यदि ईयर फोन का कर रहे हैं इस्तेमाल तो यह खबर जरूर पढ़ें, कहीं देर न हो जाए… | Risk of heart disease due to use of earphones | Patrika News

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यदि ईयर फोन का कर रहे हैं इस्तेमाल तो यह खबर जरूर पढ़ें, कहीं देर न हो जाए… | Risk of heart disease due to use of earphones | Patrika News

यदि ईयर फोन का कर रहे हैं इस्तेमाल तो यह खबर जरूर पढ़ें, कहीं देर न हो जाए… | Risk of heart disease due to use of earphones | Patrika News

शोर ही नहीं, अन्य कारण भी जिम्मेदार एक सीमा से अधिक शोर लोगों के स्वास्थ्य पर सीधा असर डालता है। अन्य माध्यमों से फैल रहा ध्वनि प्रदूषण भी कानों के लिए हानिकारक है। तेज धुन वाले डैक, तेज हॉर्न, वाहनों का शोर और ईयर फोन लगाकर घंटों सुनने से कानों की क्षमता प्रभावित हो रही है। महाराजा यशवंतराव हॉस्पिल और जिला अस्पताल के नाक-कान-गला (ईएनटी) रोग विभाग में कानों की समस्या लेकर हर माह 5 हजार से ज्यादा मरीज आ रहे हैं। वहीं, निजी अस्पतालों और क्लिनिक पर ध्वनि प्रदूषण से प्रभावित लोगों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है।

बोर्ड ने चेताया, फिर भी मानक पार चिकित्सकों की माने तो 65 डेसीबेल से ज्यादा का शोर कानों को नुकसान पहुंचाने लगता है, इंदौर शहर के अधिकांश इलाकों में यह इस मानक से ज्यादा पाया जा रहा है। फिर भी अब तक ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए एहतियाती कदम नहीं उठाया जा रहा। जहां लोग सांस, साइनोसाइटिस और आंखों में जलन का शिकार हो रहे हैं। वहीं, बढ़ते ध्वनि प्रदूषण के कारण सुनने की क्षमता पर असर पड़ रहा है। त्योहारी आयोजनों के अलावा आम दिनों में भी शहर में ध्वनि प्रदूषण 38 डेसीबेल से 52 डेसीबेल के बीच तक पहुंच गया है। जबकि चिकित्सकों का मानना है कि रात के समय आसपास 35 डेसीबेल से अधिक की आवाज नहीं होना चाहिए। वहीं, दिन का शोर भी 45 डेसीबेल से ज्यादा हानिकारक हो जाता है।

इस तरह शोर से शरीर हो रहा कमजोर ध्वनि प्रदूषण शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को हानि पहुंचाता है। यह चिड़चिड़ापन, आक्रामकता के अतिरिक्त उच्च रक्तचाप, तनाव, श्रवण शक्ति का हास, नींद में गड़बड़ी और अन्य हानिकारक प्रभाव पैदा कर सकता है। इससे गंभीर अवसाद ह़दय संबंधी रोग भी हो सकते है।

विशेषज्ञ भी चेता रहे एमवायएच की ईएनटी विशेषज्ञ डॉ. शैनल कोठारी का कहना है कि ध्वनि प्रदूषण को लोग अभी भी गंभीरता से नहीं लेते है, जबकि यह प्रदूषण काफी घातक है। अधिक ध्वनि प्रदूषण से मानव में कई प्रकार के विकार और रोग हो रहे है, जिसमें सुनने की क्षमता में कमी, सिर दर्द, तनाव प्रमुख है। अधिक ध्वनि क्षेत्र से ह्रदय संबधी रोग हो सकते हैं।

कितना प्रदूषण, कितनी ध्वनि खतरनाक…जांच के साधन कम तकनीकि दौर में भी वायु व ध्वनि प्रदूषण को मापने की विश्वसनीय व्यवस्था सरल नहीं हुई है, फिर भी कुछ साफ्टवेयर व ऐप चलन में हैं। मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के प्रभारी प्रधान वैज्ञानिक एसएन पाटिल ने बताया, आम व्यक्ति के लिए वायु प्रदूषण का स्तर सामान्य तौर पर मापने की व्यवस्था नहीं है। विभाग की वेबसाइट एमपीसीबी डॉट एनआइसी डॉट इन पर जाकर ऑनलाइन प्रदूषण की स्थिति देख सकते हैं। इसे मापने का कोई ऐप नहीं है। सतत परिवेशी गुणवत्ता मापक यंत्र की मदद से विभाग ऑनलाइन वायु प्रदूषण के आंकड़े चौराहों पर डिस्पले करता है। वहीं, ध्वनी प्रदूषण के लिए साउंड लेवल मीटर है, जो एक वायरलेस फोन की तरह होता है। साथ ही साउंड मीटर नाम से प्ले स्टोर पर ऐप है। जिसकी मदद से ध्वनी प्रदूषण का स्तर पता किया जा सकता हैं। यदि कोई व्यक्ति ध्वनि व वायु प्रदूषण से परेशान है तो वह अपने नजदीकी पुलिस स्टेशन पर इसकी शिकायत कर सकता हैं। एमपीसीबी की टीम मौका मुआयना कर जांच रिपोर्ट प्रशासन को देगी। इसके बाद की प्रक्रिया प्रशासन स्तर से आगे बढ़ती हैं।



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