Laal Singh Chaddha Movie Review: आमिर खान के साथ एक ‘स्लो फिलॉसफिकल जर्नी’ पर लेकर जाती है फिल्म
मूवी रिव्यू: लाल सिंह चड्ढा
स्टार कास्ट: आमिर खान, करीना कपूर, मोना सिंह, नागा चैतन्य, मानव विज आदि
डायरेक्टर: अद्वैत चंदन
स्टार रेटिंग: 3.5
Laal Singh Chaddha Movie Review: लाल सिंह चड्ढा हो या रक्षाबंधन, इस हफ्ते रिलीज हुई दोनों मूवीज के साथ खास बात ये है कि दोनों की ही शुरुआत गोलगप्पे के सीन से होती है. एक में गोलगप्पे के साथ बेटा जुड़ा है, तो दूसरी में मम्मी की फिलॉसफी गोलगप्पे से जुड़ी है. आमिर खान (Aamir Khan) के साथ ये माना जाता है कि उनकी मूवी काफी एंटरटेनिंग (Entertaining movie) होती है, वहीं कहीं ना कहीं वो कुछ ऐसा विवाद भी छोड़ जाती है, जो बाद में लोगों को लगता है कि ये जानबूझकर किया गया था. खासतौर पर मजहब या धर्म को लेकर उनकी सोच, PK पूरी तरह उसी पर फोकस थी, अछूते वो लाल सिंह चड्ढा में भी नहीं रह पाए, लेकिन इसमें केवल छूकर निकल गए हैं.
जिसने भी ‘फॉरेस्ट गम्प’ देखी होगी, वो हर सीन की उससे तुलना करेंगे, लेकिन बाकियों को लगेगा कि आमिर आइडिया वाकई में अनोखा लेकर आए हैं. हालांकि इस मूवी में आमिर की ही मूवी ‘पीके’ का असर दिखता है, उसमें हीरो पृथ्वी से बाहर का था, सो उसे कुछ पता नहीं था, इसमें हीरो मंदबुद्धि है सो उसको भी कम ही पता होता है. ऐसे में लौ टफिर कर बात मजहब पर आनी थी, सो इसमें भी थोड़ी ही सही लेकिन आई तो है. हालांकि वो ना भी आती तो भी आमिर खान की मेहनत इस मूवी में साफ तौर पर दिखेगी. लेकिन ये मेहनत आपको एक मंदबुद्धि किरदार की तरह साफ और मासूम दिल से दुनिया को फिलॉसफिकल नजर से देखने की होगी, जो ज्यादातर लोगों को अच्छा ही मानता है.
कहानी में कई पेंच
कहानी एक ऐसे लड़के लाल सिंह चड्ढढा की है, जिसके पास केवल मां है, पिता नहीं, कहां हैं पता नहीं, मां (मोना सिंह) अपने पिता यानी लाल सिंह के नाना की पुश्तैनी हवेली में रहती है और उन्हीं के छोड़े खेतों में खेती कर खर्च चलाती है. बेटा लाल सिंह चड्ढा सामान्य नहीं, सब लोग उसे मंदबुद्धि कहते हैं, चलने में भी दिक्कत थी. जिसके चलते उसका एडमिशन भी मुश्किल से होता है. लाल सिंह (आमिर खान) की एक ही दोस्त बनती है रूपा (करीना कपूर). लेकिन लड़कों से बचकर भागते वक्त लाल सिंह की पैरों की परेशानी खत्म हो जाती है और धीरे-धीरे वो रेसर बन जाता है, नाना, परनाना आर्मी में थे, सो वो भी आर्मी में भर्ती हो जाता है. जहां उसका एक ही दोस्त बनता है बाला (नागा चैतन्य), जो कुछ-कुछ उसी की तरह का था. दोनों तय करते हैं कि आर्मी छोड़ने के बाद बाला का पुश्तैनी धंधा यानी चड्ढी बनियान की फैक्ट्री लगाएंगे.
बीच में उसे अपनी रूपा की याद भी आती है, जो मॉडल बन गई है और एक गैंगस्टर के चंगुल में फंसकर उसी के साथ रहने लगती है. मासूम लाल सिंह, रूपा को चाहना बंद नहीं करता, कारगिल युद्ध में बाला की मौत हो जाती है, तो वह उसके परिवार की मदद के लिए चड्ढी बनियान की फैक्ट्री लगा लेता है. कारगिल युद्ध में उसने गलती से एक पाकिस्तानी की जान भी बचा ली थी, वो उसकी मदद करता है. फैक्ट्री खड़ी हो जाती है, लेकिन मां की मौत के बाद वो वापस लौट आता है. फिर रूपा एक दिन उसकी जिंदगी में शामिल होती है, फिर गायब हो जाती है. उसका दिल फिर टूट जाता है और वो भागना शुरू कर देता है, चार साल दौड़ता ही रहता है, पूरे भारत के दर्शन उनकी दौड़ में आप कर सकते हैं.
इतिहास के पन्नों में ले जाते हैं आमिर
फिर कैसे आमिर खान इस फिलॉसफिकल जर्नी को क्लाइमेक्स में समेटते हैं, वो भी खासा दिलचस्प है. लेकिन चूंकि वो आमिर खान थे, सो उन्हें कोई जल्दबाजी नहीं थी कि मूवी को 2 ही घंटे में समेटा जाए, वो उसको खींचकर 164 मिनट ले जाते हैं. क्लाइमेक्स में तो वाकई में लगता है कि 15 से 20 मिनट मूवी कम हो सकती थी. ऐसे में ये मूवी कम बेवसीरीज ज्यादा लगती है. इस मूवी में फॉरेस्ट गम्प की तरह आमिर आपको इतिहास के पन्नों में ले जाते हैं, इमरजेंसी, क्रिकेट वर्ल्ड कप, इंदिरा गांधी की हत्या, 84 के दंगे, आडवाणी की रथ यात्रा, आरक्षण आंदोलन, मुंबई बम विस्फोट, यहां तक कि कसाब तक के पकड़े जाने तक.
विवादित क्या हो सकता है
आमिर खान के किरदार से इस मूवी में एक सवाल पूछा जाता है कि तुम कोई पूजा-पाठ नहीं करते? कभी देखा नहीं. तो उसका जवाब होता है- ‘मां कहती थी कि मजहब ना मलेरिया होता है’. हालांकि इस मूवी में उसकी मां दंगों के वक्त उसको कमरे में ये कहकर बंद कर देती थी कि शहर में मलेरिया फैल गया है. लेकिन चूंकि वो 72 हूरों वाले मौलवी के बयान को टीवी में दिखाकर उस पर एक सीन में सवाल भी उठाते हैं, सो हिंदू ब्रिगेड उसे अपने से शायद नहीं जोड़ेगी. पाकिस्तानी सेना के जवान को बचाना, उसको बिजनेस पार्टनर बनाना, शायद मूल कहानी की वजह से लिया गया हो, लेकिन थोड़ा अजीब तो लगता है कि देश की सरकार उसको छुट्टा घूमने कैसे छोड़ सकती है. हालांकि उसके किरदार के बहाने पाक नेता और मौलवियों पर वार, बहिष्कार ब्रिगेड को गुस्सा कर सकता है.
हालांकि देखा जाए तो लाल सिंह का किरदार भी इस मामले में पीके से प्रभावित लगता है. हालांकि आमिर के बारे में उनके विरोधी मानते हैं कि वो एजेंडा बड़े ही ‘ब्रॉडर नरेटिव’ में दिखाते हैं, जो आसानी से पकड़ में नहीं आता. मजहब को मलेरिया बताने के अलावा, बस इस मामले में अगर जानबूझकर किया है तो वो एक ही हो सकता है, और वो कि जिस तरह सिख, मुस्लिम, ईसाई, साउथ इंडियन आदि को जोड़कर उत्तर भारतीयों के खिलाफ एक लॉबी अभियान चलाती है. ये मूवी साइलेंट तरीके से उस तरफ इशारा करती लगती है. सिख के रोल में हीरो है, ईसाई के रोल में हीरोइन, मुस्लिम रोल में उसका पाकिस्तानी दोस्त मोहम्मद है और साउथ इंडियन दोस्त बाला है.
अबकी बार मोदी सरकार और शाहरुख कनेक्शन
आमिर एक दीवार के सामने भागते एक सीन में दिखते हैं जिस पर मोदीजी के साथ फोटो लिखा है अबकी बार मोदी सरकार, एक सीन में वो आडवाणीजी की रथयात्रा को देख रहे हैं, जहां करीना कह रही हैं कि उनका भी नाम लाल है और तुम्हारा भी. एक सीन में तो वो आर के नारायण से वीर चक्र भी ले लेते हैं, आडवाणी और अटलजी बैठे देख रहे हैं. जबकि एक सीन में किशोरावस्था में वो शाहरुख का उनका खास बाहें फैलाने वाला पोज सिखा रहे हैं.
इतना लम्बा डिसक्लेमर और जय शाह को धन्यवाद
शायद ही किसी मूवी में इतना लम्बा डिस्क्लेमर होगा, ये सफाई जैसा लगता है और लगता है कि बहिष्कार ब्रिगेड के दवाब में आ गए हैं आमिर खान. उसके बाद तीन मिनट लम्बा तहे दिल से धन्यवाद चलता है, जिसमें सबसे दिलचस्प है जय शाह को धन्यवाद देना.
म्यूजिक, गाने, डायरेक्शन, एक्टिंग सब कैसे हैं?
प्रीतम का म्यूजिक है और कई गाने गुनगुनाने लायक बन भी पड़े हैं, कुछ के लिरिक्स भी आपको दोबारा से सुनने पर मजबूर कर देंगे. सीक्रेट सुपरस्टार के डायरेक्टर अद्वैत चंदन का डायरेक्शन है. लेकिन लोग इसे आमिर खान का देवानंद टाइप घोस्ट डायरेक्शन भी बता रहे हैं. एक्टिंग में आमिर खान, मोना सिंह, करीना कपूर, मानव विज जैसों पर तो सवाल उठाना ही बेमानी है, नागा चैतन्य ने भी निराश नहीं किया. वो अच्छे एक्टर साबित होते हैं.
किसको पसंद आएगी मूवी
ये सबसे बड़ा सवाल है, मूवी आमिर खान के सच्चे फैन्स, फिल्मों के शौकीन और फुरसत में देखने वालों को काफी पसंद आएगी. थिएटर्स से उतरकर जब ओटीटी में आएगी, तो भी मजा आएगा, ये तय है. क्योंकि मूवी काफी लम्बी है और जब तक आप उनके किरदार के साथ मासूमियत से नहीं जुड़ते, आपको मूवी पसंद नहीं आएगी. कई लोगों को इसीलिए ये स्लो भी लगती है.
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मूवी रिव्यू: लाल सिंह चड्ढा
स्टार कास्ट: आमिर खान, करीना कपूर, मोना सिंह, नागा चैतन्य, मानव विज आदि
डायरेक्टर: अद्वैत चंदन
स्टार रेटिंग: 3.5
Laal Singh Chaddha Movie Review: लाल सिंह चड्ढा हो या रक्षाबंधन, इस हफ्ते रिलीज हुई दोनों मूवीज के साथ खास बात ये है कि दोनों की ही शुरुआत गोलगप्पे के सीन से होती है. एक में गोलगप्पे के साथ बेटा जुड़ा है, तो दूसरी में मम्मी की फिलॉसफी गोलगप्पे से जुड़ी है. आमिर खान (Aamir Khan) के साथ ये माना जाता है कि उनकी मूवी काफी एंटरटेनिंग (Entertaining movie) होती है, वहीं कहीं ना कहीं वो कुछ ऐसा विवाद भी छोड़ जाती है, जो बाद में लोगों को लगता है कि ये जानबूझकर किया गया था. खासतौर पर मजहब या धर्म को लेकर उनकी सोच, PK पूरी तरह उसी पर फोकस थी, अछूते वो लाल सिंह चड्ढा में भी नहीं रह पाए, लेकिन इसमें केवल छूकर निकल गए हैं.
जिसने भी ‘फॉरेस्ट गम्प’ देखी होगी, वो हर सीन की उससे तुलना करेंगे, लेकिन बाकियों को लगेगा कि आमिर आइडिया वाकई में अनोखा लेकर आए हैं. हालांकि इस मूवी में आमिर की ही मूवी ‘पीके’ का असर दिखता है, उसमें हीरो पृथ्वी से बाहर का था, सो उसे कुछ पता नहीं था, इसमें हीरो मंदबुद्धि है सो उसको भी कम ही पता होता है. ऐसे में लौ टफिर कर बात मजहब पर आनी थी, सो इसमें भी थोड़ी ही सही लेकिन आई तो है. हालांकि वो ना भी आती तो भी आमिर खान की मेहनत इस मूवी में साफ तौर पर दिखेगी. लेकिन ये मेहनत आपको एक मंदबुद्धि किरदार की तरह साफ और मासूम दिल से दुनिया को फिलॉसफिकल नजर से देखने की होगी, जो ज्यादातर लोगों को अच्छा ही मानता है.
कहानी में कई पेंच
कहानी एक ऐसे लड़के लाल सिंह चड्ढढा की है, जिसके पास केवल मां है, पिता नहीं, कहां हैं पता नहीं, मां (मोना सिंह) अपने पिता यानी लाल सिंह के नाना की पुश्तैनी हवेली में रहती है और उन्हीं के छोड़े खेतों में खेती कर खर्च चलाती है. बेटा लाल सिंह चड्ढा सामान्य नहीं, सब लोग उसे मंदबुद्धि कहते हैं, चलने में भी दिक्कत थी. जिसके चलते उसका एडमिशन भी मुश्किल से होता है. लाल सिंह (आमिर खान) की एक ही दोस्त बनती है रूपा (करीना कपूर). लेकिन लड़कों से बचकर भागते वक्त लाल सिंह की पैरों की परेशानी खत्म हो जाती है और धीरे-धीरे वो रेसर बन जाता है, नाना, परनाना आर्मी में थे, सो वो भी आर्मी में भर्ती हो जाता है. जहां उसका एक ही दोस्त बनता है बाला (नागा चैतन्य), जो कुछ-कुछ उसी की तरह का था. दोनों तय करते हैं कि आर्मी छोड़ने के बाद बाला का पुश्तैनी धंधा यानी चड्ढी बनियान की फैक्ट्री लगाएंगे.
बीच में उसे अपनी रूपा की याद भी आती है, जो मॉडल बन गई है और एक गैंगस्टर के चंगुल में फंसकर उसी के साथ रहने लगती है. मासूम लाल सिंह, रूपा को चाहना बंद नहीं करता, कारगिल युद्ध में बाला की मौत हो जाती है, तो वह उसके परिवार की मदद के लिए चड्ढी बनियान की फैक्ट्री लगा लेता है. कारगिल युद्ध में उसने गलती से एक पाकिस्तानी की जान भी बचा ली थी, वो उसकी मदद करता है. फैक्ट्री खड़ी हो जाती है, लेकिन मां की मौत के बाद वो वापस लौट आता है. फिर रूपा एक दिन उसकी जिंदगी में शामिल होती है, फिर गायब हो जाती है. उसका दिल फिर टूट जाता है और वो भागना शुरू कर देता है, चार साल दौड़ता ही रहता है, पूरे भारत के दर्शन उनकी दौड़ में आप कर सकते हैं.
इतिहास के पन्नों में ले जाते हैं आमिर
फिर कैसे आमिर खान इस फिलॉसफिकल जर्नी को क्लाइमेक्स में समेटते हैं, वो भी खासा दिलचस्प है. लेकिन चूंकि वो आमिर खान थे, सो उन्हें कोई जल्दबाजी नहीं थी कि मूवी को 2 ही घंटे में समेटा जाए, वो उसको खींचकर 164 मिनट ले जाते हैं. क्लाइमेक्स में तो वाकई में लगता है कि 15 से 20 मिनट मूवी कम हो सकती थी. ऐसे में ये मूवी कम बेवसीरीज ज्यादा लगती है. इस मूवी में फॉरेस्ट गम्प की तरह आमिर आपको इतिहास के पन्नों में ले जाते हैं, इमरजेंसी, क्रिकेट वर्ल्ड कप, इंदिरा गांधी की हत्या, 84 के दंगे, आडवाणी की रथ यात्रा, आरक्षण आंदोलन, मुंबई बम विस्फोट, यहां तक कि कसाब तक के पकड़े जाने तक.
विवादित क्या हो सकता है
आमिर खान के किरदार से इस मूवी में एक सवाल पूछा जाता है कि तुम कोई पूजा-पाठ नहीं करते? कभी देखा नहीं. तो उसका जवाब होता है- ‘मां कहती थी कि मजहब ना मलेरिया होता है’. हालांकि इस मूवी में उसकी मां दंगों के वक्त उसको कमरे में ये कहकर बंद कर देती थी कि शहर में मलेरिया फैल गया है. लेकिन चूंकि वो 72 हूरों वाले मौलवी के बयान को टीवी में दिखाकर उस पर एक सीन में सवाल भी उठाते हैं, सो हिंदू ब्रिगेड उसे अपने से शायद नहीं जोड़ेगी. पाकिस्तानी सेना के जवान को बचाना, उसको बिजनेस पार्टनर बनाना, शायद मूल कहानी की वजह से लिया गया हो, लेकिन थोड़ा अजीब तो लगता है कि देश की सरकार उसको छुट्टा घूमने कैसे छोड़ सकती है. हालांकि उसके किरदार के बहाने पाक नेता और मौलवियों पर वार, बहिष्कार ब्रिगेड को गुस्सा कर सकता है.
हालांकि देखा जाए तो लाल सिंह का किरदार भी इस मामले में पीके से प्रभावित लगता है. हालांकि आमिर के बारे में उनके विरोधी मानते हैं कि वो एजेंडा बड़े ही ‘ब्रॉडर नरेटिव’ में दिखाते हैं, जो आसानी से पकड़ में नहीं आता. मजहब को मलेरिया बताने के अलावा, बस इस मामले में अगर जानबूझकर किया है तो वो एक ही हो सकता है, और वो कि जिस तरह सिख, मुस्लिम, ईसाई, साउथ इंडियन आदि को जोड़कर उत्तर भारतीयों के खिलाफ एक लॉबी अभियान चलाती है. ये मूवी साइलेंट तरीके से उस तरफ इशारा करती लगती है. सिख के रोल में हीरो है, ईसाई के रोल में हीरोइन, मुस्लिम रोल में उसका पाकिस्तानी दोस्त मोहम्मद है और साउथ इंडियन दोस्त बाला है.
अबकी बार मोदी सरकार और शाहरुख कनेक्शन
आमिर एक दीवार के सामने भागते एक सीन में दिखते हैं जिस पर मोदीजी के साथ फोटो लिखा है अबकी बार मोदी सरकार, एक सीन में वो आडवाणीजी की रथयात्रा को देख रहे हैं, जहां करीना कह रही हैं कि उनका भी नाम लाल है और तुम्हारा भी. एक सीन में तो वो आर के नारायण से वीर चक्र भी ले लेते हैं, आडवाणी और अटलजी बैठे देख रहे हैं. जबकि एक सीन में किशोरावस्था में वो शाहरुख का उनका खास बाहें फैलाने वाला पोज सिखा रहे हैं.
इतना लम्बा डिसक्लेमर और जय शाह को धन्यवाद
शायद ही किसी मूवी में इतना लम्बा डिस्क्लेमर होगा, ये सफाई जैसा लगता है और लगता है कि बहिष्कार ब्रिगेड के दवाब में आ गए हैं आमिर खान. उसके बाद तीन मिनट लम्बा तहे दिल से धन्यवाद चलता है, जिसमें सबसे दिलचस्प है जय शाह को धन्यवाद देना.
म्यूजिक, गाने, डायरेक्शन, एक्टिंग सब कैसे हैं?
प्रीतम का म्यूजिक है और कई गाने गुनगुनाने लायक बन भी पड़े हैं, कुछ के लिरिक्स भी आपको दोबारा से सुनने पर मजबूर कर देंगे. सीक्रेट सुपरस्टार के डायरेक्टर अद्वैत चंदन का डायरेक्शन है. लेकिन लोग इसे आमिर खान का देवानंद टाइप घोस्ट डायरेक्शन भी बता रहे हैं. एक्टिंग में आमिर खान, मोना सिंह, करीना कपूर, मानव विज जैसों पर तो सवाल उठाना ही बेमानी है, नागा चैतन्य ने भी निराश नहीं किया. वो अच्छे एक्टर साबित होते हैं.
किसको पसंद आएगी मूवी
ये सबसे बड़ा सवाल है, मूवी आमिर खान के सच्चे फैन्स, फिल्मों के शौकीन और फुरसत में देखने वालों को काफी पसंद आएगी. थिएटर्स से उतरकर जब ओटीटी में आएगी, तो भी मजा आएगा, ये तय है. क्योंकि मूवी काफी लम्बी है और जब तक आप उनके किरदार के साथ मासूमियत से नहीं जुड़ते, आपको मूवी पसंद नहीं आएगी. कई लोगों को इसीलिए ये स्लो भी लगती है.
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