Maharashtra Crisis Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट में बाजी हार रहे थे शिंदे, लेकिन जानिए कैसे उद्धव के ‘उतावलेपन’ ने सीन बदल दिया

7
Maharashtra Crisis Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट में बाजी हार रहे थे शिंदे, लेकिन जानिए कैसे उद्धव के ‘उतावलेपन’ ने सीन बदल दिया

Maharashtra Crisis Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट में बाजी हार रहे थे शिंदे, लेकिन जानिए कैसे उद्धव के ‘उतावलेपन’ ने सीन बदल दिया

मुंबई: सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने जब गुरुवार दोपहर 16 विधायकों की अयोग्यता पर फैसला सुनाना शुरू किया, तो शिंदे गुट की धीरे-धीरे धड़कनें बढ़ती जा रही थीं। देश की सबसे बड़ी अदालत की तरफ से जो टिप्पणियां आ रही थीं, वह शिंदे गुट के खिलाफ जा रही थीं। राज्यपाल की भूमिका हो या फिर स्पीकर का रोल, कोर्ट का रुख सख्त था। एक समय ऐसा लग रहा था कि पांच सदस्यीय संविधान पीठ का फैसला शिंदे की कुर्सी खतरे में डालने वाला है। लेकिन आखिर में एक बात ने पूरा सीन पलट कर रख दिया। यह था उद्धव ठाकरे का मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने का फैसला। कोर्ट ने कहा कि उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री के रूप में बहाल नहीं किया जा सकता क्योंकि उन्होंने सदन में बहुमत साबित होने से पहले ही इस्तीफा दे दिया था। इसके साथ ही कहा कि राज्यपाल ने ऐसी स्थिति में सदन में सबसे बड़े दल भारतीय जनता पार्टी के दावा पेश करने पर एकनाथ शिंदे को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करके सही फैसला किया।राज्यपाल को सुप्रीम कोर्ट की नसीहत
सुप्रीम कोर्ट ने शिंदे गुट के भरत गोगावाले को शिवसेना पार्टी का सचेतक नियुक्त करने के विधानसभा अध्यक्ष के फैसले को गैरकानूनी बताया। कोर्ट ने कहा कि इस तरह के मुद्दों पर अध्ययन की जरूरत है कि क्या विधानसभा अध्यक्ष को हटाने के प्रस्ताव से उनके अयोग्यता नोटिस जारी करने के अधिकार सीमित हो जाएंगे या नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि महाराष्ट्र के राज्यपाल का निर्णय भारत के संविधान के अनुसार नहीं था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल के पास ऐसा कोई संचार नहीं था जिससे यह संकेत मिले कि असंतुष्ट विधायक सरकार से समर्थन वापस लेना चाहते हैं। राज्यपाल ने शिवसेना के विधायकों के एक गुट के प्रस्ताव पर भरोसा करके यह निष्कर्ष निकाला कि उद्धव ठाकरे अधिकांश विधायकों का समर्थन खो चुके हैं। अर्जी में शिंदे गुट के 16 विधायकों को अयोग्य ठहराने की मांग की गई थी। महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष राहुल नारवेकर ने कहा कि मौजूदा सरकार के पास बहुमत है, चाहे कोई भी फैसला आए। नारवेकर ने कहा था कि विधायकों की अयोग्यता के संबंध में फैसला विधानसभा अध्यक्ष का विशेषाधिकार है।

‘आंतरिक पार्टी के विवादों को हल करने के लिए फ्लोर टेस्ट का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। न तो संविधान और न ही कानून राज्यपाल को राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश करने और अंतर-पार्टी या अंतर-पार्टी विवादों में भूमिका निभाने का अधिकार देता है।’

सुप्रीम कोर्ट

Supreme Court: इस्तीफा न दिया होता तो… फिर सीएम बन जाते उद्धव ठाकरे! शिवसेना विधायकों के केस में ‘सुप्रीम’ टिप्पणी
नीचे क्लिक कर पढ़िए सुप्रीम कोर्ट का शिवसेना विधायकों के मामले में पूरा फैसला

शिवसेना विधायकों के मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला

ठाकरे ग्रुप की ओर से दलील

उद्धव ठाकरे ग्रुप की ओर से पेश कपिल सिब्बल ने दलील दी कि महाराष्ट्र के तत्कालीन राज्यपाल बी. एस. कोशियारी ने जून 2022 में तत्कालीन CM उद्धव ठाकरे को फ्लोर टेस्ट का जो आदेश दिया था वह लोकतंत्र के लिए खतरनाक है। अगर आदेश को निरस्त नहीं किया गया तो लोकतंत्र खतरे में पड़ेगा। इससे पहले चीफ जस्टिस ने कहा था कि सत्तारूढ़ दल के विधायकों में मतभेद के आधार पर बहुमत साबित करने को कहना एक निर्वाचित सरकार के गिरने का कारण बन सकता है। राज्यपाल अपने दफ्तर का इस्तेमाल किसी खास नतीजे के लिए नहीं होने दे सकते। सुनवाई के आखिरी दिन कपिल सिब्बल ने दलील दी कि लोकतंत्र के भविष्य को तय करने का यह समय है। हम इस बात को लेकर निश्चित हैं कि इस कोर्ट के दखल के बिना हमारा लोकतंत्र खतरे में है और कोई भी चुनी हुई सरकार नहीं बच पाएगी। हम अदालत से उम्मीद करते हैं कि वह हमारी दलील को स्वीकार करे। राज्यपाल के फैसले को खारिज करे।

Uddhav Thackeray vs Eknath Shinde: सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तुरंत बाद सामने आए संजय राउत, बोले- पहले ही कहा था ये सरकार असंवैधानिक

गोगावाले (शिंदे समूह) को शिवसेना पार्टी के मुख्य सचेतक के रूप में नियुक्त करने का स्पीकर का फैसला अवैध था। स्पीकर को राजनीतिक दल के नियुक्त व्हिप को ही मान्यता देनी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट बेंच

navbharat times -‘NCP को उत्तराधिकारी नहीं दे पाए शरद पवार’, शिवसेना के मुखपत्र में राजनीति के चाणक्य पर तंज, टूट की राह पर MVA?

शिंदे ग्रुप की ओर से दलील

शिंदे ग्रुप के वकील ने दलील दी कि जब स्पीकर या डिप्टी स्पीकर के खिलाफ उन्हें हटाए जाने का प्रस्ताव लंबित हो तो वह फिर किसी विधायक को अयोग्य ठहराए जाने की कार्यवाही नहीं कर सकते हैं। शिंदे ग्रुप की ओर से सीनियर एडवोकेट हरीश साल्वे और एन. के. कौल पेश हुए और कहा कि नबाम रेबिया केस को दोबारा देखने की जररूत नहीं है। साथ ही कहा कि यह मामला अब सिर्फ अकेडमिक हो चुका है क्योंकि उद्धव ठाकरे का इस्तीफा हो चुका है। उन्होंने तब इस्तीफा दे दिया था जब उन्हें लगा था कि वह फ्लोर टेस्ट पास नहीं कर पाएंगे। राज्यपाल की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए थे। उन्होंने कहा कि उस समय राज्यपाल के पास कई चीजें थीं। इनमें शिवसेना के 34 विधायकों के हस्ताक्षर वाला पत्र, निर्दलीय विधायकों का तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे सरकार से समर्थन वापस लेने का पत्र शामिल था। इसके अलावा नेता प्रतिपक्ष ने सदन में बहुमत साबित करने की मांग भी की थी।

संवैधानिक बेंच के सामने थे ये अहम सवाल

– स्पीकर को हटाने के लिए अगर नोटिस लंबित है तो क्या उसे अयोग्यता कार्रवाई करने से रोका जा सकता है
– सुप्रीम कोर्ट में एकनाथ शिंदे समेत अन्य 15 विधायकों की ओर से अर्जी दाखिल कर उन्हें डिप्टी स्पीकर द्वारा अयोग्यता नोटिस दिए जाने को चुनौती दी हुई है।
– शिवसेना नेता और उद्धव ग्रुप द्वारा नियुक्त पार्टी चीफ विप सुनील प्रभु ने गवर्नर के फ्लोर टेस्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
– शिवसेना के नए स्पीकर द्वारा शिंदे ग्रुप के नामित नए चीफ विप को मान्यता दिए जाने को उद्धव गुट ने चुनौती दी है।
– एकनाथ शिंदे को सीएम बनाए जाने के खिलाफ उद्धव गुट ने चुनौती दी है।
– शिंदे गुट को पार्टी का नाम-चिह्न देने के फैसले को भी चुनौती दी गई है।

राजनीति की और खबर देखने के लिए यहाँ क्लिक करे – राजनीति
News