Eknath Shinde News : ऑटो रिक्शा चलाने पर सुनना पड़ा था ताना, एक ऐसा बागी जो 10 दिन के भीतर बन गया मुख्यमंत्री

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Eknath Shinde News : ऑटो रिक्शा चलाने पर सुनना पड़ा था ताना, एक ऐसा बागी जो 10 दिन के भीतर बन गया मुख्यमंत्री

मुंबई : बात 80 के दशक की है। उस समय सतारा से लगभग 85 किलोमीटर दूर कोयना नदी के पास एक दरे तांब गांव में मराठा परिवार रहता था। संभाजी शिंदे इस परिवार के मुखिया थे। परिवार में तीन बेटे एकनाथ, सुभाष और प्रकाश के अलावा एक बेटी सुनीता थी। उस समय कोंकण और दक्षिण महाराष्ट्र के अधिकतर गांवों के युवा रोजी-रोटी की तलाश में ठाणे और मुंबई आते थे। संभाजी शिंदे भी नौकरी की तलाश में ठाणे चले आए। उस समय तीनों बच्चे स्कूल में ही पढ़ रहे थे। यहां आकर उन्होंने एक बॉक्स फैक्ट्री में सुपरवाइजर के रूप में काम करना शुरू कर दिया। तीनों बच्चों ने स्कूल की पढ़ाई खत्म होने के बाद पिता का हाथ बटाने के लिए काम करना शुरू कर दिया।

परिवार की मदद के लिए चलाया ऑटोरिक्शा
नौ फरवरी 1964 को जन्मे एकनाथ शिंदे परिवार के सबसे बड़े बेटे थे। ऐसे में एकनाथ पर पिता का साथ देने की सबसे अधिक जिम्मेदारी भी थी। पढ़ाई के बाद उन्होंने छोटा-मोटा काम करना शुरू कर दिया। उन्होंने पिता और परिवार की मदद के लिए ऑटोरिक्शा और टेम्पो भी चलाया। इसके अलावा प्राइवेट फैक्ट्री में भी काम किया। साथ ही उन्होंने कॉलेज में एडमिशन भी ले लिया। हालांकि, ग्रेजुएशन पूरी होने से पहले ही पढ़ाई छोड़ दी। काम के दौरान कई बार उन्हें ऑटो ड्राइवर होने के लिए ताने भी सुनने पड़ते थे। इसके बावजूद एकनाथ ने कभी भी हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने जो भी किया पूरे मन के साथ किया। फिर एकनाथ की लता से शादी हो गई। आर्थिक रूप से परिवार मजबूत नहीं था। ऐसे में एकनाथ ठाणे के किशन नगर में छोटे से मकान में रहते थे।

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आनंद दिघे ने सिखाया राजनीति का ककहरा
साल 1986 में किशन नगर में रहने के दौरान ही एकनाथ शिंदे समाज सेवा और राजनीतिक में कदम रखा। एकनाथ शिंदे शिवसेना नेता बाला साहब ठाकरे से काफी प्रभावित थे। ऐसे में वह शिवसेना में शामिल हो गए। यहां उनकी मुलाकात आनंद दिघे से हुई। आनंद दिघे ने एकनाथ शिंदे को राजनीति का ककहरा सिखाया। एकनाथ शिंदे शुरू से ही काफी उत्साही थे। उन्हें आनंद दिघे जो भी काम देते वह पूरे मन से उसे बेहतर तरीके से पूरा कर देते थे। दिघे शिंदे की इस बात से काफी प्रभावित थे। दिघे ने ही शिंदे को फिर सक्रिय राजनीति में कदम रखने के लिए प्रेरित किया। साल 1997 में एकनाथ शिंदे ने पहली बार वागले एस्टेट वार्ड से ठाणे निगम का चुनाव लड़ा। एकनाथ ने इस चुनाव को बड़े अंतर से जीत भी लिया।

दिघे साहब हमेशा मुझे मुश्किल काम देते थे और मैं उसे चुनौती के रूप में लेकर पूरा करता था। उनका मेरे पर विश्वास ही मुझे बेहतर करने के लिए प्रेरित करता था।

-एकनाथ शिंदे, सीएम, महाराष्ट्र

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जब पूरी तरह टूट गए थे एकनाथ शिंदे
जून 2000 में, एकनाथ शिंदे को एक बड़ी पारिवारिक त्रासदी का सामना करना पड़ा। तब उनके 11 और 7 साल के दो नाबालिग बच्चे अपने पैतृक गांव के पास एक झील में एक नाव दुर्घटना में डूब गए। इस घटना के बाद शिंदे बुरी तरह से टूट गए थे। इसके बाद उन्होंने राजनीति को पूरी तरह से छोड़ने का मन बना लिया था। ऐसे में उनके राजनीतिक गुरु आनंद दिघे ने उन्हें हौंसला दिया। दिघे ने कहा कि वह समाज को ही अपना परिवार मानें। इसके बाद से वह फिर से राजनीति में सक्रिय हुए। फिर वह ठाणे नगर निगम में नेता चुने गए। सदन के नेता के रूप में और लोगों की मदद करने वाले नेता के रूप में काफी लोकप्रिय हुए। शिंदे के लंबे समय तक सहयोगी रहे विलास जोशी ने बताया कि शिंदे के ऑफिस में लोगों की काफी भीड़ लगी रहती थी। शिंदे देर रात तक लोगों से मिलकर उनकी समस्याओं को सुलझाने में जुटे रहते थे।

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बाला ठाकरे हुए शिंदे के काम से प्रभावित
तब तक जनता के बीच काम करते हुए एकनाथ शिंदे काफी लोकप्रिय हो चुके थे। इस बीच साल 2001 में उनके मेंटॉर आनंद दिघे का निधन हो गया। इसके बाद एकनाथ शिंदे को ठाणे जिले का प्रमुख बनाया गया। दिघे के बाद शिंदे उनकी विरासत के पथ प्रदर्शक बन गए। अपने जनसर्मथन और राजनीतिक व संगठनात्मक कौशल से वह शिवसेना प्रमुख बाला साहेब ठाकरे और अन्य वरिष्ठ नेताओं के करीबी बन गए। ठाणे नगर निगम में काम करते हुए साल 2004 में शिंदे को विधानसभा चुनाव लड़ने का मौका मिला। इसके बाद एकनाथ शिंदे ने साल 2009, 2014 और फिर 2019 में लगातार जीत विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की। चार बार विधायक रहने के दौरान साल 2014 और 2019 में शिंदे कैबिनेट मंत्री भी रहे। शिंदे ने लगभग तीन सप्ताह तक विपक्ष के नेता के रूप में कार्य किया।

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मंत्री रहते किए कई महत्वपूर्ण काम
एकनाथ शिंदे ने मंत्री पद पर रहते हुए महाराष्ट्र में समृद्धि एक्सप्रेसवे, सेवरी ट्रांसहार्बर लिंक और ठाणे के लिए क्लस्टर पुनर्विकास परियोजना जैसी कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं को क्रियान्वित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। शिंदे के नेतृत्व गुणों के बारे में उनके समर्थकों का कहना है कि वे आपदा और आपात स्थिति में भी आगे बढ़कर नेतृत्व करते हैं। शिंदे के सहयोगी रहे विलास जोशी ने कहा कि फिर चाहे चाहे चिपलून या कोल्हापुर बाढ़ के दौरान बचाव कार्यों में भाग लेना हो या 2020 में बदलापुर में एक फंसे हुए यात्रियों को बचाने का काम।

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जब पीपीई किट पहन कोविड वार्ड का किया था दौरा
शिंदे की प्रतिबद्धता की भावना को बताते हुए उनके सहयोगियों ने ठाणे सिविल हॉस्पिटल की उनके दौरे को याद करते हैं। कोरोना महामारी जब अपने पीक पर थी उस मय उन्होंने ना सिर्फ रोगियों बल्कि स्टाफ का भी मनोबल बढ़ाया था। उस समय शिंदे ने पीपीई किट पहन कोविड वार्ड में पहुंचे। यहां उन्होंने मरीजों और स्टाफ से बातचीत की। अस्पताल के डॉक्टरों का कहना था कि शिंदे के उस दौरे का परिणाम यह हुआ कि वार्ड में माहौल आशावादी हो गया। सभी ने एक साथ मिलकर वायरस से लड़ने का संकल्प लिया।

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10 दिन के भीतर बागी नेता से बन गए मुख्यमंत्री
20 जून एकनाथ शिंदे ने एक अभूतपूर्व राजनीतिक उथल-पुथल के बाद, केवल 10 दिनों में उन्होंने ‘लंबी दूरी’ की यात्रा की। एक बागी नेता के रूप में गुजरात से असम और फिर गोवा से महाराष्ट्र आने के बाद सीधे सीएम पद की शपथ ली। महाराष्ट्र के 20 वें मुख्यमंत्री एकनाथ संभाजी शिंदे शिवसेना के एक मजबूत नेता के रूप में उभर कर शीर्ष पद को हासिल किया। मुख्यमंत्री बनने से पहले शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे नीत महाराष्ट्र की महाविकास आघाड़ी (एमवीए) सरकार में शहरी विकास और पीडब्ल्यूडी मंत्री थे। शिंदे के कद का अंदाजा इससे ही लगाया जा सकता है कि उन्हें पार्टी में दूसरे सबसे प्रमुख नेता के रूप में देखा जाता है। शिंदे के बेटे डॉ. श्रीकांत शिंदे कल्याण सीट से लोकसभा सदस्य हैं। ठाणे शहर की कोपरी-पचपखाड़ी सीट से विधायक शिंदे सड़कों पर उतरकर राजनीति करने के लिए पहचाने जाते हैं। इसके साथ ही एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के ऐसे चौथे मुख्यमंत्री बन गए जो राज्य के सतारा जिले के रहने वाले हैं। तीन मुख्यमंत्रियों में यशवंतराव चव्हाण (राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री), बाबासाहेब भोसले और पृथ्वीराज चव्हाण शामिल हैं।

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