India President Election: किसको मिली सबसे अधिक और कम वोटों से जीत, कौन जीता निर्दलीय, कौन रहा सबसे लंबे समय तक राष्ट्रपति, Five Facts | India Presidential Election: Who won the most and least votes ever | Patrika News

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India President Election: किसको मिली सबसे अधिक और कम वोटों से जीत, कौन जीता निर्दलीय, कौन रहा सबसे लंबे समय तक राष्ट्रपति, Five Facts | India Presidential Election: Who won the most and least votes ever | Patrika News

India President Election: किसको मिली सबसे अधिक और कम वोटों से जीत, कौन जीता निर्दलीय, कौन रहा सबसे लंबे समय तक राष्ट्रपति, Five Facts | India Presidential Election: Who won the most and least votes ever | Patrika News

1. सबसे पहले राष्ट्रपति और सबसे अधिक समर्थन राजेंद्र प्रसाद – 1957: भारत में सबसे बड़ी जीत का रिकॉर्ड तीन बड़े नामों के पास है। इनमें एक नाम देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद का है। जिन्हें 1957 में दूसरी बार राष्ट्रपति चुनाव में मौका दिया गया था। उन्हें एक इस चुनाव में चौधरी हरिराम और नागेंद्र नारायण दास से चुनौती मिली। जहां प्रसाद ने एकतरफा मुकाबले में 4,59,698 वोट हासिल किए और उन्हें कुल 98 प्रतिशत से अधिक वोट मिले। वहीं चौधरी हरिराम को 2672 वोट और नागेंद्र दास को 2000 वोट मिले। बता दें प्रसाद 1962 तक राष्ट्रपति पद पर रहे और इस तरह सबसे अधिक करीब 12 साल तक देश के राष्ट्रपति बने रहे।

सर्वपल्ली राधाकृष्णन – 1962: राजेंद्र प्रसाद का राष्ट्रपति कार्यकाल खत्म होने के बाद भारत के तीसरे राष्ट्रपति चुनाव 1962 में हुए। कांग्रेस ने इस चुनाव में उपराष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन को चुनाव लड़ाया। उन्हें 5,53,067 वोट मिले, जबकि चौधरी हरिराम को छह हजार से कुछ ज्यादा वोट हासिल हुए। एक तीसरे उम्मीदवार यमुना प्रसाद त्रिसुलिया को 3,537 वोट मिले थे। सबसे बड़ी जीत के मामले में यह एक बड़ा रिकॉर्ड है।

केआर नारायणन – 1997: राष्ट्रपति चुनाव के इतिहास में 1997 के चुनाव को सबसे एकपक्षीय चुनाव कहा जाए तो इसमें कोई दोराय नहीं है। दरअसल, इस चुनाव में यूनाइटेड फ्रंट सरकार और कांग्रेस की तरफ से केआर नारायणन को प्रत्याशी बनाया गया था। तब विपक्ष में बैठी भाजपा ने भी नारायणन को समर्थन देने का एलान किया। मजेदार बात यह है कि इस चुनाव में नारायणन के खिलाफ टीएन शेषन ने चुनाव लड़ा, जो कि चुनाव आयोग में सुधार के लिए जाने जाते थे। अपनी कार्यशैली की वजह से राजनीतिक दलों से दूरी बना चुके शेषन की यही कमी राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों में भी दिखी। जहां केआर नारायणन को 9,56,290 वोट मिले, वहीं शेषन महज 50,361 वोट ही हासिल कर सके और उनकी जमानत तक जब्त हो गई। इस चुनाव में शेषन को सिर्फ शिवसेना और कुछ निर्दलीयों का समर्थन मिला था।

एपीजे अब्दुल कलाम – 2002: भाजपा ने इस राष्ट्रपति चुनाव में एपीजे अब्दुल कलाम आजाद को उम्मीदवार बनाकर मास्टरस्ट्रोक खेला और जीत के अंतर के लिहाज से बड़ी जीत तय की। दरअसल, राष्ट्रपति पद के लिए पूर्व वैज्ञानिक और मुस्लिम को उम्मीदवार बनाकर भाजपा ने विपक्ष को ऊहापोह की स्थिति में डाल दिया। आखिरकार कांग्रेस समेत अधिकतर विपक्षी दलों ने कलाम को ही समर्थन देने का फैसला किया। हालांकि, वाम दलों ने इस चुनाव में भी कैप्टन लक्ष्मी सहगल को प्रत्याशी बनाया। इसके बावजूद यह इतिहास के सबसे एकतरफा मुकाबलों में से एक रहा। जहां अब्दुल कलाम को 10,30,250 वोटों में से 9,22,884 वोट मिले, वहीं सहगल महज 1,07,366 जुटा सकीं।

2. सबसे करीबी मुकाबले में किसे मिली जीत? संजीव रेड्डी बनाम वीवी गिरी – 1977: स्वतंत्र भारत के सबसे विवादित चुनावों में से एक 1969 के राष्ट्रपति चुनाव सबसे करीबी मुकाबलों में से एक रहे। यह वह दौर था, जब कांग्रेस में दो धड़ों के बीच पार्टी को लेकर जंग छिड़ी थी। इनमें एक धड़ा प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के समर्थन वाला था, जबकि दूसरा धड़ा पार्टी संगठन के वरिष्ठ नेताओं- ‘सिंडिकेट’ का था। कांग्रेस संगठन ने नीलम संजीव रेड्डी को उम्मीदवार घोषित किया। इंदिरा गांधी ने वोटिंग से ऐन पहले अपना समर्थन निर्दलीय खड़े वीवी गिरी को दे दिया। इंदिरा ने पार्टी सांसदों और विधायकों से अपील की कि वे अंतरात्मा की आवाज सुनें और वीवी गिरी को वोट दें।

इस चुनाव में वीवी गिरी को 4,01,515 वोट मिले, तो वहीं नीलम संजीव रेड्डी सिर्फ 3,13,548 वोट ही जुटा सके। एक और उम्मीदवार सीडी देशमुख को इस चुनाव में 1,12,769 वोट मिले। यानी नीलम संजीव रेड्डी एक करीबी मुकाबले में हार गए। इसके अलावा 12 और उम्मीदवार राष्ट्रपति चुनाव की दौड़ में शामिल थे।

जाकिर हुसैन – 1967: भारत के इतिहास में चौथा राष्ट्रपति चुनाव भी काफी करीबी साबित हुआ। दरअसल, इसमें कांग्रेस की ओर से उपराष्ट्रपति जाकिर हुसैन को उम्मीदवार बनाया गया। विपक्ष ने इस चुनाव में 1967 में ही रिटायर हुए चीफ जस्टिस कोका सुब्बाराव को उम्मीदवार बनाया। हालांकि, इन चुनावों में सिर्फ यही दो प्रत्याशी नहीं थे, बल्कि कुल 17 लोग खड़े हुए थे। जहां जाकिर हुसैन को 4,71,244 वोट पाकर जितने में सफल रहे। सुब्बाराव को 3,63,971 वोट मिले। उधर 17 में से नौ उम्मीदवार तो इन चुनाव में खाता तक नहीं खोल पाए थे। कोई वोट न पाने वालों में चौधरी हरिराम का नाम भी शामिल रहा था।

3. कौन चुना गया राष्ट्रपति चुनाव में निर्विरोध?
1977: राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के निधन के बाद उपराष्ट्रपति बीडी जट्टी ने कार्यकारी राष्ट्रपति के तौर पर पद संभाला। हालांकि, अगले चुनाव छह महीने के अंदर ही कराए जाने थे। इस चुनाव के लिए 37 उम्मीदवारों ने नामांकन दाखिल किया। लेकिन स्क्रूटनी में सिर्फ एक को छोड़कर सभी नामांकन रद्द हो गए। इकलौता बचा नामांकन नीलम संजीव रेड्डी का था। रेड्डी निर्विरोध राष्ट्रपति बनने वाले पहले और अब तक की इकलौती शख्सियत हैं।

4. लगातार चार बार कौन लड़ा राष्ट्रपति चुनाव?
भारत के 65 वर्षों के राष्ट्रपति चुनाव के इतिहास में एक उम्मीदवार ऐसा भी रहा, जिसने 1952 से लेकर 1967 तक लगातार उम्मीदवारी पेश की। यहां तक कि दो बार- 1957 और 1962 में यह प्रत्याशी दूसरे स्थान पर भी रहा। लेकिन कभी राष्ट्रपति नहीं बन पाया। यह उम्मीदवार थे चौधरी हरिराम, जो कि ब्रिटिश राज के क्रांतिकारी सर छोटूराम के परिवार से थे। जब 1952 में यह तय था कि राजेंद्र प्रसाद निर्विरोध राष्ट्रपति बन जाएंगे, तब चौधरी हरिराम ने उन्हें चुनौती दी। इसके बाद 1957 में वे लोकसभा और राष्ट्रपति चुनाव दोनों लड़े और दोनों में हारे। 1962 में उन्होंने सर्वपल्ली राधाकृष्णन को चुनौती दी और दूसरे स्थान पर आए। उन्हें अब तक के सबसे ज्यादा 6341 वोट मिले। हालांकि, उनका आखिरी चुनाव 1967 का राष्ट्रपति चुनाव रहा। इसमें उन्हें एक भी वोट नसीब नहीं हुआ।

5. राष्ट्रपति चुनाव में जीतने वाला इकलौते निर्दलीय कौन?
साल 1977 में कांग्रेस में दो धड़ों के बीच पार्टी को लेकर जंग छिड़ी हुई थी। कांग्रेस संगठन ने नीलम संजीव रेड्डी को उम्मीदवार घोषित किया, जबकि पार्टी नेतृत्व के खिलाफ खड़ीं पीएम इंदिरा गांधी ने पार्टी सांसदों और विधायकों से अपील की कि वे अंतरात्मा की आवाज सुनें और निर्दलीय वीवी गिरी को वोट दें। वीवी गिरी ने छोटे अंतर से जीत हासिल की और इकलौते निर्दलीय विजेता बने।

वीवी गिरी को इसमें 4,01,515 वोट मिले, तो वहीं नीलम संजीव रेड्डी सिर्फ 3,13,548 वोट ही जुटा सके। एक और उम्मीदवार सीडी देशमुख को इस चुनाव में 1,12,769 वोट मिले। इसके अलावा 12 और उम्मीदवार राष्ट्रपति चुनाव की दौड़ में शामिल थे। इस चुनाव के बाद ही गंभीरता से चुनाव न लड़ने वाले उम्मीदवारों को बाहर करने के लिए कानून बनाया गया। उधर रेड्डी की हार के बाद कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष एस निजालिंगप्पा ने इंदिरा को पार्टी से निकाल दिया और कांग्रेस दो धड़ों में बंट गई।

25 जुलाई को ही क्यों लेते हैं शपथ आज मतगणना के बाद 25 जुलाई को नए राष्ट्रपति शपथ लेंगे…सांसदों के वोटों के रुझान से तय माना जा रहा है कि एनडीएन की उम्मीदवार मुर्मू की जीत तय है। इसके लिए अभी से तैयारियां शुरू हो गईं हैं। राष्ट्रपति को देश के मुख्य न्यायाधीश शपथ दिलाएंगे। अगर किसी कारण से चीफ जस्टिस उपस्थित नहीं हो पाते हैं तो सुप्रीम कोर्ट के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश के सामने राष्ट्रपति शपथ लेते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि ये शपथ समारोह 25 जुलाई को ही क्यों होता है? आखिर भारत के राष्ट्रपति किस चीज की शपथ लेते हैं?

देश में 26 जनवरी 1950 को गणतंत्र लागू हुआ। उसी दिन डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद देश के पहले राष्ट्रपति बने थे। तब तक देश में लोकसभा चुनाव नहीं हुए थे। 1951-52 में पहली बार लोकसभा और राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए। इसके बाद राष्ट्रपति चुनाव हुए। डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद 13 मई 1952 को जीतकर फिर से इस पद पर पहुंचे। 1957 में लगातार दूसरी बार जीतकर डॉक्टर प्रसाद राष्ट्रपति बने। डॉक्टर प्रसाद 12 साल तक इस पद पर रहे। 13 मई 1962 को उनका कार्यकाल पूरा हुआ और डॉक्टर राधाकृष्णन देश के दूसरे राष्ट्रपति बने। उन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया।

पांच साल बाद 13 मई 1967 को डॉक्टर जाकिर हुसैन देश के तीसरे राष्ट्रपति बने। डॉक्टर हुसैन अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके। 3 मई 1969 को उनका निधन हो गया। हुसैन के निधन के बाद उप-राष्ट्रपति वीवी गिरि कार्यवाहक राष्ट्रपति बने। इसके बाद होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार बनने के बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।

वीवी गिरि के इस्तीफे के बाद उस वक्त सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद हिदायतउल्ला कार्यवाहक राष्ट्रपति नियुक्त हुए। चुनाव प्रक्रिया पूरी होने के बाद 24 अगस्त 1969 को वीवी गिरि नए राष्ट्रपति बने। गिरि ने अपना कार्यकाल पूरा किया।

गिरि के बाद 24 अगस्त 1974 को फखरुद्दीन अली अहमद नए राष्ट्रपति बने। अहमद कार्यकाल पूरा नहीं कर पाने वाले दूसरे राष्ट्रपति बने। 11 फरवरी 1977 को उनका निधन हो गया। अहमद के निधन के बाद उप-राष्ट्रपति बीडी जत्ती कार्यवाहक राष्ट्रपति बने।

इसके बाद चुनाव हुए। चुनाव के बाद 25 जुलाई 1977 को नीलम संजीव रेड्डी देश के नए राष्ट्रपति बने। तब से लेकर अब तक हर राष्ट्रपति ने अपना कार्यकाल पूरा किया है। इसी वजह से 25 जुलाई को नए राष्ट्रपति शपथ लेते हैं। तब से अब तक नौ राष्ट्रपति 25 जुलाई को शपथ ले चुके हैं।

जानिए किस चीज की शपथ लेंगे राष्ट्रपति (President Oath)? संवैधानिक पदाधिकारियों की शपथ का उल्लेख भारतीय संविधान की अनुसूची 3 में है। हालांकि, इसमें राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और राज्य के राज्यपालों की शपथ का उल्लेख नहीं है। इन संवैधानिक पदों के लिए शपथ समारोह का उल्लेख अलग-अलग अनुच्छेद में किया गया है। मसलन राष्ट्रपति की शपथ का उल्लेख अनुच्छेद 60, उपराष्ट्रपति की शपथ का उल्लेख अनुच्छे 69 और राज्यपाल की शपथ का उल्लेख अनुच्छेद 159 में किया गया है…बता दें, राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह में भारत के मुख्य न्यायाधीश के अलावा उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, लोकसभा के अध्यक्ष, राज्यसभा के उप सभापति, केंद्रीय मंत्री समेत अन्य कई हस्तियां शामिल होंगी।

राष्ट्रपति ये लेंगे शपथ… “मैं (नाम) ईश्वर की शपथ लेता/लेती हूं कि मैं श्रद्धापूर्वक भारत के राष्ट्रपति के पद का कार्यपालन करूंगा/करूंगी तथा अपनी पूरी योग्यता से संविधान और विधि का परिरक्षण, संरक्षण और प्रतिरक्षण करूंगा/करूंगी, और मैं भारत की जनता की सेवा और कल्याण में निरत रहूंगा/रहूंगी।”

अगर राष्ट्रपति अंग्रेजी में शपथ लेते हैं तो…वह शपथ लेंगे “I, (NAME)., do swear in the name of God/solemnly affirm that I will faithfully execute the office of President (or discharge the functions of the President) of India and will to the best of my ability preserve, protect and defend the Constitution and the law and that I will devote myself to the service and well-being of the people of India.”.



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