Jagdev Prasad : जयंती पर सबने की सियासत लेकिन मौत के रहस्य से आज तक नहीं उठा पर्दा, किसने मारा जगदेव को?

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Jagdev Prasad : जयंती पर सबने की सियासत लेकिन मौत के रहस्य से आज तक नहीं उठा पर्दा, किसने मारा जगदेव को?

Jagdev Prasad : जयंती पर सबने की सियासत लेकिन मौत के रहस्य से आज तक नहीं उठा पर्दा, किसने मारा जगदेव को?


पटना : ब्राह्मणवाद की कट्टर मुखालफत करने वाले समाजवादी नेता जगदेव प्रसाद की मौत (Jagdev Prasad News) से रहस्य का पर्दा नहीं ही उठ सका। वह भी तब जब बिहार की सत्ता पर पिछड़ों के मसीहा लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) और फिर सुशासन बाबू नीतीश कुमार (Nitish Kumar) काबिज रहे। उन्होंने करीब 35 साल तक सत्ता की बागडोर को थामकर न्याय की बात ही करते रहे। समाजवादी नेता लोहिया से प्रेरित होकर राजनीति में कदम बढ़ाने वाले जगदेव प्रसाद ने उनकी नीति को एक अलग आयाम दिया। उन्होंने बिहार में आक्रामक समाजवाद की नींव डाली।

जगदेव प्रसाद ने ऐसे बनाई पहचान

समाजवादी नेता लोहिया जी ने जहां नारा दिया… ‘संसोपा ने बांधी गांठ, पिछड़ा पावे सौ में साठ’। जगदेव प्रसाद ने इसे नए संदर्भ में पेश किया और एक नया नारा दिया। उन्होंने कहा कि ‘सौ में नब्बे शोषित हैं, शोषितों ने ललकारा है, धन, धरती और राजपाट में, नब्बे भाग हमारा है।’ और इसी नारे ने जगदेव प्रसाद की राजनीति को काफी धार दिया। इस कदम ने न केवल उन्हें मध्य बिहार के सबसे कद्दावर नेता के तख्त पर बिठा दिया बल्कि वे लेनिन के उपनाम से पहचाने जाने लगे।

पिछड़ी जाति की राजनीति… सवर्णों के निशाने पर जगदेव

पिछड़ों की राजनीति को आक्रामकता देने वाले जगदेव प्रसाद और लालू प्रसाद यादव के व्यक्तित्व को सबसे ज्यादा चर्चा उनसे जुड़े नारों के कारण मिला। जिसके बारे में यह ऑथेंसिटी नहीं कि क्या यह नारा सच में इन दोनों नेताओं ने दिया या उनके समर्थकों ने। जैसे अगड़ों के निशाने पर चढ़े जगदेव प्रसाद का दुर्भाग्य रहा कि… ‘अबकी सावन भादों में, गोरी कलाई कादो में’, को इस नारे से जोड़ कर देखा गया।

वहीं लालू प्रसाद के साथ जुड़ा एक नारा उन्हें कट्टर सवर्ण विरोधी करार देते हा। यह नारा था …’भूरा बाल साफ करो’

क्या थी जगदेव प्रसाद की राजनीतिक दिशा

जगदेव प्रसाद को एक ऐसे विद्रोही नेता के रूप में याद किया जाएगा जो जाति के सवाल को कार्ल मार्क्स के दर्शन के साथ जोड़ कर देखते थे। यही वजह भी है कि उन्हें बिहार का लेनिन भी कहा जाने लगा। वे ऐसे विद्रोही थे जो नीति के आइने में फलाफल देखते थे, किसी के व्यक्तित्व के आइने में नहीं। और इसका सबसे सटीक उदाहरण है तब देखने को मिला जब लोहिया की सरपरस्ती में बिहार में समाजवादियों की सरकार बनी। उस समय लोहिया के नारे यानी ‘पिछड़ा पावे सौ में साठ’ के अनुकूल सरकार में भागीदारी नहीं मिली तो वे बिगड़ गए। जगदेव प्रसाद ने पहले लोहिया से शिकायत की और जब उनकी शिकायत पर अमल नहीं किया गया तो उन्होंने 100 में 90 की भागीदारी का नारा देकर शोषित दल बनाया। इस शोषित दल की मजबूती का आशय इसी से लगा सकते हैं कि 1967 से 1972 के बीच जो भी सरकार बनी बगैर शोषित दल के साथ लिए नहीं बनी। हालांकि, जैसे ही सत्ता में शोषित की भागीदारी नहीं मिलती वह विरोधी तेवर दिखाते और सरकार गिर जाती।

क्या हुआ था 5 सितंबर 1974 को

5 सितंबर 1974 को क्या हुआ था इसे समझने के लिए कुर्था विधानसभा का चुनाव और जगदेव प्रसाद के बारे में कुछ जानकारी रखनी होगी। चुनावी राजनीति में जगदेव प्रसाद 1967 में कुर्था विधानसभा से चुनाव में विजयी हुए। इसी के साथ वो विधायक और मंत्री भी बने। परंतु 1974 के विधानसभा में एक नया समीकरण बना जो उस नारे के विरुद्ध बना जिसमे कहा गया था कि ‘अब के सावन भादों में, गोरी कलाई कादो में।’ इस नारे के विरुद्ध लड़ाई में कांग्रेस के नेता रामाश्रय सिंह की जीत हुई। फिर यहां से पिछड़ा और अगड़ा की लड़ाई का केंद्र बना मध्य बिहार खास कर जहानाबाद कुर्थ का क्षेत्र।

इस वैमनस्य के बीच आया वह दिन 5 सितंबर 1974 का। दरअसल, जगदेव प्रसाद ने खुद को जेपी के छात्र आंदोलन से खुद को अलग कर लिया। उन्होंने बस इस बात के लिए ये कदम उठाया कि इस आंदोलन में शोषितों की भागीदारी मनोकुल नहीं थी। उन्होंने अपने तरीके से एक स्वतंत्र आंदोलन की नींव रखी। इसी आंदोलन के दौरान जगदेव प्रसाद अरवल जिले की कुर्त्था प्रखंड में सत्याग्रह करने पहुंचे। यहीं गोलियां चली और उनकी मृत्यु हो गई।

दो तर्क और दो एफआईआर

इस गोली कांड को लेकर दो तर्क सामने आए। एक तो यह कि एक खास जाति के खास नेता ने जान बूझकर पुलिसिया कार्रवाई के नाम पर उनकी हत्या करा दी। दूसरा पक्ष था कि आंदोलनकारी उग्र हो गए और पुलिस को मजबूरन गोली चलानी पड़ी। एफआईआर के बारे में भी दो बात सामने आई। एक तो यह कि उग्र आंदोलन को दबाने के लिए गोली चली। दूसरा एफआईआर के बारे में एक स्थानीय बुकलेट में चर्चा थी कि दो अज्ञात हत्यारों ने जनसभा के दौरान जगदेव प्रसाद पर गोलियां चला दी। पुलिस की तरफ से कोई फायरिंग नहीं की गई।

यह भी आश्चर्य है कि पिछड़ों की बात करने वाले लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार भी शहीद जगदेव प्रसाद की मौत से पर्दा नहीं उठा सके। उल्टे नीतीश कुमार पर तो यह आरोप भी लगा कि जगदेव प्रसाद की हत्या के जो साजिशकर्ता थे उन्हें 2005 की एनडीए सरकार में शामिल किया गया। यही नहीं उन्हें नीतीश कुमार के सबसे करीबी नेता में शुमार भी किया जाता था।

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