Dussehra 2022: सिर्फ दशहरा पर खुलता है दशानन मंदिर का कपाट, रहस्‍यमयी है सूर्यास्त के बाद मंदिर बंद होने की कहानी

207
Dussehra 2022: सिर्फ दशहरा पर खुलता है दशानन मंदिर का कपाट, रहस्‍यमयी है सूर्यास्त के बाद मंदिर बंद होने की कहानी

Dussehra 2022: सिर्फ दशहरा पर खुलता है दशानन मंदिर का कपाट, रहस्‍यमयी है सूर्यास्त के बाद मंदिर बंद होने की कहानी

कानपुर: यूपी के कानपुर में दशानन का इकलौता मंदिर है। दशानन मंदिर के कपाट साल में एक बार विजयादशमी के दिन खुलते हैं। रावण प्रकांड ज्ञानी था, उसके जैसा ज्ञानी इस पूरे ब्रह्मांड में दूसरा नहीं था। दशानन रावण भगवान शंकर के चरणों में कमल के फूलों की तरह अपने शीश चढ़ाता था। विद्वानों का मानना है कि जिस दिन रावण का जन्म हुआ था, उसी दिन उसका वध भी हुआ था। इस मंदिर के कपाट खोलकर जन्मोत्सव मनाया जाता है।

विजयादशमी के दिन दशानन मंदिर के कपाट खोले जाते हैं। रावण की प्रतिमा को दूध और पानी से नहलाया जाता है। दशानन का श्रृंगार किया जाता है और पूरे मंदिर को फूलों से सजाया जाता है। दशानन की पूरे विधि-विधान से आरती की जाती है। इस दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने के लिए आते है और पूजा-पाठ करते हैं। श्रद्धालु सरसों के तेल के दीपक जलाते हैं। विद्धानों का मानना है कि रावण प्रकांड ज्ञानी था, दशानन चारों वेदों का ज्ञाता था। उसके दर्शन मात्र से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, बुद्धि और विवेक का विकास होता है।

शिव के सबसे बड़े भक्त के बिना अधूरा है मंदिर

उन्नाव में रहने गुरुप्रसाद शुक्ल भगवान शंकर के बहुत बड़े भक्त थे। गुरुप्रसाद शुक्ल प्रतिदिन उन्नाव से शिवाला मंदिर दर्शन के लिए आते थे। गुरुप्रसाद का मानना था कि शिवाला भगवान शिव का पावन स्थान है। ऐसे में यह स्थान भगवान शिव के सबसे बडे़ भक्त के बिना अधूरा है। दशानन जैसी भगवान शिव की अराधना कोई नहीं कर सकता है। गुरुप्रसाद शुक्ल ने 1868 में दशानन मंदिर का निर्माण कराया था।

जन्म और मृत्यु से जुड़ा इतिहास

पुजारी चंदन ने बताया कि प्रकांड पंडित रावण का जन्म विजय शुक्ल दशमी को हुआ था और उसकी मृत्यु भी विजय शुक्ल दशमी को हुई थी । विजय दशमी की सुबह दशानन मंदिर के पट खोलकर जन्मोत्सव मनाते हैं। इसके साथ ही सूर्यास्त की अंतिम किरण के साथ मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते है। उन्होंने बताया कि रावण कैलाश पर्वत उठा सकता था, लेकिन सीता स्वंयवर में धनुष नहीं उठाया था। रावण त्रिकालदर्शी था, उसे पता था कि प्रभु राम ने सीता को अग्नि में प्रवेश करा दिया है। रावण ने सीता को अशोक वाटिका में रखा था, जहां शोक दूर होते हैं, सीता की रक्षा की जिम्मेदार त्रिजटा को सौंपी थी, त्रिजटा स्वयं चारों पहर राम नाम का जाप करती थी। रावण ने राक्षस जाति को प्रभु राम हाथों मोक्ष दिलाने का काम किया था, बल्कि प्रभु राम ने रावण का खुद क्रियाकर्म किया था।
इनपुट- सुमित शर्मा

उत्तर प्रदेश की और खबर देखने के लिए यहाँ क्लिक करे – Uttar Pradesh News