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उत्तर प्रदेश की पहली महिला राज्यपाल और कांग्रेस की पहली भारतीय महिला अध्यक्ष सरोजिनी नायडू की आज पुण्यतिथि है। 2 मार्च 1949 के दिन सरोजिनी नायडू ने लखनऊ में आखिरी सांस ली थी।
सरोजिनी नायडू की पहचान एक शानदार लीडर के साथ-साथ महान कवयित्री की भी है। राजनीतिक संघर्ष के अलावा सरोजिनी नायडू उम्र भर महिला अधिकारों के लिए भी काम करती रहीं। इसकी वजह से उनके जन्मदिन को महिला दिवस के तौर पर भी मनाते हैं।
निजाम से मिली स्कॉलरशिप से गईं विदेश
सरोजिनी नायडू ने मैट्रिक परीक्षा में टॉप किया। सरोजिनी के पिता अघोरेनाथ चट्टोपाध्याय हैदराबाद के निजाम कॉलेज में प्रिंसिपल थे। ऐसे में उनको निजाम से स्कॉलरशिप मिली और आगे की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड चली गईं। इंग्लैंड में उन्होंने किंग्स कॉलेज और गिरटन कॉलेज में पढ़ाई की।
पढ़ाई के दौरान ही लिखने लगी थीं कविताएं
सरोजिनी नायडू पढ़ाई के दौरान ही कविताएं लिखने लगी थीं। उनका पहला कविता संग्रह ‘गोल्डन थ्रैशोल्ड’ था। उनकी शानदार कविताओं के चलते ही उनको भारत की कोकिला नाम मिला।
गांधीजी से मिलने के बाद आजादी की लड़ाई में कूदीं
सरोजिनी नायडू महिला अधिकारों के लिए अपने कॉलेज के दिनों से ही सक्रिय थीं। वो कहती थीं कि महिलाएं किसी भी देश की नीव होती हैं। सरोजिनी नायडू की जिंदगी की दिशी बदली 1914 में महात्मा गांधी से मिलने के बाद।
सरोजिनी नायडू कांग्रेस में आ गईं। पार्टी ने भी उनके काम और समर्पण को देखते हुए 1925 में उनको अध्यक्ष बनाया। वो पहली भारतीय महिला थीं, जो कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं। महात्मा गांधी से उनके कितने अच्छे रिश्ते थे, इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि वो गांधाजी को मिकी माउस कहकर बुलाती थीं।
प्लेग महामारी में की थी लोगों की सेवा
20वीं सदी की शुरुआत में भारत प्लेग से जूझ रहा था। इस दौरान सरोजिनी नायडू ने बहुत काम किया था। उनके काम को कांग्रेस नेता होने के बावजूद अंग्रेज सरकार ने सराहा था। अंग्रेज सरकार ने 1928 में उन्हें केसरे-हिंद का खिताब दिया था।
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ब्रिटिश सरकार ने सरोजिनी नायडू को सम्मानित किया, लेकिन भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान सरकार उन पर बिगड़ गई। इस आंदोलन में नायडू की सक्रियता से खफा अंग्रेज सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया।
आजादी के बाद बनीं राज्यपाल
1947 में देश की आजादी के बाद पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उनसे उत्तर प्रदेश का राज्यपाल का पद संभालने की गुजारिश की, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। इसी के साथ उन्होंने देश की पहली महिला राज्यपाल होना का गौरव पाया। 2 मार्च 1949 को लखनऊ में हार्ट अटैक से उनका निधन हो गया।