जानिए, कैसे 2019 में बीजेपी की जीत हुई पक्की?

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बीजेपी का अश्वमेध यज्ञ रूपी घोड़ा यानि की अमित शाह मोदी जी के रथ के विजय रथ को लेकर पूरे भारत में घूम रहे हैं और कोई उनको रोकने में समर्थन नहीं हो पा रहा है, ऐसे में बिहार के महारथी लालू यादव 27 अगस्त, को भाजपा भगाओ रैली नामक यज्ञ करेंगे। जहां उन्होंने पूरे देश के नए और पूराने सत्ताहीन महारथियों को आमंत्रित किया है। अब देखने वाली बात ये है कि कौन-कौन उनके इस यज्ञ में आहूति डालेंगे। लेकिन उससे पहले ये देखते हैं कि उस यज्ञ में बिघ्न कौन डाल रहा है, और कैसे सुनिश्चित हो रहा है 2019 में बीजेपी की जीत।

विघ्नकारक बनीं मायावती

अभी कुछ दिन पहले ही मायावती ने राज्यसभा से ये कहते हुए इस्तीफा दिया कि मुझे वहां बोलने नहीं दिया जा रहा है। उनके ऐसा करते ही लालू जी ने बिहार में हूंकार भरा कि हम मायावती को बिहार से राज्यसभा में भेजेंगे। तो सभी अचंभित हो गए और राजनीति के नए खिलाड़ी तो लालू जी के इस कदम से फुले नहीं समा रहे थे। सभी यही कह रहे थे कि मायावती और लालू को साथ आने के बाद लालू को तो बिहार में मजबूती मिलेगी ही साथ ही मायावती का कद भी बढ़ेगा और बीजेपी की राह 2019 में मुश्किल हो जाएगी। इसी ओर एक कदम बढ़ाते हुए मायावती ने रविवार, 20 अगस्त, को विपक्षी एकता का पोस्टर जारी कर दिया, जिसमें उनके धुर विरोधी सपा के नए नेता अखिलेश भी दिखे थे। बसपा ने ये फोटो अपने ट्विटर अकाऊंट पर शेयर किया था, लेकिन इसको लेकर उन्हें विरोध का सामना करना पड़ा। लोग उनकी जमकर आलोचना करने लेगे उसके बाद उन्होंने ट्विटर से ये पोस्टर हटा लिया। लेकिन अब बसपा कह रही है कि वो तस्वीर फर्जी थी।

सोमवार को मायावती ने ये बयान दिया कि वो लालू की 27 अगस्त, वाली रैली में नहीं जा रही हैं। सवाल ये कि बसपा सुप्रिमो मायावती ने अपने कदम इस तरह से क्यों पीछे खींच लिए? इसके पीछे ये कारण है कि मायावती को ये समझ में आ गया है कि लालू की रैली में जाने से बिहार में दलित और पिछड़े वोटर के रूप में लालू के वोटर बढ़ जाएंगे। लेकिन हमारा (मायावती) यूपी में नुकसान हो जाएगा। क्योंकि अखिलेश यादव जिस जाति से आते हैं, उसे तथाकथित रूप से दलितों का नया शोषक भी माना जाता है और उनके बीच, आए दिन संघर्ष भी होते रहते हैं। इससे हमारा (बसपा) वोटर बिगड़ सकता है। यही कारण है कि मायावती ने विपक्ष एकता रैली में शामिल होने से इनकार कर दिया और बन गईं विपक्ष एकता रूपी यज्ञ में विघ्नकारक।

भाजपा का मर्ग प्रशस्त

नीतीश के बाद मायावती के इस कदम से विपक्ष को एक बड़ा झटका ही नहीं लगा बल्कि भाजपा की के अश्वमेध यज्ञ के इस घोड़े के सामने एक ऐसी वीरांगना नत मस्तक हो गई जिसे भारत में दलितों और पिछड़ो के नेता के रूप में जाना जाता है। हालांकि आजकल इनके हालात कुछ ठीक नहीं हैं फिर भी मरा हाथी भी सौ शेर के बराबर होता है। वहीं बात करें और विपक्षी नेताओं की तो अगर ममता कांग्रेस के साथ आती हैं तो लेफ्ट के नेता कांग्रेस से दूर हो जाएंगे। बीजेपी ने कुछ राज्यों को छोड़कर दक्षिण में भी अपनी पकड़ मजबूत की है, जिस तरह से AIADMK के दो धड़ों के विलय में भी अमित शाह और मोदी की ही भूमिका बताई जा रही है। उसे देखते हुए कुछ राज्यों को छोड़कर बीजेपी गठबंधन के सहारे ही सही दक्षिण भारत के राज्यों में अच्छा कर सकती है। और बाकी के राज्यों और उनके नेताओं को देखा जाए तो उन्हें नरेन्द्र मोदी और भाजपा विरोध से कोई मतलब नहीं है। उन्हें बस अपनी सत्ता चाहिए। इन सभी समीकरणों को देखते हुए तो यही कहा जा सकता है कि मोदी का 2019 में पुन: प्रधानमंत्री बनना तो तय है।