Jalebi History: हमारी नहीं है देश के हर गली-मोहल्लों में मिलने वाली जलेबी, जानते हैं कहां से आई ये

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Jalebi History: हमारी नहीं है देश के हर गली-मोहल्लों में मिलने वाली जलेबी, जानते हैं कहां से आई ये

Jalebi History: हमारी नहीं है देश के हर गली-मोहल्लों में मिलने वाली जलेबी, जानते हैं कहां से आई ये


नई दिल्ली: जलेबी का नाम सुनते ही लोगों के मुंह में पानी आ जाता है। कुछ मीठा खाना हो तो जलेबी लोगों की पहली पसंद है। देश के हर गली-मोहल्ले में जलेबी खूब मिलती है। दिखने में एकदम गोल, खाने में करारी, लाल जलेबी बच्चों से लेकर बड़ों तक की पसंदीदा है। देश का शायद ही कोई ऐसा शहर होगा जहां जलेबी नहीं मिलती हो। देश के लगभर हर शहर में आपको जलेबी मिल जाएगी। कहीं जलेबी के साथ रबड़ी खाई जाती है तो कहीं जलेबी को दूध और दही के साथ खाना पसंद करते हैं। भारत के अलावा यह पाकिस्तान, बांग्लादेश और ईरान के साथ-साथ तमाम अरब मुल्कों का भी एक लोकप्रिय व्यंजन है। वैसे तो इस मिठाई को भारत की राष्ट्रीय मिठाई माना जाता है, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि जलेबी भारतीय मिठाई नहीं है। यह विदेश से आई मिठाई है जो आज भारत के हर कोने में फेमस है। जलेबी का इतिहास भी इसकी तरह सीधा है।

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जलेबी की कब और कैसे हुई शुरुआत

जलेबी को आमतौर पर तो सादा ही बनाया जाता है। लेकिन पनीर या खोया जलेबी को भी लोग बड़े चाव से खाते हैं। बारिश और जाड़े के दिनों में तो जलेबी खाने का अपना अलग ही मजा है। जलेबी का इतिहास आज से करीब 500 वर्ष पुराना है। ईरान में जलेबी को जुलाबिया या जुलुबिया नाम से जाना जाता है। टर्की आक्रमणकारियों के साथ जलेबी भारत में पहुंची थी। इसके बाद जलेबी के नाम, बनाने का तरीका और इसके स्वाद में बदलाव होते चले गए। भारत में 15वीं शताब्दी तक जलेबी हर त्योहार में इस्तेमाल होने वाला एक ख़ास व्यंजन बन चुकी थी। यहां तक कि यह मंदिरों में बतौर प्रसाद के रूप में भी दी जाने लगी थी। अरेबिक शब्द ‘जलाबिया’ या फारसी शब्द ‘जलिबिया’ से जलेबी शब्द आया है। मध्यकालीन पुस्तक ‘किताब-अल-तबीक़’ में ‘जलाबिया’ नाम की मिठाई का वर्णन है। जो पश्चिम एशिया से निकला हुआ शब्द है।

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देश में अलग-अलग नाम से मिलती है जलेबी

उत्तर भारत में यह जलेबी नाम से जानी जाती है, जबकि दक्षिण भारत में यह ‘जिलेबी’ नाम से जानी जाती है। बंगाल में यही नाम बदलकर ‘जिल्पी’ हो जाता है। गुजरात में दशहरा और अन्य त्यौहारों पर जलेबी को फाफड़ा के साथ खाने का भी चलन है। जलेबी की कई किस्म अलग-अलग राज्यों में मशहूर हैं। इंदौर के रात के बाजारों से बड़े जलेबा, बंगाल में ‘चनार जिल्पी, मध्य प्रदेश की मावा जंबी या हैदराबाद का खोवा जलेबी, आंध्र प्रदेश की इमरती या झांगिरी, जिसका नाम मुगल सम्राट जहांगीर के नाम पर रखा गया है। इंदौर शहर में 300 ग्राम वज़नी ‘जलेबा’ मिलता है। जलेबी के मिश्रण में कद्दूकस किया पनीर डालकर पनीर जलेबी बनती है, जबकि ‘चनार जिल्पी’ दूध और मावा को मिलाकर जलेबी के मिश्रण में डालकर मावा जलेबी तैयार की जाती है। जलेबी सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि कई दूसरे देशों में भी खाई जाती है। लेबनान में ‘जेलाबिया’ एक लंबे आकार की पेस्ट्री होती है। ईरान में इसे जुलुबिया, ट्यूनीशिया में ज’लाबिया, और अरब में जलेबी को जलाबिया के नाम से जानते हैं।

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