क्या आप जानते हैं बौद्ध धर्म की दिवाली कब होती है?

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दीपावली का त्योहार हिन्दू के साथ बौद्ध का भी सम्मलित त्योहार है। संपूर्ण भारत वर्ष में इसे मनाया जाता है। खुशियों को बढ़ाने और जीवन से दुखों के अंधकार को मिटाने का यह त्योहार दुनिया का सबसे अच्छा और सुंदर त्योहार माना जाता है। इस त्योहार को ईसा पूर्व 3300 वर्ष पूर्व से लगातार मनाया जाता रहा है। सिंधु घाटी की सभ्यता के लोग भी इस त्योहार को मनाते थे।

इस दिन जहां भगवान राम श्रीलंका से लौटकर अयोध्या आए थे वहीं बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध जब 17 वर्ष बाद अनुयायियों के साथ अपने गृह नगर कपिल वस्तु लौटे तो उनके स्वागत में लाखों दीप जलाकर दीपावली मनाई थी। साथ ही महात्मा बुद्ध ने ‘अप्पों दीपो भव’ का उपदेश देकर दीपावली को नया आयाम प्रदान किया था।

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बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध के समर्थकों एवं अनुयायियों ने गौतम बुद्ध के स्वागत में हजारों लाखों दीप जलाकर दिवाली मनाई थी। सम्राट विक्रमादित्य का राज्याभिषेक दिवाली के दिन हुआ था, इसलिए इस दिन दीप जलाकर दीपावली मनाई थी।ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में रचित कौटिल्य अर्थशास्त्र के अनुसार कार्तिक अमावस्या के अवसर पर मंदिरों और घाटों पर मंदिरों और घाटों पर बड़े पैमाने पर दीप जलाए जाते हैं।

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सम्राट अशोक ने इसी दिन अपने पुत्र महिंद को धम्म प्रचार के लिए लंका भेजा था। पाटलिपुत्र के महेंद्रू घाट से वे रवाना हुए थे। इतिहास में पहली बार किसी राजा ने धर्म के प्रचार के लिए अपने पुत्र को दूर देश भेजा। राजपुत्र होने के नाते महिंद अगले राजा हो सकते थे, पर वे धम्म के लिए विदेश गए। इस महान अवसर को प्रजा ने दीपों की माला बनाकर यादगार बनाया। उसके बाद से ही बौद्ध दिवाली मनाते हैं। धन के लिए नहीं, बल्कि वैज्ञानिक चिंतन और धर्म के लिए, सद्‌‌विचार के लिए दिवाली मनाते हैं।

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