Controversy over bihar Education Department order withholding salary and pension preparation to bring privilege notice against KK Pathak – वेतन व पेंशन रोकने वाले शिक्षा विभाग के आदेश पर विवाद, केके पाठक के खिलाफ विशेषाधिकार नोटिस लाने की तैयारी, बिहार न्यूज

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Controversy over bihar Education Department order withholding salary and pension preparation to bring privilege notice against KK Pathak – वेतन व पेंशन रोकने वाले शिक्षा विभाग के आदेश पर विवाद, केके पाठक के खिलाफ विशेषाधिकार नोटिस लाने की तैयारी, बिहार न्यूज

Controversy over bihar Education Department order withholding salary and pension preparation to bring privilege notice against KK Pathak – वेतन व पेंशन रोकने वाले शिक्षा विभाग के आदेश पर विवाद, केके पाठक के खिलाफ विशेषाधिकार नोटिस लाने की तैयारी, बिहार न्यूज

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बिहार शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव (एसीएस) केके पाठक की ओर से जारी एक आदेश के बाद एक बार फिर सियासी घमासान मच गया है। शिक्षा विभाग ने जिलों को निर्देश दिया है कि राज्य सरकार की नीतियों के खिलाफ विभिन्न मीडिया के माध्यम से शिक्षकगण अनर्गल बयान दे रहे हैं। यह कदाचार की श्रेणी में आता है। कोई शिक्षक संघ बनाते हैं अथवा इसके सदस्य बनते हैं, उन्हें भी चिह्नित करें। ऐसे शिक्षकों पर भी कठोर अनुशासनिक कार्रवाई करें। शिक्षकों के संगठनों ने इसे लोकतांत्रिक अधिकारों का अपमान बताया है। मामला तब और बिगड़ गया जब शिक्षा विभाग ने फेडरेशन ऑफ यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन ऑफ बिहार (एफटीएबी) के कार्यकारी अध्यक्ष कन्हैया बहादुर और एमएलसी संजय कुमार के वेतन और पेंशन को रोकने का आदेश जारी किया है।

इस संबंध में एमएलसी संजय कुमार ने कहा कि वह अपनी पेंशन रोकने के कदम के खिलाफ विशेषाधिकार नोटिस देंगे, क्योंकि वह विधान परिषद में एक शिक्षक प्रतिनिधि हैं और तथ्यों का पता लगाए बिना उनकी पेंशन रोकने का आदेश कैसे जारी किया गया। बता दें कि संजय कुमार महागठबंधन के घटक दल सीपीआई के सदस्य हैं। उन्होंने कहा कि केके पाठक की हरकतें स्पष्ट रूप से इशारा करती हैं कि उन्होंने अपना मानसिक संतुलन खो दिया है।

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उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय अलग-अलग अधिनियमों और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के दिशानिर्देशों और समय-समय पर किए गए प्रासंगिक संशोधनों द्वारा शासित होते हैं। अधिनियम यूजीसी दिशा-निर्देशों के अनुपालन के बारे में भी बात करते हैं। अधिनियम स्पष्ट रूप से बताता है कि प्रतिदिन कितनी कक्षाएं और किसके द्वारा संलग्न करने की आवश्यकता है। सरकार को सबसे पहले यह देखने की ज़रूरत है कि क्या वह स्कूलों और कॉलेजों में आवश्यक बुनियादी ढांचा और सुविधाएं प्रदान करने में सक्षम है। 

इस बीच उच्च शिक्षा निदेशक रेखा कुमारी ने विभाग के आदेशों के खिलाफ फेडरेशन ऑफ यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन ऑफ बिहार की टिप्पणियों पर आपत्ति जताई और सभी राज्य विश्वविद्यालयों के रजिस्ट्रारों को लिखा। पत्र में लिखा गया है कि शिक्षा विभाग की नीतियों का विरोध करना गैर-पेशेवर आचरण है और उच्च शिक्षा में सुधार के प्रयासों का विरोध है। इसलिए, दोनों नेताओं (कन्हैया बहादूर और संजय कुमार) को कारण बताओ नोटिस देकर उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई शुरू करें और अगले आदेश तक उनका वेतन और पेंशन रोक दें। 

वहीं माध्यमिक शिक्षा निदेशक कन्हैया प्रसाद श्रीवास्तव ने सभी जिला शिक्षा अधिकारियों को लिखे पत्र में कहा है कि अखबारों में बयान देना और सोशल मीडिया पर नीतियों की आलोचना करना और नाराजगी व्यक्त करना अकादमिक माहौल बनाने में बाधा है। कोई भी शिक्षक किसी संघ का सदस्य नहीं हो सकता। एसोसिएशन बनाना या इसमें शामिल होना कदाचार के रूप में देखा जाएगा और उनके खिलाफ सख्त अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी। 

इस बीच बीजेपी सांसद सुशील कुमार मोदी ने आरोप लगाया है कि शिक्षा विभाग में आपातकाल जैसी स्थिति पैदा कर दी गई है। धर्मनिरपेक्षता और शिक्षकों के लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि बीपीएससी से चयनित 32 हजार शिक्षक किसी स्कूल में योगदान करने को तैयार नहीं हैं। पहले धर्म और भाषा के आधार पर बड़ा भेदभाव करते हुए स्कूली छात्रों-शिक्षकों के लिए छुट्टियों के अलग-अलग कैलेंडर जारी किये गए और फिर एक साथ चार कड़े आदेश जारी कर शिक्षकों के कुछ बोलने या संगठन बनाने पर भी रोक लगा दी गई। ऐसा लग रहा है मानो शिक्षा विभाग में अघोषित इमरजेंसी है। बीपीएससी का विरोध करने पर सात लोगों को कड़ी चेतावनी दी गई है। शिक्षा विभाग सीमा का अतिक्रमण कर रहा है।

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