Eknath Shinde: नई पार्टी, मर्जर या फिर बीजेपी के साथ…’बालासाहेब के शिवसैनिक’ एकनाथ शिंदे क्या करेंगे?

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Eknath Shinde: नई पार्टी, मर्जर या फिर बीजेपी के साथ…’बालासाहेब के शिवसैनिक’ एकनाथ शिंदे क्या करेंगे?

मुंबई: शिवसेना (Shivsena) के बागी गुट के नेता एकनाथ शिंदे, उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) के मुख्यमंत्री पद छोड़ने के बाद मुंबई (Mumbai) पहुंच चुके हैं। मीडिया से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि हम सभी लोग बालासाहेब ठाकरे (Bala saheb Thackeray) की विचारधारा को आगे ले जा रहे हैं। हमारे साथ 50 विधायक हैं हम किसी भी पार्टी में विलय नहीं करेंगे। हम ही शिवसेना हैं। उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) के सभी विधायकों को हमारा व्हिप मानना होगा। हालांकि जितनी आसानी से उन्होंने यह बात कही है। उतना आसान यह मामला नजर नहीं आता है। जब तक नई सरकार का गठन नह हो जाता है। तबतक शिंदे की मुश्किलें कम होने वाली नहीं हैं।

एकनाथ शिंदे के सामने मुसीबत
राजनितिक विश्लेषक सुरेश माने ने एनबीटी ऑनलाइन को बताया कि नई सरकार में शामिल होने के पहले एकनाथ शिंदे के सामने कई मुश्किलें हैं। सबसे पहली दिक्कत पावर शेयरिंग यानि मंत्रालयों और विभागों के बंटवारे को लेकर हो सकती है। अपनी मूल पार्टी से इतनी बड़ी बगावत के बाद जाहिर है शिंदे अपने लिए और समर्थकों के लिए अच्छे विभाग हथियाना चाहेंगे। दूसरी दिक्कत यह होगी कि बीजेपी चाहेगी कि शिंदे के गुट का बीजेपी में विलय हो जाये ताकि भविष्य में किसी फूट या बगावत का खतरा कम हो जाये। साथ ही सरकार अपना कार्यकाल पूरा सके। जबकि एकनाथ शिंदे इंडेपेंडेंट गुट रहना पसंद कर सकते हैं। जिससे उन्हें बीजेपी के नियम में बंधना न पड़े।

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शिंदेके सामने यह भी मुसीबत है कि वह अपना इंडिपेंडेंट गुट बनाते हैं तो यह भी देखना दिलचस्प होगा कि नए स्पीकर द्वारा उनके गुट को मान्यता दी जाती है या नहीं। बीजेपी हालांकि इस पूरे संग्राम को बीजेपी और शिंदे ने मिलकर लड़ा है। ऐसे में उनके गुट को मान्यता मिलने के आसार भी काफी ज्यादा हैं। खुद एकनाथ शिंदे ने भी कहा है कि वह किसी भी पार्टी में अपने गुट का विलय नहीं करेंगे। अगर वह बीजेपी में शामिल होते हैं तो खुद उनका और उनके गुट का वजूद खतरे में पड़ सकता है।

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असल शिवसेना किसकी?
एकनाथ शिंदे ने मंगलवार को जब उद्धव ठाकरे के फ़ैसले को अनसुना करते हुए खुद को असली शिवसेना बताया, तो इसके पीछे उनका अपना गणित है। सदन में शिवसेना के 55 विधायक हैं। ऐसे में अगर 37 या उससे अधिक विधायक उनके पक्ष में आ जाते हैं, तो वह शिवसेना पर अपना हक़ जता सकते हैं। हालांकि, नियम के अनुसार गुट को मान्यता विधानसभा स्पीकर देंगे। लेकिन पार्टी पर अपना दावा करते हुए वह चुनाव आयोग की शरण में भी जा सकते हैं। ऐसे में मौजूदा सियासी विवाद के बीच मूल शिवसेना पार्टी किसके साथ रहेगी, आगे इस पर भी क़ानूनी लड़ाई हो सकती है। हालांकि ठाकरे गुट के अनुसार एकनाथ शिंदे के पास 37 विधायक आएंगे ही नही,ऐसे में यह सवाल ही नहीं उठेगा।

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