सौर और वायु ऊर्जा के क्षेत्र में 2020 तक तीन लाख श्रमिकों को मिलेगा रोजगार का अवसर

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अंतरराष्ट्रीय श्रमिक संगठन ने आज अपनी एक रिपोर्ट के माध्यम से यह बताया है कि देश के नवीकरणीय ऊर्जा के लक्ष्य को पूरा करने के लिए सौर और वायु ऊर्जा के क्षेत्र में भविष्य में तीन लाख लोगों को रोजगार मिलने का अवसर प्राप्त होगा. इसका मुख्य उद्देश्य 2022 तक देश में 175 गिगावट बिजली पैदा करने से है.

आज अंतरराष्ट्रीय श्रमिक संगठन ने वैश्विक रोजगार बाजार की स्थिति पर अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा है कि जलवायु परिवर्तन से मुकाबला करने के लिए कई श्रमिकों की जरुरत होगी. इससे क्षेत्र में लाखों नए रोजगार के अवसर भी पैदा होगें.

संयुक्त राष्ट्र की श्रम एजेंसी ने कहा कि 2030 तक दुनिया में करीब 24 मिलियन नए पद की नियुक्ति होगी. लेकिन हरित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए सही नीतियों के साथ-साथ श्रमिकों के लिए बेहतर सामाजिक सुरक्षा की भी जरुरत होगी. एजेंसी ने विश्व रोजगार और सामाजिक दृष्टिकोण 2018 की रिपोर्ट के अनुसार यह कहा कि भारत ने 2020 तक 175 गीगावाट बिजली पैदा करने का लक्ष्य रखा हुआ है, जो की बिजली उत्पादन का तकरीबन आधा हिस्सा ही है.

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इस रिपोर्ट में पवन ऊर्जा परियोजनाओं और सौर ऊर्जा के लक्ष्य को पूरा करने के लिए कर्मचारियों की संख्या को और ज्यादा बढ़ाना होगा. यह पूरा प्रोग्राम वोकेशनल ट्रेनिंग पर भी निर्भर करता है. साथ-साथ रिपोर्ट में यह भी पेश किया गया कि डेनमार्क, एस्टोनिया, फ्रांस, जर्मनी, दक्षिण कोरिया, फिलिपींस, दक्षिण अफ्रीका के अलावा भारत जैसे देशों में नवीकरणीय ऊर्जा की नीतियां और राष्ट्रीय विकास नीतियां हरित अभियान में कौशल विकास के रूप में काम करती है.

साल 2012-15 की पंचवर्षीय योजन में भारत की विकास की नीति का महत्वपूर्ण आयाम कौशल विकास के लिए व्यापक ढांचा तैयार करना था. 2015 तक इस अभियान में कई सेक्टर्स और संस्थाओं को भी हिस्सा बनाना था. इसी चीजों को ध्यान में रखते हुए वाटर ट्रीटमेंट प्लांट हेल्पर से लेकर सोलर प्रोजेक्ट मैनेजर जैसे 26 नए तकनीकी और व्यवसायिक शैक्षिण कोर्स को भी शुरू किया गया ताकि आने वाले समय में किसी तरह की परेशानी ना आये. बहरहाल, अभी भी बिजली उत्पादन में 80 फीसदी भागीदारी कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस के अलावा कार्बन छोड़ने वाले संसाधनों की है.

इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि हरित अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ते कदमों से कार्बन आधारित उद्योगों में करीब 6 मिलियन रोजगार भी खत्म होंगे. वहीं पेट्रोल निकालने और रिफाइन करने के काम में ही करीब 1 मिलियन रोजगार की कमी देखी जाएगीं.