Interview: हमारे पेशे में कुछ नहीं छुपता, शादी जब होगी तो पता चल जाएगा: सिद्धार्थ मल्होत्रा

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Interview: हमारे पेशे में कुछ नहीं छुपता, शादी जब होगी तो पता चल जाएगा: सिद्धार्थ मल्होत्रा

Interview: हमारे पेशे में कुछ नहीं छुपता, शादी जब होगी तो पता चल जाएगा: सिद्धार्थ मल्होत्रा

‘स्टूडेंट ऑफ द ईयर’ से अपने करियर की शुरुआत करने वाले सिद्धार्थ मल्होत्रा ने फिल्म ‘शेरशाह’ से एक्टर के रूप में पॉपुलैरिटी हासिल की तो ‘थैंक गॉड’ में एक अलहदा अंदाज में नजर आए। हाल-फिलहाल वह चर्चा में हैं ओटीटी पर नजर आने वाली अपनी फिल्म ‘मिशन मजनू’ से। इस फिल्म में सिद्धार्थ मल्होत्रा एक जासूस के रोल में नजर आएंगे। इसके अलावा सिद्धार्थ के पास रोहित शेट्टी की सीरीज ‘इंडियन पुलिस फोर्स’ भी है। एक तरफ जहां सिद्धार्थ अपनी फिल्मों के कारण चर्चा में हैं तो दूसरी ओर कियारा आडवाणी संग शादी को लेकर भी। कहा जा रहा है कि सिद्धार्थ 8 फरवरी को कियारा के साथ सात फेरे लेंगे। सिद्धार्थ मल्होत्रा ने नवभारत टाइम्स के साथ एक्सक्लूसिव बातचीत में अपनी फिल्मों और करियर पर ही नहीं कियारा संग शादी पर भी बात की।

‘शेरशाह’ में कैप्टन बत्रा जैसा देशभक्त किरदार निभाने के बाद क्या ‘मिशन मजनू’ जैसे स्पाई थ्रिलर को करने का क्या कारण रहा?
-‘शेरशाह’ को लोगों ने पसंद किया, मेरे किरदार की सराहना हुई। कैप्टन बत्रा की कहानी से लोग जज्बाती रूप से जुड़े। जब किसी कलाकार को ऐसा अद्भुत प्यार मिलता है, तो फिर लगता है कि उस तरह की भूमिकाओं को लेकर आगे बढ़ा जाए। मिशन मजनूं एक बेनाम हीरो की कहानी है, जो स्पाई है और उसमें भी एक कलाकार के रूप में परफॉर्मेंस के कई अवसर हैं। मुझे पहली बार एक जासूस का चरित्र करने का मौका मिला है। यह एक अलग किस्म का हीरो है। परफॉर्मेंस लेवल पर एक अभिनेता को आगे तो बढ़ाता है ये रोल साथ ही मनोरंजन भी करता है।

आर्मी बैकग्राउंड से होने के नाते आप पर उस पृष्ठभूमि का कितना प्रभाव रहा?
-मेरे दादू (दादा) ने इंडियन आर्मी में काम किया है। इंडो-चाइना की लड़ाई भी लड़ी है और वो उसे लड़ाई में जख्मी भी हुए थे। हालांकि जब वह गुजरे, तब मैं बहुत छोटा था, लेकिन बहुत किस्से सुने हैं कि एक एक परिवार किस तरह से जूझता है, जब उस परिवार का ही कोई सरहद पर लड़ रहा होता है। उस जमाने में तो इन्फोर्मेशन बहुत देर से आती थीं या चिट्ठियां आती थीं, वो भी काफी समय बाद, तो यह हमेशा मेरे जेहन में रहता है कि इन जवानों का लोगों तक पहुंचना बहुत जरूरी है। आज के युवाओं के लिए ये जानना जरूरी है कि यह आजादी और यह लोकतंत्र जो आज हम जी रहे हैं, हमारे पास है, उसके लिए कितने लोग हैं, जो अपनी जान पर खेल कर हमारी सुरक्षा, हमारी आजादी को बचा रहे हैं, तो मुझे लगता है इस फिल्म के जरिए मेरा एक छोटा सा कंट्रीब्यूशन है कि जैसे लोगों ने कैप्टन विक्रम बत्रा की कहानी देखी, उसी तरह ‘मिशन मजनू’ में एक जासूस की कहानी देखेंगे।

फिल्म गणतंत्र दिवस के आस-पास स्ट्रीम हो रही है, आपके लिए देशभक्ति की परिभाषा क्या है ?
-मेरे लिए देशभक्ति वह है कि आप अपने मोहल्ले में लोगों से कैसे पेश आते हैं। चाहे ह किसी भी धर्म, वर्ग या समुदाय के हों, अमीर-गरीब हों, मेरे लिए देशभक्ति वही है, जब मैं सभी को कम्युनिटी कनेक्ट के साथ देखूं। मेरे लिए तो देश तभी बनता है, जब उसके लोग एक साथ रहें। मेरी हमेशा से एक कोशिश रही है कि जिन लोगों के साथ हम काम कर रहे हैं और जिन लोगों के साथ हमारा उठना-बैठना है, उनसे हम सम्मान और समानता से पेश आएं। मुझे लगता है जो एक चीज सबसे जरूरी है वो है इंसानियत और इससे आप एक देश को बेहतर जगह बना सकते हैं। सरहद पर बहुत सारे सैनिक हैं, जो लड़ रहे हैं, लेकिन हर कोई जा कर नहीं लड़ सकता है। मगर आपका योगदान देश के लिए ये तो हो सकता है कि आप अच्छे से रहें।
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स्कूल या कॉलेज में कभी आपने अपने हक के लिए आवाज उठाई है?
-बचपन में तो ऐसा मौका नहीं मिला। मगर फिल्मों में देशभक्ति के रंग में रंगे किरदार जी कर संतोष हो रहा हूं। मैं दिल्ली यूनिवर्सिटी से पढ़ा हूं,तो हमारा जो घर है, वो इंडिया गेट के आस-पास ही है। 26 जनवरी को सुबह उठ कर रिपब्लिक डे की परेड देखने की आदत हमारे दादू ने ही डाली थी। तब गर्व से सिर ऊंचा होता था और सीना चौड़ा हो जाता था।

जब भी हम स्पाई थ्रिलर फिल्मों की बात करते हैं, तो हमारे पास मात्र एक पाकिस्तान का एंगल होता है। ऐसा क्यों?
-दरअसल इतिहास में जा कर देखा जाए, तो तो जितनी भी अहम जंग या बवाल हुए हैं और उनमें हमारे आर्मी के लोगों ने जान दी है, वो हमारे पड़ोसी देश के साथ ही रहे हैं। तो वो एक फैक्चुअल चीज है। अगर आपको कारगिल दिखाना है तो आपको पाकिस्तान का एंगल दिखाना ही पड़ेगा। हालांकि ‘शेरशाह’ के समय हम कभी उस तरफ गए ही नहीं कि वो लोग क्या कहना चाहते हैं, क्योंकि यह एक फैक्चुअल लड़ाई रही है और हमने उसको आर्मी टू आर्मी तक रखा। ‘मिशन मजनू’ से भी हमारा यही उद्देश्य है कि हम उसको एक मिशन तक ही रखें। हमने न वहां की पॉलिटिक्स पर फोकस किया है न ही वहां के लोगों को टारगेट किया है। हमने सिर्फ उतना दिखाया है, जो पब्लिक डोमेन में है। हां, लेकिन यह तो बदकिस्मती है कि हमेशा एक ही दुश्मन का नाम आता है।

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कोई कसक है कि काश फिल्म थिएटर में रिलीज होती ?
-मुझे लगता है ये कॉल प्रोड्यूसर का है और मैं प्रोड्यूसर नहीं हूं। अगर आज के दौर के हिसाब से देखें, तो मनोरंजन को देखने का लोगों का नजरिया बदल गया है और शेरशाह उसके एक बहुत बड़ा उदाहरण है। मुझे लगता है अच्छी फिल्म हर जगह रंग लाती है। हालांकि मेरा लॉन्च एक हिंदी फिल्म में हुआ है और थिएटर हमेशा से हमारे लिए एक प्यार की तरह है, लेकिन मुझे लगता है सिनेमा हॉल कहीं जा नहीं रहा है। लेकिन आज के दौर में ओटीटी जैसे प्लैटफॉर्म हैं, जो असीमित दर्शक वर्ग दे रहे हैं।

बॉयकॉट ट्रेंड के बारे में क्या कहेंगे आप ?
-मुझे लगता है कि ये सोशल मीडिया का एक नया ट्रेंड है, जहां हर कोई ये समझता है कि यार हमको तो कमेंट करना ही है। और फिर लोग समझते हैं कि अगर मुझे कुछ पसंद नहीं आया, तो आपको भी पसंद नहीं आना चाहिए। मुझे लगता है लोगों को तकलीफ तब होती है, जब उनकी सोच किसी और की सोच से नहीं मिलती है। अगर किसी एक को फिल्म अच्छी लगी, तो वो चाहेंगे सामने वाले को भी अच्छी लगे। अगर किसी को बुरी लगी, तो नहीं चाहेगा कि सामने वाले को अच्छी लगे। मुझे नहीं लागत है कि ऐसी बकवास से किसी भी फिल्म को इफेक्ट हो सकता है। जो अच्छी फिल्में हैं, अच्छा कॉन्टेंट है, वो हमेशा चलता है। मैं इन चीजों को ज्यादा गंभीरता से नहीं लेता। मुझे लगता है, जिन चीजों पर अपना नियंत्रण नहीं है, उन चीजों पर ध्यान देने का कोई मतलब नहीं।

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युवाओं को क्या मेसेज देना चाहेंगे?

-मुझे लगता है मेंटल हेल्थ बहुत ही जरूरी मुद्दा है आज के दौर में, क्योंकि सोसायटी में बहुत सारे बदलाव आए हैं महामारी के बाद। आदमी सबसे ज्यादा तकलीफ में तब होता है, जब वो अकेला महसूस करता है। तो आप एक सोसायटी के तौर पर कोशिश करें कि सबको साथ लेकर चलें। हम एक-दूसरे का ख्याल रखें।

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रश्मिका मंदाना के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा ?
-रश्मिका की ये पहली हिंदी फिल्म थी हालांकि रिलीज 2 नंबर पर हो रही है। इससे पहले उनकी गुडबाय आ गई। मुझे लगता है सेट पर वो बहुत आसानी से चीजों को अपना लेती हैं। एक को एक्टर के तौर पर को बहुत ही कंफर्टेबल हैं। सजेशन के लिए हमेशा ओपन रहती हैं, तो सेट का माहौल अच्छा रहता है। फिटनेस फ्रीक इतनी हैं कि तो मुझे लगा कि वो लखनऊ वर्कआउट करने आई थी और बीच-बीच में शूटिंग कर रही थी। उनके साथ काम करके बहुत मजा आया।

आठ फरवरी को आप कियारा आडवाणी से शादी कर रहे हैं, ये खबरें लगातार चल रही है। शादी की खबरों को कैसे लेते हैं?
-मेरे बारे में तो पिछले साल भी और इस साल भी इतने डेट्स आ चुके हैं। तो मैं हैरान होता हूं जब लोग इतने कॉन्फिडेंस से बोलते हैं, लेकिन मैं यही कहना चाहूंगा कि हमारे प्रोफेशन में कोई सीक्रेट रहता नहीं है और खासतौर पर जब आप शादी जैसी चीज करते हैं, तब उसमे क्या छुपाना है। तो शादी जब भी होगी, लोगों को पता चल ही जाएगा।