Jaipur News: गणगौर पूजा को लेकर 263 सालों से पूजा का अनूठा रिवाज, पिंकसिटी की Gangaur का इतिहास जान चौंक जाएंगे आप
263 साल से गणगौर की जयपुर में अकेले ही पूजा
वैसे तो गणगौर (माता पार्वती) की पूजा में ईसरजी (शिवजी) के साथ संयुक्त रूप से साथ होती है। लेकिन जयपुर एक ऐसा अनूठा स्थान है। जहां पिछले 263 सालों से गणगौर माता अपने पीहर जयपुर में अकेली पूजी जा रही है। इस दौरान गणगौर की सवारी भी जयपुर में अकेले ही निकाली जाती है। इसके पीछे का इतिहास है। रूपनगढ़ के महाराजा सावत सिंह के समय वहां के महंत ने किशनगढ़ में सवारी निकालने के लिए ईसर-गणगौर नहीं दिए। इस पर किशनगढ़ के महाराजा बहादुर सिंह जयपुर से ईसरजी को अकेले लूट कर ले आए। तब से जयपुर में अकेले ही गणगौर की पूजा का रिवाज है। जबकि जयपुर के अलावा अन्य रियासतों में गणगौर के साथ ईसरजी की सवारी निकलती हैं। बाद में किशनगढ़ में भी ईसरजी के साथ गणगौर की स्थापना की गई। जिसके बाद से वहां भी दोनों की सवारी साथ निकाली जाती है।
Rajasthan में इंटरकास्ट मैरिज पर Ashok Gehlot का बड़ा ऐलान,5 की जगह अब दिए जायेंगे 10 लाख रुपये, जानिए कौन-कौन उठा सकता लाभ
संपन्नता के लिए लूटते थे ईसरजी को
ईसरजी को लूटने के पीछे भी एक मजेदार इतिहास है। पूर्व राजघरानों ने इस ईसरजी को लूटने के पीछे जो तर्क दिया है। उससे आप चौक जायेंगे। किशनगढ़ राजघराना के पूर्व महाराजा ब्रजराज सिंह का कहना है कि रियासत काल में राजपूत गणगौर ईसरजी को संपन्नता बढ़ाने के लिए लूट कर ले जाते थे। ईसरजी लूट जाने के बाद जयपुर के महाराजा ईश्वर सिंह किशनगढ़ में अपना भेष बदलकर सवारी देखने पहुंचे। इस दौरान किशनगढ़ के महाराजा बहादुर सिंह को गुप्तचोरों ने इसकी सूचना दी। फिर महाराजा बहादुर सिंह ने महाराजा ईश्वर सिंह को सम्मान के साथ उन्हें सवारी दिखाई।
गणगौर की पूजा में माता को लगाते हैं घेवर का भोग
जयपुर में गणगौर पूजा को लेकर एक और अलग रिवाज है। आमेर-जयपुर राजघराना की पूर्व माता पद्मिनी देवी ने बताया कि सिटी पैलेस में जनानी ड्योढी से गणगौर जी की शाही सवारी लवाजमे के साथ रवाना होती है। इस दौरान माताजी पौन्ड्रिक की छतरी उद्यान में पहुँचती है। इसके बाद माता को घेवर का भोग लगाकर जल पिलाया जाता है। इसके बाद वापस माताजी की सवारी सिटी पैलेस लौट जाती हैं।