Hindenburg Report: हिंडनबर्ग जैसे हमलों में अच्छा कॉरपोरेट गवर्नेंस ही है सबसे अच्छा बचाव, विवाद से मिले कई सबक

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Hindenburg Report: हिंडनबर्ग जैसे हमलों में अच्छा कॉरपोरेट गवर्नेंस ही है सबसे अच्छा बचाव, विवाद से मिले कई सबक

Hindenburg Report: हिंडनबर्ग जैसे हमलों में अच्छा कॉरपोरेट गवर्नेंस ही है सबसे अच्छा बचाव, विवाद से मिले कई सबक


नई दिल्ली: पिछले महीने यानी 24 जनवरी 2023 को अमेरिकी रिसर्च फर्म हिंडनबर्ग ने अडानी ग्रुप के खिलाफ एक रिपोर्ट पेश की थी। इस रिपोर्ट में अडानी ग्रुप पर कई गंभीर आरोप लगाए गए हैं। रिपोर्ट में आरोप लगाया गया कि अडानी ग्रुप ने अपने शेयरों को ओवर वैल्यूड किया हुआ है। इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद अडानी ग्रुप को बड़ा नुकसान हुआ। अडानी ग्रुप की ज्यादातर कंपनियों के शेयरों में लोअर सर्किट लग गया। कंपनियों का मार्केट कैप तेजी से कम हुआ। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट सामने आने के कुछ ही दिनों में अडानी ग्रुप के शेयर 46 फीसदी से ज्यादा गिर गए। वहीं कंपनियों को 10 लाख करोड़ से ज्यादा रुपयों का नुकसान हुआ। वहीं इस रिपोर्ट को पेश करने वाली अमेरिकी रिसर्च फर्म हिंडनबर्ग की बात करें तो कंपनी के मुताबिक, उसने अडानी ग्रुप की कंपनियों के शेयरों को शॉर्ट सेल किया हुआ है। शॉर्ट सेलिंग एक ट्रेडिंग या निवेश रणनीति है। आसान शब्दों में कहें तो शॉर्ट सेलिंग एक ट्रेडिंग स्ट्रैटेजी है। इसमें किसी शेयर की कीमत गिरने पर पैसा कमाया जाता है। अगर किसी निवेशक को पता हो कि किसी कंपनी के शेयरों में आने वाले समय में गिरावट आ सकती है तो वह उस कंपनी के शेयरों को खरीदकर गिरावट आने पर बेच सकता है। इसे शॉर्ट सेलिंग कहते हैं। इसे ऐसे समझिए कि अगर एक शॉर्ट सेलर 500 रुपये के स्टॉक को 300 रुपये के स्तर तक गिरने की उम्मीद करता है, तो वह मार्जिन अकाउंट का इस्तेमाल करके ब्रोकर से स्टॉक उधार ले सकता है और सेटलमेंट पीरियड से पहले उसी स्टॉक को वापस खरीद सकता है। शॉर्ट सेलर 500 रुपये के शेयर को 300 रुपये तक गिरने पर वापस खरीदने की उम्मीद के साथ बेच देगा। अगर स्टॉक असल में गिरता है, तो स्टॉक सेलर शेयर वापस खरीदता है और अपनी अपनी पॉजिशन को क्लोज कर देता है। अगर शेयर 100 रुपये में बेचा गया और उसे 85 रुपये पर वापस खरीद लिया गया तो हर शेयर पर 15 रुपये का मुनाफा हुआ।

हिंडनबर्ग की साख शक के घेरे में

एक्टिविस्ट शॉर्ट सेलर्स की दुनिया, जिससे हिंडनबर्ग रिसर्च संबंधित है, एक अस्पष्ट है। शार्ट सेलर एक छोटा संगठन जिसका इतिहास अस्पष्ठ है। हिंडनबर्ग जैसे संगठन अक्सर नैतिक सीमाओं को पार करते रहते हैं। हालांकि अडानी प्रकरण से एक सबक यह मिलता है कि इस तरह के हमलों के खिलाफ एक अच्छा कॉरपोरेट गवर्नेंस ही सबसे अच्छा बचाव है। शॉर्ट सेलरों की दुनिया के ऑपरेटरों की बात करें तो आमतौर पर यह कई काम करते हैं। यह एक ऐसी कंपनी की पहचान करते हैं जिसके स्टॉक को वे काफी अधिक कीमत के रूप में आंकते हैं। ओवरवैल्यूएशन के कारणों पर एक रिपोर्ट या लेख लिखते हैं। अपने फंड में निवेश करने के लिए निवेशकों को जुटाने के साथ सफल होने पर, रिपोर्ट कंपनी के शेयरधारकों के बीच घबराहट पैदा करती है। यह घबराहट ही बिक्री का कारण बनती है और स्टॉक की कीमत में तेज गिरावट आती है। इस प्वाइंट पर शॉर्ट सेलर उतने ही शेयर खरीदता है जितने उसने उधार लिए थे और बेचे थे और उन्हें ब्रोंकर्स को लौटा देता है। इस प्रक्रिया में शॉर्ट सेलर अच्छा मुनाफा कमाता है। अमेरिकी रिसर्च कंपनी हिंडनबर्ग की रिपोर्ट (Hindenburg Report) के बाद से अडानी ग्रुप के शेयरों में लगातार गिरावट देखने को मिल रही है। हाल यह है कि कभी दुनिया के अमीरों की सूची में अहम स्थान रखने वाले गौतम अडानी अब टॉप 20 से भी बाहर हो गए हैं। हिंडनबर्ग की इस रिपोर्ट और फर्म की साख पर भी कई सवाल उठ रहे हैं। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट और साख शक के घेरे में है। अमेरिका में शॉर्ट सेलर्स के खिलाफ जांच चल रही है। हिंडनबर्ग कंपनियां यह भी दावा करती हैं कि उनके पास दशकों का अनुभव है, लेकिन हिंडनबर्ग खुद छह साल पुरानी कंपनी है। ये जो शॉर्ट सेलर्स हैं इनको एक्टिविस्ट शॉर्ट सेलर्स कहते हैं। असल में इनके पास शेयर नहीं होते हैं। इसलिए इस तरह की कंपनियां कई तरह के एग्रीमेंट करती हैं। इसके बाद यह कंपनियां खराब खबरें पेश करती हैं। शॉर्ट सेलर्स का ऐसा रेकॉर्ड है और इस बात का इंवेस्टिगेशन जस्टिस डिपार्टमेंट अमेरिका में कर रहा है।

कंपनी की खुद की पारदर्शिता नहीं

अमेरिकी रिसर्च फर्म की रिपोर्ट आने के बाद से जिस तरह की प्रतिक्रिया भारत में देखने को मिली है। इसी तरह की प्रतिक्रिया बाकी देशों में भी देखने को मिलती है। हिंडनबर्ग ने अडानी ग्रुप से पहले चीन और अमेरिका की कंपनियों को लेकर भी रिपोर्ट निकाली है। हिंडनबर्ग की वेबसाइट पर देखें तो पता चलता है कि यह साल में करीब 8 से 10 रिपोर्ट निकालती है। इस कंपनी की खुद की पारदर्शिता नहीं है। इसकी वजह है कि हिंडनबर्ग का कहना है कि उसके पास दशकों का एक्सपीरियंस है। जबकि देखें तो यह कंपनी खुद सिर्फ 6 साल पुरानी ही है। हिंडनबर्ग की वेबसाइट देखें तो यह भी पता नहीं चलता है कि कंपनी में कितने कर्मचारी काम कर रहे हैं। हिंडनबर्ग रिसर्च ने अडानी ग्रुप पर जो आरोप लगाए हैं उन आरोपों की सच्‍चाई के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है।

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