जाने किन कारणों से सियाचिन में गई 873 जवानों की जान

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जाने किन कारणों से सियाचिन में गई 873 जवानों की जान
जाने किन कारणों से सियाचिन में गई 873 जवानों की जान

सियाचिन पूरी दुनिया का सबसे ऊंचा युद्धक्षेत्र है इस युद्धक्षेत्र में भारत के जवान 16 से 20 हजार फीट की ऊंचाई तक तैनात रहते हैं. यह ऐसी जगह है जहां पर हमारे जवान पाक और चीन से भी बड़े दुश्मन से हर रोज लोहा लेते है.

बता दें कि सोमवार को भारतीय सेना की पोस्ट बर्फीले तूफान की चपेट में आने के कारण 4 जवान शहीद हो गए है. वहीं दूसरी और 2 स्थानीय लोगों की मौत हो गई है. आइए जानते हैं कि 1984 के बाद से अब तक दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र पर बिना लड़े हमारे कितने जवान शहीद हो गए?
भारत और पाक दोनों देश के जितने भी सैनिक यहां आपसी लड़ाई के कारण नहीं मारे गए है.

उससे भी कहीं ज्यादा सैनिक यहां ऑक्सीजन की कमी हिमस्खलन और बर्फीले तूफान के कारण मारे गए हैं. यहां तो चीन भी हमारा दुश्मन नहीं है. यहां ज्यादातर समय शून्य से भी 50 डिग्री नीचे तापमान रहता है. एक अनुमान के मुताबिक भारत और पाकिस्तान के कुल मिलाकर 2500 जवानों को यहां अपनी जान गंवानी पड़ी है.

सियाचिन को 1984 में मिलिट्री बेस बनाया गया था. तब से लेकर अब तक 873 सैनिक सिर्फ खराब मौसम व बर्फीले तूफान और हिमस्खलन के कारण अपनी जान को गंवा चुके हैं. भारत से हर दिन 5 करोड़ रुपए सियाचिन में मौजूद सैनिकों की सुरक्षा के लिए खर्च किए जाते हैं. ताकि हमारे जवान सुरक्षित और सेहतमंद रह सकें.

जाने किन कारणों से सियाचिन में गई 873 जवानों की जान

यहां का मौसम इतना खराब रहता है कि सिर्फ गन शॉट फायर करने या मेटल का कुछ भी छूने से उंगलियों में अकडन रहती हैं. ज्यादा दिन रहने पर देखने और सुनने में दिक्कत आती है. याद्दाशत कमजोर होने लगती है. सियाचिन ग्‍लेशियर पर स्थित भारतीय सीमा की रक्षा के लिए 3 हजार सैनिक हमेशा तैनात रहते हैं.

समुद्र तल से 16 से 18 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है. सियाचिन ग्लेशियर के एक तरफ पाक की सीमा है दूसरी और अक्साई चीन इस इलाके में है. दोनों देशों पर नजर रखने के हिसाब से यह क्षेत्र भारत के लिए काफी महत्वपूर्ण है. 1972 के शिमला समझौते में इस इलाके को बेजान और बंजर करार दिया गया यानि यह इलाका इंसानों के रहने के लायक नहीं है.

इस समझौते में यह नहीं बताया गया कि भारत और पाकिस्तान की सीमा सियाचिन में कहां होगी. उसके बाद से इस क्षेत्र पर पाकिस्तान ने अपना अधिकार जताना शुरू कर दिया. इस ग्लेशियर के ऊपरी भाग पर फिलहाल भारत और निचले भाग पर पाकिस्तान का कब्जा है.

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1984 में पाकिस्तान सियाचिन पर कब्जे की तैयारी में था लेकिन सही समय पर इसकी जानकारी होने के बाद सेना ने ऑपरेशन मेघदूत लॉन्च किया. 13 अप्रैल 1984 को सियाचिन ग्लेशियर पर भारत ने कब्जा कर लिया. 2003 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम संधि हो गई.