Gujarat assembly elections 2022: कच्छ-सौराष्ट्र- कौन होगा खुश और कौन फुस्स | Gujarat assembly elections 2022 : Who will win in Kutch-Saurashtra | Patrika News

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Gujarat assembly elections 2022: कच्छ-सौराष्ट्र- कौन होगा खुश और कौन फुस्स | Gujarat assembly elections 2022 : Who will win in Kutch-Saurashtra | Patrika News

Gujarat assembly elections 2022: कच्छ-सौराष्ट्र- कौन होगा खुश और कौन फुस्स | Gujarat assembly elections 2022 : Who will win in Kutch-Saurashtra | News 4 Social

2017 जीतने के बाद हारी कांग्रेस

सौराष्ट्र और कच्छ की 54 सीटों में से 30 जीत कर पिछले विधानसभा चुनावों में पाटीदार आंदोलन के चलते कांग्रेस ने भाजपा को करारा झटका दिया था, लेकिन उसके बाद एक-एक कर कई कांग्रेसी विधायकी से इस्तीफा देकर भाजपा में चले गए और भाजपा के टिकट पर उप चुनाव जीत कर मंत्री पद या अन्य लाभ से लाभान्वित हुए। मोरबी से कांग्रेस के टिकट पर जीते बृजेश मेर्जा भाजपा में शामिल हुए उप चुनाव भाजपा के टिकट पर जीता और भूपेंद्र पटेल सरकार में मंत्री बने, इसी तरह राजकोट जिले में जसदण सीट से कांग्रेसी विधायक कुंवरजी बावलिया ने कांग्रेस छोड़ी, भाजपा से उपचुनाव लड़ा जीते और रुपाणी सरकार में मंत्री बने। कच्छ जिले की अबडासा सीट से कांग्रेसी विधायक प्रद्युम्न सिंह जाडेजा इस्तीफा देकर भाजपा के टिकट पर उपचुनाव जीते। अमरेली जिले की धारी विधानसभा सीट से जेवी काकडिया कांग्रेस की विधायकी छोड़ने के बाद भाजपा से विधायक चुने गए, सुरेंद्रनगर जिले की धांगध्रा विधानसभा सीट से पुरुषोत्तम सामरिया भी इसी फेहरिश्त में शामिल हुए। इनको एक टेलिफोनिक वार्तालाप के आधार पर दर्ज कमीशनखोरी के मामले में 15-20 दिन तक जेल में रखा गया, फिर जमानत होते ही ये कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए, भाजपा ने इनको अपना टिकट दिया ये जीते बाद में मुकदमे में कब एफआर लगी किसी को कुछ नहीं पता। बहरहाल वे इस बार धांगध्रा सीट से भाजपा के प्रत्याशी नहीं हैं। एक और रोचक वाकिया जामनगर ग्रामीण सीट का है, जहां 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से भाजपा में आए राघवजी पटेल ने भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और हार गए। इन्हें हराने वाले कांग्रेस के विधायक वल्लभ धारविया कांग्रेस की विधायकी से इस्तीफा देकर 2019 में भाजपा में शामिल हो गए। उपचुनाव में भाजपा ने पिछली बार चुनाव हारे राघवजी पटेल को फिर से खड़ा किया और वे ने केवल जीते बल्कि भूपेन्द्र पटेल सरकार में कृषि मंत्री भी बने।

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पीएम मोदी अकेले ही खेल रहे

कहने का तात्पर्य यह है कि घोर नकारात्मक माहौल के बावजूद इस चुनाव में कांग्रेस अपनी पकड़ वाले इलाकों तक से प्रचार के मैदान से गायब है। भाजपा के एकमात्र चेहरे मोटा भाई नरेंद्र मोदी ही अकेले बॉलिंग, बेटिंग, फील्डिंग सभी कुछ कर रहे हैं। छोटा भाई अमित शाह भी खासे सक्रिय हैं, लेकिन उनका रवैया आक्रामक और गरम जबकि पीएम मोदी का विनम्र और नरम। नरम-गरम की मतदाताओं को मिश्रित डोज के अलावा मुख्यमंत्री भूपेंद्र भाई पटेल समेत शेष भाजपा नेताओं का रोल क्या है इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि हर इलाके में मोदी की मांग है। पीएम मोदी की रैली के बिना जीत का विश्वास भाजपा प्रत्याशियों को अपने 20-25 साल पुराने गढ़ों में भी नहीं है। मोदी भी यह बात जानते है, इसी वजह वे चुनाव प्रचार खत्म होने तक ज्यादा से ज्यादा रैलियां करने की कोशिश में लगे हैं। कच्छ-सौराष्ट्र इलाके में पिछली बार पाटीदार आंदोलन के चलते बड़ा झटका खाए पीएम मोदी इस इलाके में अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं।

विपक्ष अग्रता हासिल करने की स्थिति में नहीं
आम आदमी पार्टी के अंरविंद केजरीवाल भी सभाएं कर रहे हैं लेकिन दिल्ली एमसीडी के चुनावों की घोषणा ने उनका एक पांव दिल्ली में फंसा दिया है, इसके उनकी चाल गुजरात में धीमी पड़ी है। जहां तक कांग्रेस का सवाल है, सुरेंद्र नगर की वढवाण सीट से चुनाव लड़ रहे तरुण गढ़वी के चुनाव कार्यालय में मिले पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और मौजूदा महासिचव मनुभाई पटेल ने, इस सवाल पर कि इस इलाके में कांग्रेस के किन बड़े नेताओं की सभाएं हो चुकी, छूटते ही कहा हमने किसी को बुलाया ही नहीं। कांग्रेस की हालत का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि इस बार मोरबी के पुल हादसे तक को मुद्दा बनाने से कतरा रही है, क्योंकि पुल की मरम्मत का अपने “पहुंच” से ठेका हथियाने वाली कंपनी ओरेवा के मालिक पाटीदार समुदाय से हैं और उनका पाटीदारों में खासा दबदबा है। कहने का मतलब 135 निर्दोष लोगों की मौत वोटों की राजनीति के चलते व्यर्थ चली गई। कोई बोलने को तैयार नहीं न राजनीतिक दल न नेता और न जनता।

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कार्यकर्ता कहिन..
कच्छ-सौराष्ट्र की स्थिति कुल मिलाकर कैसी है, इसका अंदाजा दोनों पार्टियों के कार्यकर्ताओं बातों से हुई समझा जा सकता है, जहां भाजपा के नेता और कार्यकर्ता अति आत्मविश्वास से लबरेज नजर आते हैं, सुरेंद्र नगर मंडल महासिचव दिलीपसिंह गोहिल का कहना है कि का कहना है कि हमारी केडर बेस पार्टी है।हमने 11 बूथ स्तर पर पुख्ता व्यवस्था कर रखी है। इसके अलावा इस बार पाटीदार भी हमारे साथ है। तालुका पंचायत वढवाण के अध्यक्ष नानजी भाई चावड़ा ने कहते हैं, इसबार सौराष्ट्र की 54 में से 35 सीटों का जो रिकॉर्ड भाजपा ने 2012 में बनाया था उससे ज्यादा सीटें हम जीतेंगे। वहीं कांग्रेसी कार्यकर्ता यह मानकर बैठे हैं कि जनता में भाजपा के प्रति गुस्सा है, मतदाता डर के मारे खुल कर बोल नहीं रहा है, लेकिन वह वोटिंग के दिन आगे चलकर भाजपा के खिलाफ वोट करेगा। हमारी भी पूरी तैयारी है। कांग्रेसी नेता धर्मेंद्र सिंह परमार कहते हैं जनता के गुस्से का स्वतः स्फूर्त विस्फोट होगा, जिसमें भाजपा उड़ जाएगी। कांग्रेस इस बार चुनाव प्रचार के दिखावे की बजाय साइलेंट वर्किंग कर रही है, इसका सबूत 8 दिसंबर को मिल जाएगा।

कोई अति मुखर कोई मौन..!

सुरेंद्रनगर से मोरबी और मोरबी से राजकोट के रास्ते में जितने भी मतदाताओं से बात हुई एक बात काबिले गौर रही कि जिन लोगों को भाजपा को वोट करना है वह मुखर है और तपाक से अपनी बात कह देते हैं। मोरबी में बुजुर्ग आदम भाई से बात हुई तो वे बोले भाजप, मैने पूछा आप भी भाजप, तो फिर बोले हां, यहां तो सभी भाजप। वहीं कई राजकोट में गृहिणी पदमा बेन से बात हुई तो महंगाई का जिक्र ले बैठी, बोली घर चलाना मुशि्कत हो रहा है। तो वोट किसको दोगी, यह फूछने पर सुर बदलते हुए बोली वोट तो जो काम करेगा उसे मिलेगा। कई मतदाता ऐसे मिले जो कुछ बोलने की बजाय हिचकिचाते हैं। कुरेदने पर कहते हैं यहां सभी का बराबर है। नाम पूछने पर बात अधूरी छोड़ कर चलते बनते हैं। यह वह मतदाता हैं जो भाजपा से खुश नहीं है, लेकिन भाजपा के खिलाफ बोलना नहीं चाहता। ऐसे मतदाताओं के मन को टटोलना राजनीतिक दलों के लिए भी खासा मुश्किल हो रहा है। जिस पार्टी के नेता कार्यकर्ता और उनके पास जाते हैं उनके समर्थन की हामी भरते हैं लेकिन उनके मन में क्या है इसकी थाह लेना बहुत आसान नहीं लग रहा है।



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