2016 JNU विरोध प्रदर्शन से लाइम लाइट में आयें
2016 में दिल्ली के जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में हुए विरोध प्रदर्शनों के दौरान दो छात्र नेता अचानक लाइम लाइट में आ गये थे l वो दो छात्र नेता है ,कन्हैया कुमार और शेहला रशीद l आपको बता दें की ,कन्हैया और शेहला दोनों ही सत्तारूढ़ एनडीए की नीतियों के धुर विरोधी हैंl दोनों ही युवा छात्र नेताओं ने पत्रकारों से बात करते हुए ये संकेत दिया है कि वे 2019 के लोकसभा चुनावों में अपनी किस्मत आजमाने को तैयार है l उन्होंने कहा “वे सामाजिक और राजनीतिक संगठनों का विशाल सामूहिक मोर्चा बनाने की कोशिश में जुटे हैं। ये मोर्चा उदार, प्रगतिवादी सोच के लोगों को आगे लाकर 2019 में भाजपा का मुकाबला करेगा।” दोनों युवा नेताओं ने पिछले वर्ष हुए गुजरात विधानसभा चुनावों में युवा दलित नेता जिग्नेश मेवाणी की जीत का उदाहरण दिया l
जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष रह चुके है कन्हैया कुमार
आपको बता दें कि कन्हैया कुमार जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष थे। वह भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के छात्र संगठन ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन यानी एआईएसएफ के उम्मीदवार थे। कहा जा रहा है कि वह अपने गृह जिले बिहार के बेगूसराय से चुनाव लड़ना चाहेंगे। कन्हैया कुमार ने कहा,”अगर राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस और वामपंथी दल बिहार में महागठबंधन बनाते हैं और मुझे सामान्य उम्मीदवार की तरह बुलाकर चुनाव लड़ने को कहते हैं तो मैं चुनाव लडूंगा।” कन्हैया ने यह भी कहा कि मैं संगठित राजनीति में यकीन रखता हूं। ये बहुत साफ है कि अगर मैं चुनाव लड़ता हूं तो मैं मुख्यधारा की पार्टी के टिकट पर ही लड़ूंगा। मैं किसी एक इंसान या व्यक्ति के करिश्मे पर यकीन नहीं रखता हूं।”
जेएनयू छात्र संघ की उपाध्यक्ष रही हैं शेहला रशीद
वहीं दूसरी तरफ ,शेहला रशीद जेएनयू छात्र संघ की उपाध्यक्ष रही हैं। वह सीपीआई-माले के छात्र संगठन ऑल इंडिया स्टूडेंट एसोसिएशन की उम्मीदवार थीं। शेहला कहती हैं कि वह संगठन के लिए काम करना चाहती हैं। लेकिन चुनाव लड़ने से भी उन्हें परहेज़ नहीं है। अगर सामान्य परिस्थितियों में कोई बात उठती है तो मैं किसी लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने के लिए तैयार हूं। आपको बता दें कि वर्तमान में शेहला जेएनयू से पीएचडी कर रही हैं। शेहला श्रीनगर से आती हैं। लेकिन अभी तक उन्होंने किसी पार्टी और लोकसभा क्षेत्र का चयन चुनाव लड़ने के लिए नहीं किया है। शेहला ने कहा कि वह पश्चिमी उत्तर प्रदेश की किसी सीट से चुनाव लड़ना पसंद करेंगी। अगर विपक्षी पार्टियों को ऐसा लगता है कि संविधान खतरे में है तो यहां हमारी भूमिका मुद्दे को उभारने में अहम हो जाती है। मैं चुनाव इसलिए नहीं लड़ना चाहती कि ये आसान है, बल्कि इसलिए लड़ना चाहती हूं, क्योंकि ये जरूरी है।
लोकसभा चुनाव 2019 में ये युवा नेता बडे राजनेताओं के सामने कितनी चुनौतियाँ पेश करेंगे ये देखना वाकई दिलचस्प होगा l