चिपको आंदोलन: गूगल ने डूडल बना कर साहसी महिलाओं को याद किया

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दुनिया में सबसे ज़्यादा इस्‍तेमाल किए जाने वाले सर्च इंजन गूगल ने सोमवार को ‘चिपको आंदोलन’ पर डूडल बनाया. गूगल ने कहा है कि स्‍वभु कोहली और विप्‍लव सिंह द्वारा बनाया गया डूडल आधुनिक आंदोलन और उसके योगदानकर्ताओं को याद करता है. गूगल ने यह भी कहा कि यह आंदोलन ईको-फेमिनिस्‍ट आंदोलन को भी प्रदर्शित करता है, क्‍योंकि दोनों ही जंगली लकड़ी और पानी से जुड़े हुए हैं.

पेड़ों की रक्षा को लेकर भारत में 1970 के दशक में चले इस आंदोलन को बेहद अहम माना जाता है. उस समय लोग पेड़ों को कटने से बचाने के लिए उससे चिपक जाते थे. यह आंदोलन पूरी तरह से गांधी की अहिंसावादी विचारधारा पर आधारित था. असल आंदोलन का इतिहास और पुराना है. 18वीं सदी में राजस्‍थान के बिश्‍नोई समाज के लोगों ने पेड़ों को गले लगाकर अवनीकरण का विरोध किया.

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केहरी समूह के पेड़ों को बचाने के लिए अमृता देवी के नेतृत्‍व में 84 गांवों के 383 लोगों ने अपनी जान दे दी. जब इसके बुरे प्रभावों का एहसास हुआ तो जोधपुर के महाराज के आदेश पर शुरू हुई पेड़ों की कटाई को रोक दिया गया. एक राजकीय आदेश जारी कर पेड़ों को काटने पर प्रतिबंध लगा दिया गया. आधुनिक भारत में, 1973 में उत्‍तर प्रदेश के मंडल गांव में यह आंदोलन दोबारा शुरू हुआ.

चांद चंडी प्रसाद भट्ट और उनके एनजीओ दशोली ग्राम स्‍वराज्‍य ने यूपी में स्‍थानीय महिलाओं के एक समूह के साथ मिलकर आंदोलन का नेतृत्‍व किया. मशहूर पर्यावरणशास्‍त्री सुंदरलाल बहुगुणा ने भी इस पहल में साथ दिया और इंदिरा गांधी से उनकी अपील के बाद देश में पेड़ों को काटने पर प्रतिबंध लगा. इस आंदोलन में धूम सिंह नेगी, बचनी देवी, गौरा देवी और सुदेशा देवी की बड़ी भूमिका रही.