कृषि कानूनों के विरोध में करीब ढाई महीने से चल रहे किसान आंदोलन से बीजेपी में बेचैनी दिखने लगी है।अमित शाह ने दो दिन पूर्व पश्चिमी उत्तर प्रदेश समेत हरियाणा के 40 जाट नेताओं को साथ दिल्ली बुलाकर मंत्रणा की। उनसे स्पष्ट कहा कि अब वे घर न बैठें। पार्टी के रणनीतिकारों को इस बात का अंदेशा है कि कहीं यह आंदोलन जाट बनाम अन्य का न हो जाए? यदि ऐसा हुआ तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जाट बाहुल्य मतदाताओं वाली 19 जिलों की 55 विधानसभा सीटें पार्टी के लिए चुनौती बन सकती हैं। ऐसे में आगामी विधानसभा चुनाव में एक बार से दमदार वापसी का प्लान बनी रही योगी सरकार की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
इसे देखते हुए पार्टी के प्रमुख रणनीतिकार और केंद्रीय गृह मंत्री सड़क पर उतरें और खाप पंचायतों के बीच जाकर किसान कानून के पक्ष में माहौल बनाकर जाट मतदाताओं को छिटकने से रोकने का प्रयास करें।बताया गया कि शाह ने एक-एक करके किसान आंदोलन और इससे पार्टी को होने वाले नुकसान के बारे में जानकारी ली.बताया गया कि शाह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट समाज के विधायक और सांसदों से इस बात को लेकर नाराज थे कि वे पार्टी का पक्ष मजबूती से नहीं रख पा रहे हैं, जबकि कई नेताओं से बड़बोलेपन से भी पार्टी को नुकसान हो रहा है। उन्होंने हिदायत दी कि वे जो भी सोच समझकर बोलें।पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रमुख जाट नेताओं खासकर बागपत के सांसद सतपाल सिंह, मुजफ्फरनगर के संजीव बालियान, गाजियाबाद की पूर्व मेयर आशु वर्मा, किसान मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष राजा वर्मा, नरेश सिरोही को अमित शाह ने मीटिंग में बुलाया था।
इस दौरान कुछ नेताओं ने गन्ना किसानों की समस्याओं के समाधान में हो रही पर किसानों में नाराजगी के बारे में बताया, जिस पर अमित शाह ने उन्हें कहा कि वे मोदी सरकार द्वारा किसानों के हित में लिए गए निर्णय के बारे में व्यापक प्रचार प्रसार करें, जो नहीं हुआ है उस बारे में उन्हें आश्वस्त करें।बीजेपी से जुड़े एक प्रमुख नेता ने बताया कि अमित शाह द्वारा बुलाई गई मीटिंग में इस बात पर भी चर्चा हुई कि किसान आंदोलन का असर इस बार जिला पंचायत चुनावों पर भी हो सकता है।
जिस प्रकार से आंदोलन गांव में फैल रहा है और आरएलडी, कांग्रेस और सपा समेत अन्य राजनीतिक दल इस आंदोलन की आड़ में ग्रामीण क्षेत्र में बीजेपी के विरोध में माहौल बनाने के प्रयास में जुटे हैं, यदि इस पर पार्टी ने कोई विशेष प्लान तैयार न किया तो जिला पंचायत चुनावों में उतरने वाले पार्टी प्रत्याशियों को खामियाजा उठाना पड़ सकता है। ऐसा होने पर विधानसभा चुनाव में भी ग्रामीण क्षेत्र में बीजेपी के पक्ष में मतदान कराना चुनौती बन जाएगा।
आंकड़े बताते हैं कि इन जिलों में करीब 24 फीसदी जाट मतदाता होने के दावे किए जाते हैं। यही कारण है कि पिछले विधानसभा और लोकसभा चुनाव में पश्चिमी उप्र में अपनी राजनीतिक जमीन खो चुकी आरएलडी भी अब बिल के विरोध में खुलकर सामने आ गया है।
पार्टी के नेता अजीत सिंह और जयंत चौधरी लगातार किसान पंचायत में शामिल हो रहे हैं। इसे देखते हुए अब बीजेपी के रणनीतिकारों को 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी के लिए माहौल बिगड़ता नजर आ रहा है।
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