हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री के पहले सुपरस्टार का दर्जा देने की बात हो तो दिलीप कुमार साहब का नाम सबसे ऊपर आएगा. आज इन्ही दिलिप साहब का 95वां जन्मदिन है. उनके जन्मदिन के लिए उनकी पत्नी सायरा बानो ने ख़ास इंतज़ाम किये हैं.
सायरा जी ने बताया कि आज दिलीप साहब की पसंद की बिरयानी बनेगी. पिछले कुछ दिनों में बहुत ज़्यादा बीमार रहने कि वजह से उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमज़ोर हो गयी है इसलिए डॉक्टर से सलाह के बाद ही उन्हें उनकी पसंदीदा वनीला आइसक्रीम दी जाएगी. सायरा बानो ने कहा कि दिलीप साहब की नासाज़ तबियत की वजह से कोई बड़ी जश्न नहीं मनाया जाएगा मगर घर पर ही केक काट कर छोटी सी पार्टी होगी.
आइये आपको दिलीप साहब की ज़िंदगी से जुड़े कुछ ख़ास और अनछुए पहलुओं से अवगत कराते हैं.
- दिलीप कुमार का जन्म पकिस्तान के पेशावर में 11 दिसम्बर 1922 को मोहम्मद युसूफ खान के नाम से हुआ था. उनका बचपन राज कपूर के साथ बीता और बड़े होने पर वो परिवार सहित बॉम्बे आ गए थे.
- अपनी पिता की मदद करने के लिए उन्होंने देविका रानी के बॉम्बे टॉकीज़ में 1250 रूपये महीने की तनख्वाह पर नौकरी शुरू की. बाद में देविका के कहने पर उन्होंने फिल्मों में दिलीप कुमार के नाम से बतौर अभिनेता शुरुवात की.
- दिलीप साहब वक़्त के बहुत पक्के माने जाते हैं. एक बार सेट पर लेट आने की वजह से उन्होंने अपनी पत्नी सायरा बानो से काफी वक़्त तक बात नही की थी.
- उन्होंने इंडस्ट्री में जॉनी वॉकर, धर्मेन्द्र और कादर खान जैसे अभिनेताओं को लांच किया.
- दिलीप साहब की निजी ज़िंदगी काफी उथल पुथल भरी रही. मधुबाला के साथ उनका 7 साल तक अफेयर चला, मगर मधुबाला के पिता से अनबन होने की वजह से ये रिश्ता अपना मुकाम न पा सका. इसके बाद उन्होंने खुद से 22 साल छोटी सायरा बानो से 1966 में शादी की. फिर 1981 में दिलीप साहब ने हैदराबाद की आसमा साहिबा से शादी की, और 1983 में दोनों अलग हो गए.
- दिलीप साहब कई सामाजिक कार्यों में हिस्सा लेते रहे हैं. अपने दोस्तों और जान-पहचान वालों कि दुकानों और ऑफिस का उद्घाटन बिना एक पैसा लिए बिलकुल मुफ्त में किया.
- दिलीप कुमार साहब की कोई औलाद नही है मगर वो शाहरुख़ को अपना बेटा मानते हैं. सलमान खान और आमिर खान से भी उनके अच्छे सम्बन्ध हैं.
- दिलीप साहब को 8 फिल्मफेयर बेस्ट एक्टर अवार्ड मिल चुके हैं. 1991 में पद्मा भूषण, 2015 में पद्म विभूषण और 1994 में दादा साहेब फाल्के अवार्ड भी मिला. इसके अल्वा 1998 में पाकिस्तान सरकार ने भी निशान-ए-इम्तिआज़ पुरस्कार से नवाज़ा.