मतभेदों से शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस का गठबंधन महाराष्ट्र में कहीं टूट जाए, तो निश्चित तौर पर बीजेपी की राह आसान हो सकती है। अब तक तो ऐसा नहीं हुआ है। जिला परिषद चुनाव से लेकर विधानसभा के उपचुनावों तक तीनों पार्टियां मिलकर बीजेपी पर सरस पड़ती रही हैं। जुलाई महीने में शिंदे-फडणवीस सरकार को सत्ता पर आए एक साल हो जाएगा।
विकास कार्यों, जनता से जुड़ाव और फटाफट फैसले लेने के मामले में यह सरकार ‘कोविड से घिरी’ अपनी पूर्ववर्ती उद्धव ठाकरे सरकार से बेहतर काम करती दिखी है, यह तो विपक्ष के नेता भी अकेले में मानते हैं। मगर राजनीति के चुनावी गणित में इसका असर अभी दिखाई देना बाकी है। कर्नाटक के नतीजों को अगर अलार्म मान लिया जाए, तो बीजेपी के पास महाराष्ट्र में चमत्कार दिखाने के लिए सालभर से कम समय रह गया है।
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फडणवीस ने नागपुर में पत्रकारों के सामने विश्लेषण करते हुए बताया कि जेडी-एस के पांच प्रतिशत वोट कांग्रेस की तरफ सरक जाने से सत्ता का उलटफेर हो गया है। कैमरे के सामने तो वे चिंतित नहीं नजर आ रहे हैं। यह सच्चाई भी है कि एक जगह के चुनाव जरूरी नहीं कि दूसरे राज्य को प्रभावित करें, मगर कर्नाटक की स्थिति अगर कहीं महाराष्ट्र में दोहराई जाती है तो परेशानी का सबब बन सकती है।
महाराष्ट्र में बीजेपी उतनी मजबूत नहीं दिख रही
महाराष्ट्र में 2019 के लोकसभा चुनाव और इसके कुछ ही महीनों बाद हुए राज्य के विधानसभा चुनाव में मिले वोट प्रतिशत पर गौर करें। तब लोकसभा में बीजेपी को महाराष्ट्र में अपने दम पर 27.83% वोट मिले थे। राज्य के विधानसभा चुनाव में यह आंकड़ा कुछ घटकर 25.75% रह गया था। उस समय उसके सहयोगी के तौर पर चुनाव लड़ रही अविभाजित शिवसेना को पिछले लोकसभा चुनाव में 23.5% और विधानसभा चुनाव में 16.41% वोट मिले थे। दोनों के वोट जुड़कर ही कमाल हुआ था। इसी की बदौलत दोनों ने पहले महाराष्ट्र में लोकसभा की 48 सीटों में 41 सीटें जीत ली थीं। बाद में साथ लड़कर महाराष्ट्र विधानसभा की 288 सीटों में बीजेपी ने 105 सीटें जीतीं और शिवसेना ने 56 सीटों पर जीत हासिल की थीं। इस सच से इनकार नहीं किया जा सकता कि कर्नाटक की तुलना में महाराष्ट्र के चुनावी पटल पर अकेले बीजेपी उतनी मजबूत नहीं दिख रही।
शिवसेना का एक हिस्सा ही उसके साथ रह गया है, ऐसे में यथास्थिति बनाए रखने से तो कतई काम नहीं चल सकता। महाराष्ट्र में पुराना परफॉर्मेंस दोहराने के लिए उसे अपने वोट प्रतिशत को लगभग दो गुना करना होगा। इस बार बीजेपी को यह सब एकनाथ शिंदे की शिवसेना और रामदास आठवले के बल को लेकर साधना होगा। इसे कतई आसान काम नहीं कहा जा सकता।
…तो बीजेपी की राह हो सकती है आसान
अब दूसरी तरफ, उद्धव ठाकरे के जुड़ जाने के बाद कांग्रेस और एनसीपी जमीनी तौर पर पहले से मजबूत होते दिखाई देने लगे हैं। तभी कर्नाटक के नतीजों से उत्साहित शरद पवार यह खुलकर बोल रहे हैं कि अब ‘मोदी है तो मुमकिन है’ का जादू काम नहीं कर रहा। आपसी मतभेदों से शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस का गठबंधन महाराष्ट्र में कहीं टूट जाए, तो निश्चित तौर पर बीजेपी की राह आसान हो सकती है। अब तक तो ऐसा नहीं हुआ है। जिला परिषद चुनाव से लेकर विधानसभा के उपचुनावों तक तीनों पार्टियां मिलकर बीजेपी पर सरस पड़ती रही हैं। जुलाई महीने में शिंदे-फडणवीस सरकार को सत्ता पर आए एक साल हो जाएगा।
विकास कार्यों, जनता से जुड़ाव और फटाफट फैसले लेने के मामले में यह सरकार ‘कोविड से घिरी’ अपनी पूर्ववर्ती उद्धव ठाकरे सरकार से बेहतर काम करती दिखी है, यह तो विपक्ष के नेता भी अकेले में मानते हैं। मगर राजनीति के चुनावी गणित में इसका असर अभी दिखाई देना बाकी है। कर्नाटक के नतीजों को अगर अलार्म मान लिया जाए, तो बीजेपी के पास महाराष्ट्र में चमत्कार दिखाने के लिए सालभर से कम समय रह गया है।
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