Fifa World Cup: हाथ से सिलाई, मजदूरी 160 रुपये… पाकिस्तान के इस गांव में बनी है वर्ल्ड कप वाली फुटबॉल

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Fifa World Cup: हाथ से सिलाई, मजदूरी 160 रुपये… पाकिस्तान के इस गांव में बनी है वर्ल्ड कप वाली फुटबॉल


Fifa World Cup: हाथ से सिलाई, मजदूरी 160 रुपये… पाकिस्तान के इस गांव में बनी है वर्ल्ड कप वाली फुटबॉल

सियालकोट: अगर आपके घर में फुटबॉल है, तो इस बात की बड़ी संभावना है कि वह पाकिस्तान के पूर्वोत्तर में कश्मीरी सीमा से सटे शहर सियालकोट से आई हो। दुनिया की दो-तिहाई से ज्यादा फुटबॉल्स इस शहर के हजार कारखानों में से एक में बनाई जाती हैं, इसमें कतर 2022 फीफा विश्व कप की आधिकारिक गेंद एडिडास अल रिहला भी शामिल है। सियालकोट में, लगभग 60 हजार लोग फुटबॉल बनाने का काम करते हैं। ये संख्या शहर की आबादी का लगभग 8% है।

मशीनी बॉल्स से ज्यादा डिमांड

सियालकोट में बनी 80 प्रतिशत से ज्यादा गेंदों में हाथ से सिलाई होती है। यह मेहनत का ऐसा काम है, जिससे गेंद ज्यादा टिकाऊ तो बनती है बल्कि एयरोडायनेमिक्स के उन नियमों को भी पूरा करती है, जिसे विज्ञान कहा जाता है। सिलाई वाली गेंदें ज्यादा स्थिर होती है। हैंडमेड बॉल्स में मशीनों से सिली जाने वाली गेंदों की तुलना में अधिक तनाव होता है।

एक फुटबॉल के कितने पैसे मिलते हैं?

निर्माता अनवर ख्वाजा इंडस्ट्रीज में सिलाई करने वालों को मोटे तौर पर 160 रुपये यानी लगभग 0.75 डॉलर प्रति गेंद का भुगतान किया जाता है। एक गेंद पूरी करने में तीन घंटे लगते हैं। एक सिलाई करने वाला एक दिन में तीन गेंदों पर लगभग 9,600 रुपये प्रति माह कमा सकता है। ये पैसे काफी कम है। शोधकर्ताओं के अनुमान के अनुसार, सियालकोट में एक आम जिंदगी जीने के लिए कम से कम 20,000 रुपये प्रति माह की जरूरत है। गेंदों की सिलाई करने वालों में ज्यादातर महिलाएं हैं। दिन में दो गेंद बनाने के बाद दोपहर में बच्चों के लिए खाना बनाने अपने गांव लौट जाती हैं। काम निपटाकर दोबारा फैक्ट्री आ जातीं हैं।

अच्छे फुटबॉल बनाने वालों की भारी कमी

पुरुष आमतौर पर निर्माण प्रक्रिया के विभिन्न चरणों में काम करते हैं। कच्चा माल और सामग्री तैयार करते हैं या फिर गुणवत्ता परीक्षण करते हैं। 1997 में श्रम कानूनों के के लागू होने से पहले सियालकोट की इन फैक्ट्रियों में 5 साल से कम उम्र के बच्चे अपने माता-पिता के साथ आते हैं। वो भी खेलते-खेलते मददक करते। अपने आंखों के सामने सामना बनते देखते, लेकिन 2016 में बाल श्रम पर प्रतिबंध के बाद सियालकोट की इन इंडस्ट्रीज पर ‘संभावित कुशल पीढ़ी’ का खतरा पैदा हो गया, जिससे मजदूरों की लगातार कमी चल रही है।

चाइनीज आइटम से बनती हैं सस्ती फुटबॉल

सॉकर बॉल के लिए सिंथेटिक चमड़े का इस्तेमाल होता है, जिसके लिए जरूरी सामान यानी कपास, पॉलिएस्टर और पॉलीयुरेथेन अलग-अलग देशों से आता है। सस्ती गेंदों के लिए चीनी सामग्री का उपयोग किया जाता है, जबकि दक्षिण कोरियाई सामग्री का उपयोग उच्च गुणवत्ता वाली गेंदों के लिए किया जाता है। जर्मन बुंडेसलिगा या अन्य यूरोपीय लीग के लिए की फुटबॉल तैयार करने के लिए जापानी सामान इस्तेमाल होता है।

ऐसा होता है फुटबॉल्स का क्वालिटी टेस्ट

हर पारंपरिक गेंद 20 हेक्सागोन और 12 पेंटागन से बनी होती है जो 690 टांके से जुड़ती है। हालांकि, बदलते वक्त और फुटबॉल की बढ़ती डिमांड के साथ अब गेदों को गर्म गोंद से जोड़ा जाता है। इस प्रक्रिया को थर्मो बॉन्डिंग कहते हैं। ये गेंदें अभी भी अच्छी क्वालिटी और प्रोडक्शन के लिहाज से सस्ती हैं, लेकिन परिवहन के लिए ज्यादा महंगी। सिली हुई गेंद की तरह इसकी मरम्मत नहीं की जा सकती। फुटबॉल तैयार होने के बाद उसे जमीन पर, मैदान पर पटककर देखा जाता है। गेंद की उछाल, उड़ान गति के लिए इसकी सही गोलाई सुनिश्चित की जाती है।

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