नई दिल्ली: जहां हम 21वीं सदी में रह रहें है और चांद पर पहुंच रहें है, हमारा समाज एक अलग दिशा की और बढ़ रहा है लेकिन वहीं कुछ चीजें ऐसी भी है जो आज भी पुरानी रुढ़िवादी सोचा से घिरी हुई है.
जी हां, आज भी कुछ मंदिर ऐसे है जहां पर भक्तों की जाति से जुड़ी शुद्धता और अपवित्रता की पुरातन पंथी सोच अभी भी काफी मंदिरों में निवास करती है. जहां पर देवी-देवताओं की पवित्रता को बचाए रखने के लिए दलितों की एंट्री पर रोक है.
आपको बता दें कि इंडिया टुडे की खबर के मुताबिक, कुछ मंदिरों की जांच की है जहां अभी भी प्राचीन मान्यताओं के अनुसार दलितों के प्रवेश पर रोक है.
तो चलिए जानते है कौन से है वो मंदिर…
काल भैरव मंदिर, वाराणसी
वाराणसी जिसे मंदिरों और आस्था की नगरी से जाना जाता है, वहीं के प्रसिद्ध मंदिर काल भैरव के एक पुजारी के अनुसार, यहां दलितों का भगवान के छूने पर रोक है. पुजारी ने कहा है कि देखिए मैं ऐसा कुछ नहीं करूंगा जो धर्म के खिलाफ हो. वहीं यह अलग बात है कि मेरी जानकारी के बगैर कोई (निम्न जाति) आ जाता है. उन्होंने आगे कहा कि एक प्रार्थना है जिसमें भगवान के पैर छुए जाते है. मैं उन्हें निम्न जाति को प्रार्थना है जिसमें छूने की इजाजत नहीं देता. वहीं इस मंदिर में दूसरी जाति के भक्तों को ऐसा करने से माना नहीं किया जाता है.
लिंगराज मंदिर, भुवनेश्वर
हमारे संविधान में धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार के बावजूद भी हमारे धर्म में प्रचलित प्रथा की भेदभावपूर्ण व्याख्या अभी भी बरकरार है. भुवनेश्वर में 11वीं सदी के प्रतिष्ठित लिंगराज मंदिर में भी दलित भक्त की एंट्री पर पाबंदी है. साल 2012 में शिवरात्रि के दिन भगवान शिव में आस्था रखने वाले दो लाख भक्त इस मंदिर में दर्शन के लिए आए थे. यहां पर गैर हिंदुओं के प्रवेश पर भी रोक है. लेकिन इंडिया टुडे के रिपोर्ट के अनुसार, इस मंदिर के गर्भगृह में दलितों के प्रवेश को साल में एक बार सिर्फ शिवरात्रि के दिन ही इजाजत है. लिंगराज मंदिर के पुजारी मानस ने खुलासा किया है कि शिवरात्रि में दलितों के प्रवेश के बाद प्रवित्र वेदी को स्नान कराके पवित्र किया जाता है. उन्हें इस बात की पूरी जानकारी देते हुए कहा है कि सर्वप्रथम भगवान को सफेद पाउडर लगाया जाता है, जिसमें बाद पवित्र गंगा जल से स्नान करवाया जाता है. ये ही नहीं मंदिर की रसोई को भी सजाया जाता है.
जागेश्वर धाम, अल्मोड़ा
उत्तराखंड जिसे देव भूमि भी कहा जाता है. उत्तराखंड की पहाड़ों पर स्थित जागेश्वर मंदिर जो भगवान शिव का प्राचीन मंदिर है, जहां दलितों का जाना में पाबंदी है. इस मंदिर के वरिष्ठ पुजारी हीरा वल्लभ भट्ट और केशव दत्त भट्ट ने वार्ता करते हुए कहा कि निचली जाति के लोगों प्रांगण के बाहर से पूजा करने का अधिकार है.
बैजनाथ मंदिर, बागेश्वर
उत्तराखंड के ही बागेश्वर जिले का बैजनाथ मंदिर उन मंदिरों में से एक है जहां देवी पार्वती को उनके पति भगवान शिव के साथ दर्शाया गया है. रिपोर्ट के अनुसार, इस मंदिर में भी निचली जाति के लोगों के प्रवेश पर रोक है. यहां के वरिष्ठ पुरोहित पूरन गिरी से जब यह पूछा गया कि क्या यहां पर दलितों का प्रवेश की अनुमति है तो उन्होंने इस पर कहा है कि नहीं, लेकिन ब्राह्मण और क्षत्रीय प्रवेश कर करते हैं.