Deoghar Ropeway Accident : 2000 फीट की ऊंचाई पर हेलिकॉप्टर को रोके रखना क्यों था बड़ी चुनौती, एयरफोर्स के अधिकारी ने बताया

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Deoghar Ropeway Accident : 2000 फीट की ऊंचाई पर हेलिकॉप्टर को रोके रखना क्यों था बड़ी चुनौती, एयरफोर्स के अधिकारी ने बताया
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Deoghar Ropeway Accident : 2000 फीट की ऊंचाई पर हेलिकॉप्टर को रोके रखना क्यों था बड़ी चुनौती, एयरफोर्स के अधिकारी ने बताया

नई दिल्ली : झारखंड के देवघर (Deoghar Ropeway Accident) में इंडियन एयरफोर्स के 5 गरुण कमांडो ने तमाम चुनौतियों से पार करते हुए लोगों की जान बचाई। आईटीबीपी, एनडीआरएफ भी रेस्क्यू मिशन में जुटी रही। इंडियन एयरफोर्स (Indian Airforce) के प्रवक्ता विंग कमांडर आशीष मोघे ने कहा कि एयरफोर्स के दो Mi-17V, एक Mi- 17, एक ALH और एक चीता हेलिकॉप्टर ने 26 घंटे से ज्यादा उड़ान भर कर लोगों को रेस्क्यू किया।

रोपवे हादसे में 12 ट्रॉली में 48 लोग थे फंसे
झारखंड के देवघर में रविवार को रोपवे हादसे में 12 ट्रॉली में 48 लोग फंस गए थे। दो ट्रॉली में फंसे 11 लोगों को आईटीबीपी के जवानों ने रेस्क्यू किया तो 10 ट्रॉली में से 35 लोगों को एयरफोर्स के जाबांजों ने बचाया। इस बेहद चुनौती भरे रेस्क्यू ऑपरेशन में फंसे 2 लोगों की मौत भी हो गई। एयरफोर्स ने इस पर दुख और शोक जताया है। यह ऑपरेशन दुनिया का अपनी तरह का शायद पहला ऑपरेशन था और उतना ही चुनौतियों से भरा। 1980 के दशक में हिमाचल प्रदेश में भी रोपवे हादसा हुआ था लेकिन उस वक्त एक ही केबल कार से रेस्क्यू करना था। देवघर में 12 ट्रॉली हवा में थी जिसमें लोगों की सांसें अटकी थी।


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रेस्क्यू ऑपरेशन पूरा करके बोले एयरफोर्स के अधिकारी
इस रेस्क्यू ऑपरेशन की चुनौतियां समझने के लिए एयरफोर्स के एक अधिकारी से बात की जो इस ऑपरेशन में अहम भूमिका निभा रहे थे। उन्होंने कहा कि हेलिकॉप्टर एक ऐसा प्लेटफॉर्म है जिसे स्थिर रखना ही बहुत चैलेंजिंग है। वहां पर हवा बदलती रहती है और गर्मी के मौसम में यह और दिक्कत भरा होता है। वह पूरा इलाका पत्थर वाला एरिया है और बड़े-बड़े गर्म पत्थरों की वजह से इस मौसम में वहां की हवा भी गर्म हो जाती है और गर्म हवा के गोले से बनने लगते हैं।

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ऐसे में करीब 2000 फीट की ऊंचाई पर ट्रॉली के ठीक ऊपर हेलिकॉप्टर को स्थिर रखने के लिए पायलट को बहुत मशक्कत करनी पड़ी। पायलट जहां हेलिकॉप्टर को स्थिर रख रहे थे, वहीं हेलिकॉप्टर से गरुण कमांडो ट्रॉली के ऊपर उतरे। ट्रॉली लगातार हिल रही थी और ऐसे में कमांडो को ट्रॉली के ऊपर उतरकर फिर उसे साइड से खोलना था क्योंकि ट्रॉली अंदर से नहीं खुल सकती थी और बाहर से ही खोलना था। लोग डरे हुए थे और उन्हें शांत करने के साथ ही हवा में हिलती ट्रॉली से उन्हें ऊपर की तरफ भेजना था। हेलिकॉप्टर लगातार ऊपर उड़ रहा था और उसके विंग्स से इतनी तेज हवा निकलती है कि संभलना मुश्किल होता है। साथ ही केबल कार के तार को भी बचाना था। इन तमाम चुनौतियों को पार कर इंडियन एयरफोर्स के कमांडो ने 10 ट्रॉली से 35 लोगों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया।

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5 गरुण कमांडो, 26 घंटे की उड़ान और हवा में लटकी थी केबल कार
आईटीबीपी के डिप्टी कमांडेंड विपुल वत्स ने बताया कि यह बहुत टफ रेस्क्यू ऑपरेशन था। हमारी टीम रविवार रात को ही पहुंच गई थी। रेकी की और देखा कि किस तरह से रेस्क्यू किया जा सकता है। ट्रॉली की मिनिमम हाइट करीब 70 फीट थी और मैक्सिमम हाइट 2000 फीट थी। मैनुअली हम दो ट्रॉली तक पहुंच सकते थे। इसमें बहुत ज्यादा रिस्क था। उससे निपटते हुए हम दो ट्रॉली तक पहुंचे। एक ट्रॉली में सात और एक ट्रॉली में चार लोग फंसे थे। हमने स्थानीय लोगों की भी मदद ली। हमारी एक्पर्ट टीम और स्थानीय लोगों ने मिलकर रेस्क्यू किया।

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दुनिया में अपनी तरह के पहले रेस्क्यू ऑपरेशन को दिया सफलतापूर्वक अंजाम
हेलिकॉप्टर ने दो, तीन बार उड़ान भरकर देखा लेकिन वह ऐसी जगह पर थी कि उन ट्रॉली से हेलिकॉप्टर के जरिए पहुंचना नामुमकिन था। उसे किसी न किसी तरह मैनुवली ही करना था। फिर हमारी टीम के लोग रस्सियों के जरिए उन ट्रॉली तक पहुंचे और लोगों को बचाया। बाकी ट्रॉली खुले एरिया में थी जिन्हें हेलिकॉप्टर के जरिए रेस्क्यू कर सकते थे। कुल 12 ट्रॉली थी जिसमें 48 लोग फंसे थे। इसमें से आईटीबीपी ने 2 ट्रॉली से 11 लोगों को रेस्क्यू किया। उन्होंने कहा कि मौसम चुनौती बढ़ा रहा था। खुद को बचाते हुए आईटीबीपी जवानों ने इस रेस्क्यू ऑपरेशन को अंजाम दिया।

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