बंसत पंचमी और सरस्वती पूजा से जुड़े महत्व

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बसंत पंचमी के दिन व‍िद्या की देवी सरस्‍वती का जन्‍म हुआ था इसलिए इस दिन सरस्‍वती पूजा बड़े ही व‍िधान से किया जाता है. इस दिन कई लोग प्रेम के देवता काम देव की पूजा भी करते हैं. किसानों के लिए इस त्‍योहार का विशेष महत्‍व माना जाता है. हर साल माघ मास के शुक्ल पक्ष के पांचवें दिन यानि पंचमी तिथि को बसंत पंचमी मनाई जाती है. इस दिन मां सरस्वती की आराधना की जाती है. भारत के आलावा ये पर्व बांग्लादेश और नेपाल में भी बड़े उल्लास से मनाया जाता है.

बसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पांचवे दिन भगवान विष्णु और कामदेव की पूजा की जाती है. बसंत पंचमी को श्रीपंचमी और सरस्वती पंचमी के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन को देवी सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं. इस बार बसंत पंचमी 29, और 30 जनवरी को है.

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हिन्दु पौराणिक प्रचलित कथा के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने ही पूरे संसार की रचना की है. उन्होंने पेड, पौधे, जीव- जन्तु, मनुष्य बनाए, जिसके बाद उन्हें लगा की उनकी रचना में कुछ कमी रह गई है. इसलिए ब्राह्मा जी ने अपने कमंडल से जल छिड़का, जिससे चार हाथो वाली एक सुन्दर स्त्री प्रकट हुई. उस स्त्री के एक हाथ में वीणा दूसरे हाथ में पुस्तक तीसरे हाथ में माला चौथे में मुद्र थी. ब्रह्मा जी ने जिस स्त्री को प्रकट किया, उसे वीणा बजाने के लिए कहा तो ब्रह्मा जी द्वारा बनाई हर एक चीज में से सुन्दर आवाज आने लगी. तभी ब्रह्मा जी ने इस देवी को वीणा की देवी को सरस्वती का नाम दे दिया. जिस दिन मां सरस्वती ने वीणा बजाई थी, वह दिन बसंत पंचमी का था. जिसको हर साल बसंत पंचमी के दिन मनाया जाता है.

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बसंत पंचमी के दिन सुबह जल्दी उठकर नहा-धोकर पीले वस्त्र धारण कर, बसंत पंचमी की पूजा की जाती है. पीले रंग के फूल और मालाएं मां सरस्वती पर चढ़ाई जाती है. पूजाघर की साफ सफाई के बाद पीले रंग का कपड़ा भगवान की चौकी पर बिछाकर माता सरस्वती की मूर्ति स्थापित करते है. श्रृंगार कर मूर्ति को सजाया जाता है. इसके बाद सरस्वती वंदना करते हुए मां की आराधना करते है.