Hydrogen Mission: क्या है ग्रीन हाइड्रोजन मिशन, क्या 20,000 करोड़ रुपये खर्च करने से खत्म हो जाएगा प्रदूषण!
क्या है ग्रीन हाइड्रोजन मिशन?
कार्बन उत्सर्जन (Carbon Emissions) की समस्या को कम करने के लिए सरकार ने बड़ी पहल के साथ ग्रीन हाइड्रोजन मिशन की शुरूआत की है। भारत ही नहीं दुनियाभर के देश कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए स्वच्छ ऊर्जा स्त्रोत की तलाश कर रहे हैं। इसी कोशिश के तहत ग्रीन हाइड्रोजन का रूख किया जा रहा है। ग्रीन हाइड्रोजन मतलब हाइड्रोजन गैस (Hydrogen Gas) का निर्माण,लेकिन बिना प्रदूषण के। हाइड्रोजन गैस के फॉर्म में उपलब्ध नहीं है, इसलिए इसे पानी यानी H2O ने निकाला जाता है। पानी से जब बिजली गुजरती है तो हाइड्रोजन टूटकर अलग हो जाता है। इससे निकलने वाली ऊर्जा बिल्कुल साफ और स्वच्छ होती है। इलेक्ट्रोलाइजर की मदद से H2O को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में अलग किया जाता है। इस प्रक्रिया में अधिकांश देश परंपरागत ऊर्जा का इस्तेमाल करते हैं, इसलिए इसे ग्रे हाइड्रोजन (Grey Hyderogen) कहा जाता है। वहीं जब ये प्रक्रिया रिन्यूवल एनर्जी यानी सोलर एनर्जी, वाटर एनर्जी, विंड एनर्जी, बायोमास जैसे ऊर्जा स्त्रोतों से किया जाता है तो इसे ग्रीन एनर्जी (Green Energy) का नाम दिया जाता है। ग्रीन एनर्जी में प्रदूषण ना के बराबर होती है।
सरकार का क्या है लक्ष्य
भारत सरकार का लक्ष्य है कि साल 2030 तक भारत में 50 लाख टन ग्रीन हाइड्रोजन का निर्माण किया जा सके। इस ग्रीन एनर्जी से देश की रिन्यूवल एनर्जी क्षमता में 125 मेगावाट की बढ़ोतरी होगी। सरकार इस प्रोजेक्ट को लागू करने पर 17 हजार 490 रुपये खर्च करेगी। वहीं 1,466 करोड़ रुपये पायलट प्रोजेक्ट पर खर्च होंगे। स्टडी रिसर्च एंड डेवलपमेंट के लिए 400 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। सरकार इस मिशन के साथ ग्रीन हाइड्रोजन के प्रोडक्शन के साथ उसकी मांग और निर्यात को भी बढ़ाने पर बल देगी। इस मिशन के लिए स्ट्रैटेजिक इंटरवेंशन्स फॉर ग्रीन हाइड्रोजन ट्रांजिशन प्रोग्राम (SIGHT) तैयार किया जाएगा। भारत के लिए ये लक्ष्य मुश्किल नहीं है, क्योंकि ग्रीन हाइड्रोजन बनाने के लिए पानी और सस्ती बिजली चाहिए। दोनों ही भारत के पास प्रचूर मात्रा में उपलब्ध हैं।
मांग बढ़ाने पर जोर
साल 2050 तक ग्रीन हाईड्रोजन की मांग को बढ़ाकर इसकी हिस्सेदारी कुल ऊर्जा में 12 फीसदी करना है। भारी वाहनों (Heavy Vehicles), रेल (Railways), उद्योगों (Industries) में इसकी खपत बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है। भविष्य हाइड्रोजन ऊर्जा का है, इसलिए रिलायंस (Reliance) और अडानी (Adani) जैसी बड़ी कंपनियां इस दिशा में तेजी से पैर पसार रही है। लंबी दूरी चलने वाली ट्रकों, कारों, कार्गो जहाजों, ट्रेनों के लिए ये अच्छा विकल्प हैं। वर्तमान में भारत में इसकी मांग 67 से 70 लाख टन की है। जिसे बढ़ाने पर जोर है।
क्या होंगी चुनौतियां
अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो स्वच्छ यानी क्लीन एनर्जी (Clean Energy) की दिशा में ग्रीन हाइड्रोजन मिशन बड़ा कदम तो है, लेकिन इसकी कीमतें बड़ी चुनौती बन सकती है। द एनर्जी एंड रिसोर्स इंस्टीट्यूट (TERI) की एक रिपोर्ट पर नजर डालें तो वर्तमान में इसका मूल्य 340 रुपये से लेकर 400 रुपये प्रति किलो है। वहीं साल 2030 तक उत्पादन बढ़ने के साथ इसकी कीमतों में कुछ गिरावट आ सकती है, लेकिन फिर भी ये 150 रुपये प्रति किलो तक रह सकती है। इस समय सीमा तक ग्रीन एनर्जी के उत्पादन को बढ़ाकर 50 लाख टन करना है। ग्रीन हाइड्रोजन के इस्तेमाल में सबसे बड़ी चुनौती इसकी कीमत ही है। इनका उपयोग उद्योंगों में तभी बढ़ेगा, जब इसकी कीमत 150 रुपये प्रति किलो के भीतर आएगी। रिफाइनरी, फर्टिलाइजर और स्टील उद्योग इसके सबसे बड़े ग्राहक है।
क्या कम होगा प्रदूषण
ग्रीन हाइड्रोजन कार्बन उत्सर्जन कटौती में मददगार साबित हो सकता है। ये भारत की नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन नीति में भी मदद करेगा। साल 2070 तक सरकार ने नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य रखा है, जिसे इस मिशन से मदद मिलेगी। अगर सिर्फ स्टील और आयरन उद्योग (Iron & Steel Industry) में ही इसका इस्तेमाल शुरू हो जाए तो 2050 तक कार्बन उत्सर्जन में 35 फीसदी की कमी आ जाएगी।
क्या होंगे फायदे
- ग्रीन हाइड्रोजन की मदद से जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों को निपटने में मदद मिलेगी।
- ग्रीन हाइड्रोजन का इस्तेमाल ट्रांसपोर्ट, केमिकल, आयरन जैसी जगहों पर किया जा सकता है।
- एनर्जी के विकल्प के तौर पर ये अच्छा स्त्रोत हैं, जो कार्बन उत्सर्जन की समस्या को भी कम करता है।
- साल 2070 तक नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने में भी ये मदद करेगा।
- कार्बन उत्सजर्न को कम करने में मदद मिलेगी।
- जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम हो सकेगी।
- इतना ही नहीं ग्रीन हाइड्रोजन और इससे जुड़े प्रोडक्ट के निर्यात में बढ़ोतरी होगी।
- इस ग्रीन हाइड्रोजन मिशन के लिए 60 से 100 गीगावाट क्षमता वाले इलेक्ट्रोलाइजर प्लांट तैयार होंगे।
- साल 2030 तक 6 लाख रोजगार पैदा होंगे।
- जीवाश्म ईंधनों के आयात पर निर्भरता कम होगी और आयात में कमी आने से 1 लाख करोड़ रुपये की बचत होगी।
- ग्रीन हाउस गैस में 50 लाख टन की कमी आएगी।