राज्यपाल का पद राज्यों में बहुत सम्माननीय पद होता है. जिसको राज्य का प्रथम नागरिक भी माना जाता है. राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है तथा राज्यपाल के कार्यकाल का समय निर्धारित नहीं किया जाता है. राज्यपाल राष्ट्रपति की इच्छा तक अपने पद पर बना रहता है. आप सभी इस बात को जानते होगें.
लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि संविधान में राज्यपाल का पद बनाया ही क्यों गया ? राज्य में जनता चुना हुआ नेता मुख्यमंत्री होता है, फिर मुख्यमंत्री को ही राज्य का पहला व्यक्ति क्यों नहीं माना जाता है ?
आमतौर पर यह साधारण बात लगती है कि संविधान में राज्यपाल का पद बना दिया. अगर राज्यपाल के पद के लिए अनिवार्यता देखें तो सबसे महत्वपूर्ण शर्त यह होती है कि जिस राज्य में किसी व्यक्ति की राज्यपाल के रूप में नियुक्ति होती है. उस राज्य से उसका संबंध नहीं होना चाहिएं. इस शर्त के बाद भी हम सोचने को मजबूर हो जाते हैं कि इसके पीछे का क्या कारण है.
राज्यपाल के लिए योग्यता और इस पद का सबसे महत्वपूर्ण कारण यह है कि भारत में विभिन्न संस्कृतियों के लोग रहते हैं. भारत के लोगों में अनेंकता में एकता पाई जाती है. अगर कभी कोई राज्य भारत से अलग होना चाहे तथा उसके लिए अपनी विधानसभा में गुपचुप तरीके से कोई बिल पास करें जोकि भारत की एकता या अखंडता के खिलाफ हो, तो उसके विषय में केंद्र सरकार तक वो जानकारी पहुँचाने का काम राज्यपाल करता है. इसके साथ ही जब तक राज्यपाल के हस्ताक्षर नहीं होते हैं, वो बिल पास नहीं हो सकता है. इसी कारण से देश की एकता और अखंडता में राज्यपाल के पद का बहुत महत्वपूर्ण योगदान होता है.
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जहाँ तक राज्यपाल के उस राज्य से संबंधित ना होने की शर्त की बात है, तो उसके पीछे का कारण यह है कि वह राजनीतिक तौर पर या भावनात्मक तौर पर उस राज्य के मुद्दों से नहीं जुड़ा हुआ है, तो वह राज्य में होने वाली हर गतिविधियों की जानकारी केंद्र सरकार तक निष्पक्ष तौर पर पहुँचा सकता है. जिससे किसी भी राज्य पर अप्रत्यक्ष तौर पर केंद्र की निगरानी रहती है. जो भारत की एकता और अखंडता के लिए बहुत महत्वपूर्ण है.