Indira Gandhi News: ‘इंदिरा इज इंडिया और इंडिया इज इंदिरा’ वाली कहानी पता है आपको, तब जेपी ने भरी थी हुंकार

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Indira Gandhi News: ‘इंदिरा इज इंडिया और इंडिया इज इंदिरा’ वाली कहानी पता है आपको, तब जेपी ने भरी थी हुंकार

Indira Gandhi News: ‘इंदिरा इज इंडिया और इंडिया इज इंदिरा’ वाली कहानी पता है आपको, तब जेपी ने भरी थी हुंकार

पटना: यह वो समय था जब ‘इंडिया इज इंदिरा और इंदिरा इज इंडिया’ का नारा बुलंद था। राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा होती थी कि तब देवकांत बरुआ सरीखे नेताओं का दरबार लगा करता था। इस खास समय में समाजवादी नेता राजनारायण और इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) आमने-सामने हो गए। वजह थी रायबरेली लोकसभा का चुनाव। जिसमें आरोप यह लगा कि इंदिरा गांधी की जीत सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग की जीत है। फिर साल 1971 में मिली हार के खिलाफ और इंदिरा गांधी की इस जीत को इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad Highcourt) में चुनौती दे दी गई।

कोर्ट से इंदिरा गांधी को मिली शिकस्त

समाजवादी नेता राजनारायण के वकील शांति भूषण ने कोर्ट में मशीनरी के दुरुपयोग को साबित कर दिया। तब माननीय न्यायाधीश ने जनप्रतिनिधित्व कानून के अनुसार उनका सांसद चुना जाने को ही अवैध ठहराया। और छह साल तक चुनाव लड़ने पर भी रोक लगा दी। तब राजनीतिक जगत में शांति भूषण के उस दलील की काफी चर्चा हुई जिसके कारण मशीनरी का दुरुपयोग माना गया। वह किस्सा कुछ यूं था कि वकील शांतिभूषण ने बकौल एक उद्धरण कोर्ट को बताया कि प्रधानमंत्री के सचिव यशपाल कपूर ने राष्ट्रपति की ओर से उनका इस्तीफा मंजूर होने से पहले ही इंदिरा गांधी के लिए काम करना शुरू कर दिया था। यह सरकारी मशीनरी के दुरूपयोग नहीं तो और क्या है? न्यायाधीश जगमोहन लाल सिंह इस तर्क से सहमत हुए और रायबरेली लोकसभा चुनाव 1971 को अवैध ठहराया।

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6 साल चुनाव न लड़ने के फैसले ने बढ़ा दी परेशानी

कहा जाता है कि तब कांग्रेस के अंदर अदालत के इस फैसले को लेकर काफी गुस्सा था। छह साल चुनाव न लड़ने की बाध्यता के कारण इंदिरा गांधी राज्यसभा में भी नही जा सकती थी। अब उनके पास प्रधानमंत्री पद छोड़ने के सिवा कोई दूसरा रास्ता नहीं था। राजनीतिक जगत में इस बात की चर्चा थी कि ऐसे में नया प्रधानमंत्री बनाने को लेकर कांग्रेस के भीतर चर्चा भी हुई। किसी अन्य वरीय कांग्रेसी को प्रधानमंत्री बना दिया जाए। कहा जाता है कि समस्या को हल करने के प्रयास शुरू हुए। मगर तब इंदिरा गांधी को अपनी पूरी पार्टी में किसी पर भी विश्वास नहीं था।

तब कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष डीके बरुआ ने इंदिरा गांधी को सुझाव दिया कि अंतिम फैसला आने तक वे कांग्रेस अध्यक्ष बन जाएं और उन्हें प्रधानमंत्री का पद सौंप दें। लेकिन बरुआ के इस निर्देश का जबरदस्त विरोध हुआ। खुद संजय गांधी ऐसा नहीं चाहते थे। संजय गांधी ने तब अपनी मां को कमरे से बाहर ले जाकर सलाह दी कि वे इस्तीफा न दें और प्रधानमंत्री का पद भी किसी और को न दें। ऐसा किया तो फिर वह व्यक्ति प्रधानमंत्री के पद को छोड़ेगा ही नहीं। तब पार्टी पर पकड़ आपकी खत्म हो जाएगी। इंदिरा गांधी अपने बेटे संजय गांधी की ही बात मानी।

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लोकनायक की हुंकार और इंदिरा गांधी

यह वो समय था जब गुजरात में छात्र आंदोलन चल रहे थे। बिहार में इस आंदोलन का नेतृत्व जयप्रकाश नारायण के हाथों में था। इंदिरा गांधी की ओर से लोकतंत्र की हत्या प्रसंग को लेकर 25 जून को दिल्ली के रामलीला मैदान में जयप्रकाश नारायण की रैली थी। तब जेपी ने इंदिरा गांधी के ऊपर देश में लोकतंत्र का गला घोटने का आरोप लगाते स्टूडेंट्स, सैनिकों और पुलिस वालों से खास अपील की। उन्होंने कहा कि वे लोग इस दमनकारी निरंकुश सरकार के आदेशों को ना मानें। ऐसा इसलिए कि कोर्ट के निर्णय के बाद भी इंदिरा गांधी ने पीएम पद से इस्तीफा नहीं दिया था।

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किन कारणों से लाया गया आपातकाल

लोकनायक के इस हुंकार से इंदिरा गांधी अनिर्णय की स्थिति में थी। कहा जाता है कि तब संजय गांधी के साथ शीर्ष नेताओं ने भी इंदिरा गांधी को आपातकाल लगाने की सलाह दी। बस फिर इंदिरा गांधी ने अमल किया। हालांकि इसके अलावा भी कई कारणों की चर्चा होती है। उनमें से प्रमुख था देश भर में इंदिरा गांधी के विरुद्ध आक्रोश का बढ़ना। कोर्ट के निर्देश के आगे भी इंदिरा गांधी बेबस हो गईं थी। ऐसा इसलिए क्योंकि इंदिरा गांधी अब संसद में वोट नहीं डाल सकती थी। पार्टी के अन्य नेताओं पर भी इनका भरोसा बन नहीं रहा था। साथ ही इंदिरा गांधी के भीतर यह डर भी समा गया था कि कहीं सेना विद्रोह कर कहीं तख्ता पलट न कर दे।

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