Good News : बड़े काम की डंठल! सरसों की तूड़ी से मिले एक करोड़, टोंक के किसानों ने बनवा डाले दो-दो मंदिर
किसानों की ओर से प्राय सरसों की तूड़ी को व्यर्थ मानकर जला दिया जाता है, लेकिन यहां किसानों ने उस तूड़ी को बेचकर मंदिरों के निर्माण के लिए बड़ी राशि एकत्रित की।
जो बेकार मानीं जाती थी तूड़ी, उसे करवा दिया मंदिर निर्माण
पीपलू उपखंड के इमामनगर गांव में इस बार किसानों ने खेतों में हुई सरसों की फसल को निकालने के बाद तूड़ी को एकत्रित कर लिया। प्रायः इस तूड़ी को व्यर्थ समझकर जला दिया जाता है, लेकिन किसानों ने इसे बेचने का प्रयास किया। उनका यह प्रयास सफल भी हुआ। इससे किसानों ने हुई करीब एक करोड़ रुपए आय को भगवान के लिए समर्पित किया है। ग्रामीणों ने यह आय इमामनगर के ठाकुर जी और बालाजी मंदिर के निर्माण के लिए समर्पित कर दी।
ग्रामीणों के प्रयास से जगमग हुए मंदिर
इमामनगर में करीब 1 करोड़ रुपए की लागत से ठाकुरजी और हनुमानजी के मंदिर बनकर तैयार हुए है। इनके रंग रोगन सहित अन्य कार्य अंतिम चरण में हैं। गांव के सियाराम पायलेट, बजरंग कराड, अंबालाल, धनराज, मुकेश, हनुमान, दिनेश, रामजस, बंटी आदि ने बताया कि ग्रामीणों की ओर से सरसों की तूड़ी को बेचकर उससे हुई 1 करोड़ रुपए की आय से मंदिर का निर्माण करवाया गया हैं। छोटा सा गांव होने के बावजूद इतनी बड़ी लागत से गांव में मंदिर के निर्माण होने से आस-पास के क्षेत्रों में चर्चा का विषय बना हैं। मंदिर निर्माण कार्य इन दिनों अंतिम चरण में हैं। साथ ही वर्ष 2023 में रामनवमी के पर्व पर धूमधाम से इन दोनों मंदिरों में भगवान की मूर्तियों की धूमधाम से प्रतिष्ठा होगी।
अनूठी एकता की मिशाल समाज को मिला संदेश
गांव के सियाराम पायलट ने बताया कि गांव के सभी काश्तकारों ने हर वर्ष सामूहिक रूप से तूड़ी की बोली लगवाकर ठेकेदार को बेची हैं। ग्रामीणों का कहना था कि सामूहिक रूप से तूड़ी को बेचने से ग्रामीणों को उचित दाम मिला है, जो मंदिरों के निर्माण कार्य में काम आ सका। वहीं ठेकेदार ने भी एकमुश्त बोली लगाकर अपना व्यापार किया हैं। ग्रामीणों की इस अनूठी एकता की मिशाल से समाज को एक नया संदेश मिला है।
अन्य मंदिरों का भी किया जा चुका है कायाकल्प
सरसों की तूड़ी से हुई आय से पीपलू तहसील के नानेर के गढ़ गणेश, जौंला गांव के श्री चारभुजाजी मंदिर, कल्याणपुरा खोखर का झूपड़ा, बिना किसी सरकारी सहायता के श्री चारभुजाजी गौशाला जौंला का संचालन, डूंसरी गांव के सीताराम जी मंदिर समेत मुंडिया, मारखेड़ा, कुरेड़ा, देवरी, बिलायतीपुरा, डोडवाड़ी, जंवाली आदि गांवों में बालाजी, देवी मां, श्रीजी मंदिरों का विकास ग्रामीणों द्वारा सरसों की तूड़ी को सामूहिक रूप से बेचने पर हुई आय से हुआ है। जो देखने अनुकरणीय हैं।
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