Kailaras Sugar Mill : कैलारस शुगर मिल चलाने की किसानों की कोशिशों में रोड़े कौन अटका रहा? समझिए पूरी कहानी

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Kailaras Sugar Mill : कैलारस शुगर मिल चलाने की किसानों की कोशिशों में रोड़े कौन अटका रहा? समझिए पूरी कहानी

मुरैना : पेट्रोलियम पदार्थों के विकल्प के तौर पर एथेनॉल की उपयोगिता सामने आ रही है। गन्ने के बेहतर दाम मिलने की संभावनाओं के चलते देश के अलग-अलग हिस्सों में वर्षो से बंद शुगर मिलों को फिर रफ्तार देने का काम किया जा रहा है। मध्यप्रदेश के मुरैना जिले के कैलारस (kailaras sugar mill latest update) में भी एक दशक से बंद शुगर मिल को किसान फिर शुरू करना चाहते हैं, मगर इस कोशिश में लगातार बाधाएं खड़ी की जा रही है। इतना ही नहीं इस मिल के मूल स्वरूप को समूल नष्ट करने की भी कोशिशें हो रही हैं।


सवाल उठ रहा है कि किसानों और व्यापारियों की मिल को पुनर्जीवित करने की इस कोशिश में आखिर बाधक बनकर समूल नष्ट करने की योजना कौन बना रहा है। मुरैना और उसके आसपास का इलाका गन्ना उत्पादक रहा है, यही कारण रहा कि यहां लगभग पांच दशक पहले सहकारी शक्कर कारखाना कैलारस में स्थापित किया गया था, यह प्रदेश का पहला सहकारी शक्कर कारखाना था।

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इस कारखाने को शक्कर उत्पादन करने लाइसेंस वर्ष 1965 में मिला था मगर पहला उत्पादन वर्ष 1971-72 में हुआ था। यह सिलसिला 2009 तक चलता रहा, उसके बाद गन्ना का उत्पादन कम होने पर एक वर्ष उत्पादन कम हुआ, वर्ष 2011 आते-आते बढ़ती देनदारियों के कारण यह मिल ही बंद हो गई। मौजूदा दौर में पेट्रोलियम पदार्थों के विकल्प के तौर पर एथेनॉल के उपयोग ने शक्कर कारखानों में नई उम्मीद जगाई है। कई राज्यों में बंद पड़े शक्कर कारखानों को फिर चालू किया जा रहा है। उसी क्रम में मुरैना के किसानों ने इस कारखाने को फिर चालू कराने का मन बनाया है।

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इसके लिए किसानों ने मध्यांचल किसान उद्योग लिमिटेड का गठन भी किया है। यह कोऑपरेटिव समिति नियम सम्मत तमाम देनदारियों का भुगतान करने को तैयार है। इस कारखाने की देखरेख के लिए लिक्विडेटर की नियुक्ति है और वही देखरेख कर रहा है। किसानों की संस्था मध्यांचल किसान उद्योग लिमिटेड जिसे बैंक ने 50 करोड़ तक का लोन देने की सहमति जताई है। किसान जहां इस कारखाने को चलाने का प्रयास कर रहा है। उसी दौरान इस कारखाने की मशीनों को स्क्रैप बताते हुए बेचने की कोशिश शुरू हुई।

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इस मामले ने तूल पकड़ा और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तक गया, लिहाजा उन्होंने इस प्रक्रिया पर ही रोक लगाने के निर्देश दे दिए। इस कारखाने की लगभग 40 हेक्टेयर जमीन है, दो बड़े गोदाम हैं, डेढ़ सौ से ज्यादा सरकारी आवास है। इसके अलावा करोड़ों रुपए की मशीनरी है, जिसे अब कबाड़ करार दिया जा रहा है। कैलारस शक्कर कारखाने के पूर्व महाप्रबंधक एमडी पाराशर जो मध्यांचल किसान उद्योग लिमिटेड के संचालक भी हैं, उनका कहना है कि महाराष्ट्र सहित देश के कई हिस्सों में बीते दो दशक से बंद पड़ी शक्कर मिलों को चालू किया जा रहा है।

इस इलाके का किसान भी इसे चालू करना चाहता है, यह कारखाना चल पड़ता है तो इस इस इलाके के किसानों की तकदीर ही बदल जाएगी। जानकारों का कहना है कि सरकार को अगर इस कारखाने को नीलाम ही करना है तो शक्कर कारखाना चलाने की शर्त पर ही नीलाम किया जाना चाहिए, मगर यह समझ से परे है कि पूरी संपत्ति को तीन हिस्सों में बांट कर बेचने की तैयारी है।

केंद्रीय नरेंद्र सिंह तोमर का इलाका
संभवत: यह देश का अपनी तरह का एक मामला होगा, जिसमें कारखाने को समूल नष्ट करने की कोशिश हो रही है। बता दें कि कैलारस मुरैना संसदीय क्षेत्र में आता है और यहां से सांसद केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर हैं। राज्य सरकार के सहकारिता मंत्री अरविंद सिंह भदौरिया, लोक निर्माण मंत्री गोपाल भार्गव के अलावा पूर्व मंत्री रुस्तम सिंह और अनूप मिश्रा इस कारखाने को चलाने के संबंध में अपनी तरफ से सरकार से अनुरोध कर चुके हैं।

इसे बेचना दुखद
फिलहाल स्क्रैप को बेचने की प्रक्रिया तो रोक दी गई है, मगर कारखाना किसान चालू कर पाएंगे, यह बड़ा सवाल है। किसानों की इस पहल का ग्वालियर के पूर्व संभाग आयुक्त और मध्य प्रदेश सरकार के पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव प्रशांत मेहता का कहना है कि पांच हजार हेक्टेयर में गन्ना उत्पादन और 10 करोड़ की पूंजी इकट्ठा करने का यहां के लोगों का संकल्प उनकी इच्छाशक्ति को दर्शाता है। कारखाना बेचना तो अंतिम और दुखद विकल्प है। राज्य के मुख्यमंत्री किसानों के लिए विशेष संवेदनशील हैं, मुझे उम्मीद है कि किसानों के इस प्रयास को जरूर सफलता मिलेगी।

उन्होंने वर्ष 1983-84 का जिक्र किया, जब वे ग्वालियर के संभाग आयुक्त हुआ करते थे। उस समय पहली बार उच्चतम उत्पादन हुआ था और लाभ हुआ था। किसानों कि अलावा कर्मचारियों को वेतन के साथ बोनस तो मिला ही था, भारत भ्रमण भी कराया गया था। राजनेताओं ने मुख्यमंत्री को जो पत्र लिखे हैं, उसमें कहा गया है कि मुरैना और उसके आसपास के क्षेत्र में किसान गन्ने की खेती आसानी से कर सकते हैं, क्योंकि यहां पानी की उपलब्धता है और अगर किसान गन्ने की खेती करते हैं तो उनकी आमदनी भी बढ़ेगी, जैसा देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार चाहती है, लिहाजा प्रदेश सरकार को इस दिशा में पहल करना चाहिए।

शक्कर कारखाने के पूर्व महाप्रबंधक पराशर का कहना है कि जब यह संयंत्र बंद हुआ था, तब इसमें नियमित और अन्य सभी मिलाकर लगभग 500 कर्मचारी कार्यरत हैं, इससे कई हजार किसान और अन्य लोग लाभान्वित हो रहे थे। मुरैना वह इलाका है, जहां सरसों की खेती होती है, यहां का किसान अपनी आमदनी को गन्ना की खेती करके बढ़ा सकता है, क्योंकि पानी यहां पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है और गन्ना को पाला बारिश से कोई नुकसान नहीं होता। इस कारखाने को मूल रूप में शुरू किया जाता है तो किसानों की तकदीर बदल जाएगी।

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