Jaipur Literature Festival के दूसरे दिन क्या रहा खास, यहां देखें तस्वीरों के साथ

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Jaipur Literature Festival के दूसरे दिन क्या रहा खास, यहां देखें तस्वीरों के साथ

Jaipur Literature Festival के दूसरे दिन क्या रहा खास, यहां देखें तस्वीरों के साथ


Sambrat Chaturvedi | Navbharat Times | Updated: 20 Jan 2023, 8:44 pm

जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के दूसरे दिन की शुरुआत शुक्रवार को वायलिन और मृदंग की जुगलबंदी से हुई। फेस्टिवल का दूसरा दिन कई महत्वपूर्ण मुद्दों की वजह से ख़ास रहा। रवीश कुमार, शशि थरूर, शबाना आजमी, जावेद अख्तर और गुलजार के साथ साहित्य की महफिल जमी तो बात शायरी से लोकतंत्र, कृषि, चीन-विवाद तक भी खूब खुलकर हुई।

 

Jaipur Literature Festival के दूसरे दिन क्या रहा खास, यहां देखें तस्वीरों के साथ
जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल का दूसरा दिन शुक्रवार को कई मायनों में खास रहा। दिन की शुरुआत वायलिन और मृदंग की जुगलबंदी से हुई। इसके बाद पहला एक के बाद एक कई महत्वपूर्ण मुद्दों से संवाद का कारवां बनता गया। जानेमाने पत्रकार रवीश कुमार की बात हो या लोकप्रिय सांसद शशि थरूर का सेशन, वक्ताओं को सुनने वालों का तांता लगा रहा। यहां शबाना आजमी, जावेद अख्तर और गुलजार के साथ साहित्य की महफिल जमी तो बात शायरी भी जमकर खिलखिलाई।

इनफ़ोसिस की फाउंडर सुधा मूर्ति ने बताई अपनी कहानी

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फेस्टिवल में पहला साहित्यिक सत्र सुधा मूर्ति का ‘माय बुक्स एंड बिलीफ’ था। सुधा के प्रशंसकों ने 10 बजे के इस सत्र के लिए 8 बजे से ही पहुंचना शुरू कर दिया था, और भीड़ से ठसाठस भरे चारबाग में जब सत्र शुरू हुआ, तो श्रोताओं ने खड़े होकर सुधा मूर्ति का स्वागत किया। इनफ़ोसिस की फाउंडर और लोक-कल्याणकारी कार्यों में जुटी रहने वाली, मशहूर लेखिका सुधा मूर्ती ने चिरपरिचित सादगी के साथ अपनी बात शुरू की। उन्होंने बताया कि 10-12 साल की उम्र से उन्होंने लेखन शुरू किया था और 29 साल में उनकी पहली कन्नड़ किताब प्रकाशित हुई थी। अंग्रेजी की किताबें तो और कई साल बाद आनी शुरू हुई। बच्चों की प्रिय होने की वजह से उन्होंने खुद को ‘नेशनल नानी’ कहा। उन्होंने कहा, श्सादगी से जीना बहुत आसान है… जब आप झूठ बोलते हैं, तो उसे बरक़रार रखने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है।’ आगे मूर्ति ने कहा, ‘किसी भी अवार्ड मिलने से ज्यादा ख़ुशी मुझे लोगों की मदद करने में मिलती है।’

शशि थरूर ने भारत और दुनिया में लोकतंत्र पर आये संकट पर बात की

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दूसरे दिन आयोजित हुए एक सत्र में, लेखक त्रिपुरदमन सिंह और लेखक-राजनेता शशि थरूर ने भारत और दुनिया में लोकतंत्र पर आये संकट पर बात की। लोकतंत्र में जन आंदोलन की भूमिका पर बात करते हुए, थरूर ने कहा, सड़कें सिर्फ उन्हीं मुद्दों पर भरती हैं, जब किन्हीं नीतियों ने जनता के बड़े भाग को प्रभावित किया हो… नीतियाँ उन्हीं लोगों द्वारा बनाई जानी चाहिएं, जो ऑफिस में लोगों की ज़रूरतों पर काम करते हैं।

नोबेल प्राइज विजेता अब्दुलरज़ाक गुरनाह साझा किए अनुभव

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नोबेल प्राइज विजेता अब्दुलरज़ाक गुरनाह ने अपने जीवन के उन अनुभवों को साझा किया, जिन्होंने उनके लेखन को आकार दिया। याददाश्त और लेखन के सम्बन्ध पर बात करते हुए गुरनाह ने कहा, “मेरे लिए महत्वपूर्ण रहा कि मैं उन घटनाओं को नहीं भूला, जिन्हें अक्सर लोग भूल जाते हैं। हम हर दिन अपनी समझ से एक नई ही कहानी गढ़ लेते हैं| तो मेरे लिए महत्वपूर्ण था कि मैंने इन नई कहानियों के आगे घुटने नहीं टेके, और वही लिखा जो तब महसूस किया था।

रवीश कुमार जेएलएफ के मंच पर डर पर बोले

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वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार जेएलएफ के दूसरे दिन मंच पर थे। उनके साथ सवाल जवाब किये सत्यानंद निरपम एवं रवि सिंह ने। रवीश ने इस चर्चा में बताया कि उन्होंने कैसे अपने डर पर काबू किया। उन्होंने कहा, इसमें समय लगता है| उपनिवेशी मानसिकता से बहार निकलने में भी समय लगा। इससे भी बाहर निकलने में समय लगेगा, बहुत समय लगेगा… जब तक कि लोगों में बदलाव नहीं आएगा, जब तक उनमें जागरूकता नहीं आएगी। ये एक दिन की बात नहीं है… एक नागरिक होना सबसे मुश्किल काम है। मतदाता होना अलग प्रक्रिया है और नागरिक होना अलग…

हिंदी और भारत दोनों की ही पहचान काफी समृद्ध

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‘ग्लोबल हिंदी’ नाम से आयोजित एक सत्र में हिंदी के वैश्विक स्वरुप की संभावनाओं पर एक सार्थक बातचीत हुई| सत्र में मौजूद वक्ता संस्कृत के विद्वान ऑस्कर पुजोल, लेखक अभय के. सिंह और एडम बुकारोव्सकी ने हिंदी में अपने विचार व्यक्त करते हुए चर्चा को आगे बढ़ाया। स्पेन, पोलैंड और भारत के देशों से आये इन तीन वक्ताओं को एक ही जुबान बोलते देखना एक सुखद अनुभव था। हिंदी के वैध्विक स्वरुप पर बात करते हुए पुजोल ने कहा, “हिंदी के वैश्विक स्वरुप को समझने के लिए हमें दो पहलुओं पर ध्यान देना होगा। एक है बाहरी पहलु और दूसरा है आंतरिक। बाहरी पहलु के लिए विश्व में भारत की स्थिति, उसकी पहचान की बात करें तो इस मामले में हिंदी और भारत दोनों की ही पहचान काफी समृद्ध हुई है। आंतरिक स्वरुप के लिए हमें हिंदी को और महत्त्व देने की आवश्यकता है… इस स्थिति में भी पहले से बेहतर सुधार हुआ है।”

‘दायरा और धनक’ में जावेद अख्तर और शबाना आज़मी

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‘दायरा और धनक’ सेशन में अपने ज़माने के दो मशहूर शायरों, जां निसार अख्तर और कैफ़ी आज़मी का जिक्र चला। ‘दायरा’ और ‘धनक’ क्रमशः जां निसार अख्तर और कैफ़ी आज़मी की नज्मों का संग्रह है, जिनका संपादन जावेद अख्तर और शबाना आज़मी ने किया है। एक ही वक्त में पैदा हुए इन दो महान शायरों के माध्यम से उस दौर और नज्मों की कुछ सुहानी बातें श्रोताओं से साझा की गईं। अख्तर साहब ने 1930 में आये प्रगतिवादी आंदोलन और दोनों शायरों के लेखन पर उसके प्रभाव का जिक्र किया। इन दोनों शायरों में बहुत सी समानताएं तो हैं ही लेकिन एक बड़े अंतर का जिक्र करते हुए प्रसिद्ध अभिनेत्री शबाना ने बताया कि दोनों की नज्मों में औरत का तसव्वुर बिलकुल अलग है| ऐसी दिलचस्प चर्चाएँ श्रोताओं के लिए किसी ‘ट्रीट’ से कम नहीं है।

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