Congress President Election: नरसिम्हा राव का एक फोन कॉल और दिग्विजय सिंह को मिला था CM पोस्ट, क्या कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए भी लगेगी लॉटरी?
भोपाल/जयपुर: कांग्रेस का नया अध्यक्ष कौन होगा इस पर अभी भी सस्पेंस बना हुआ है। इसी मसले पर गुरुवार को राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सोनिया गांधी की मुलाकात होनी है। इस मुलाकात से पहले सोनिया गांधी से पार्टी के नेता केसी वेणुगोपाल मुलाकात कर रहे हैं, वहीं जोधपुर हाउस में मुकुल वासनिक राजस्थान सीएम अशोक गहलोत से मुलाकात करने पहुंचे। इसी बीच कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह बुधवार रात केरल से दिल्ली के लिए रवाना हो गए। सूत्रों का कहना है कि वह पार्टी अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए गुरुवार को अपना नामांकन दाखिल कर सकते हैं। कांग्रेस अध्यक्ष पद की रेस में दिग्विजय सिंह का नाम आने के बाद से उनसे जुड़ी राजनीतिक कहानियों को लेकर लोगों की दिलचस्पी बढ़ गई है। ऐसे में आइए जानते हैं कि दिग्विजय सिंह को कैसे अचानक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला था।
CM बनने का ख्वाब देख रहे थे कमलनाथ, लॉटरी लग गई दिग्गी की
1991 के बाबरी विध्ंवस के बाद मध्य प्रदेश में साल 1993 में हुए मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बहुमत मिला। चुनाव के बाद कमलनाथ, माधवराव सिंधिया, श्यामचरण शुक्ल जैसे नेता मुख्यमंत्री पद के लिए अपनी दावेदारी पेश करने में जुटे थे। उस समय तक सीएम की रेस में कहीं भी दिग्विजय सिंह का नाम नहीं था। क्येांकि उस वक्त दिग्गी राजा ने विधानसभा चुनाव में नहीं उतरे थे, वह उस समय संसद सदस्य थे। विधायक दल की बैठक में श्यामचरण शुक्ल का नाम सबसे आगे चल रहा था, तभी अर्जुन सिंह ने पिछड़े समाज से आने वाले सुभाष यादव के रूप में सीएम कैंडिडेट के रूप में अप्रत्याशित नाम आगे कर दिया। तभी अर्जुन सिंह को अनुमान हो गया था सुभाष यादव को अधिकतम विधायकों को समर्थन नहीं मिलने जा रहा है। इसके बाद तय हुआ कि अर्जुन सिंह अपने समर्थक विधायकों को माधवराव सिंधिया को सीएम कैंडिडेट के रूप में सपोर्ट देने को कहेंगे।
ऐसे CM कैंडिडेट के लिए आया दिग्विजय का नाम
उधर, माधवराव सिंधिया अपने ग्वालियर चंबल के करीब 15 विधायकों का समर्थन किसे दें यह गोपनीय रखे हुए थे। शाम 5 बजे विधायक दल की बैठक शुरू हुई और करीब 4 घंटे चली। बैठक में कांग्रेस हाई कमान के पर्यवेक्षक के तौर पर प्रणब मुखर्जी, सुशील कुमार शिंदे और जर्नादन पुजारी मौजूद थे। बैठक में विधायकों का रुख देखकर कमलनाथ भी समझ चुके थे कि सीएम पद के लिए उनकी दावेदारी मजबूत नहीं है। यही वह मौका था जब बैठक में दिग्विजय सिंह का नाम सीएम कैंडिडेट के लिए शुरू हो गया। बैठक में कमनाथ और सुरेश पचौरी मिलकर दिग्गी राजा का नाम आगे करने लगे।
कहा जाता है कि विधायक दल की बैठक शुरू होने से पहले दिग्विजय सिंह और कमलनाथ की लंबी बातचीत हुई थी, जिसमें तय हुआ था कि इस गुट से उसी नेता का नाम आगे किया जाए जिसपर आम सहमति बन सकती है। इस आपसी मीटिंग में ही दिग्विजय सिंह ने कमलनाथ और भरोसा दिलाया कि मध्य प्रदेश के नवनिर्वाचित विधायकों में एक बड़ा खेमा उनके पक्ष में है। कहा यह भी जाता है कि दिग्विजय सिंह ने कुछ विधायकों से लिखित में सपोर्ट देने की बात ले ली थी।
पीवी नरसिम्हा राव का एक फोन कॉल और दिग्गी बन गए CM
कांग्रेस विधायक दल की बैठक शुरू हुई, जिसमें किसी एक नेता के नाम पर सहमति नहीं बनने पर गरमा-गरमी का माहौल बन गया। इसके बाद पर्यवेक्षक प्रणब मुखर्जी ने गुप्त मतदान कराने का फैसला लिया। जब वोटिंग हो रही थी तब हॉल में केवल नवनिर्वाचित विधायक थे, गैर विधायक के रूप में दिग्विजय सिंह और उनके प्राइवेट सिक्रेट्री राजेंद्र रघुवंशी थे। रघुवंशी वहां इसलिए रुके थे क्योंकि उन्हें दिग्विजय सिंह की बेटी की शादी में आने के लिए विधायकों को आमंत्रित करना था। वोटिंग का रिजल्ट चौंकाने वाला आया। 174 विधायकों में श्यामचरण शुक्ल के पक्ष में 56 और दिग्विजय सिंह को सीएम बनाने के पक्ष में 100 विधायकों के वोट मिले। तत्काल कमनाथ ने फोन करके कांग्रेस के हाई कमान को विधायकों के फैसले के बारे में फोन करके सूचना दे दी। इसके तुरंत बाद प्रणब मुखर्जी के लिए तत्कालनी प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष और पीवी नरसिम्हा राव का फोन आया और कहा गया कि जिसके भी पक्ष में ज्यादा विधायकों का समर्थन है उन्हें सीएम बना दीजिए। इस तरह सबको चौंकाते हुए दिग्विजय सिंह मध्य प्रदेश के नये मुख्यमंत्री बने।
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1991 के बाबरी विध्ंवस के बाद मध्य प्रदेश में साल 1993 में हुए मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बहुमत मिला। चुनाव के बाद कमलनाथ, माधवराव सिंधिया, श्यामचरण शुक्ल जैसे नेता मुख्यमंत्री पद के लिए अपनी दावेदारी पेश करने में जुटे थे। उस समय तक सीएम की रेस में कहीं भी दिग्विजय सिंह का नाम नहीं था। क्येांकि उस वक्त दिग्गी राजा ने विधानसभा चुनाव में नहीं उतरे थे, वह उस समय संसद सदस्य थे। विधायक दल की बैठक में श्यामचरण शुक्ल का नाम सबसे आगे चल रहा था, तभी अर्जुन सिंह ने पिछड़े समाज से आने वाले सुभाष यादव के रूप में सीएम कैंडिडेट के रूप में अप्रत्याशित नाम आगे कर दिया। तभी अर्जुन सिंह को अनुमान हो गया था सुभाष यादव को अधिकतम विधायकों को समर्थन नहीं मिलने जा रहा है। इसके बाद तय हुआ कि अर्जुन सिंह अपने समर्थक विधायकों को माधवराव सिंधिया को सीएम कैंडिडेट के रूप में सपोर्ट देने को कहेंगे।
ऐसे CM कैंडिडेट के लिए आया दिग्विजय का नाम
उधर, माधवराव सिंधिया अपने ग्वालियर चंबल के करीब 15 विधायकों का समर्थन किसे दें यह गोपनीय रखे हुए थे। शाम 5 बजे विधायक दल की बैठक शुरू हुई और करीब 4 घंटे चली। बैठक में कांग्रेस हाई कमान के पर्यवेक्षक के तौर पर प्रणब मुखर्जी, सुशील कुमार शिंदे और जर्नादन पुजारी मौजूद थे। बैठक में विधायकों का रुख देखकर कमलनाथ भी समझ चुके थे कि सीएम पद के लिए उनकी दावेदारी मजबूत नहीं है। यही वह मौका था जब बैठक में दिग्विजय सिंह का नाम सीएम कैंडिडेट के लिए शुरू हो गया। बैठक में कमनाथ और सुरेश पचौरी मिलकर दिग्गी राजा का नाम आगे करने लगे।
कहा जाता है कि विधायक दल की बैठक शुरू होने से पहले दिग्विजय सिंह और कमलनाथ की लंबी बातचीत हुई थी, जिसमें तय हुआ था कि इस गुट से उसी नेता का नाम आगे किया जाए जिसपर आम सहमति बन सकती है। इस आपसी मीटिंग में ही दिग्विजय सिंह ने कमलनाथ और भरोसा दिलाया कि मध्य प्रदेश के नवनिर्वाचित विधायकों में एक बड़ा खेमा उनके पक्ष में है। कहा यह भी जाता है कि दिग्विजय सिंह ने कुछ विधायकों से लिखित में सपोर्ट देने की बात ले ली थी।
पीवी नरसिम्हा राव का एक फोन कॉल और दिग्गी बन गए CM
कांग्रेस विधायक दल की बैठक शुरू हुई, जिसमें किसी एक नेता के नाम पर सहमति नहीं बनने पर गरमा-गरमी का माहौल बन गया। इसके बाद पर्यवेक्षक प्रणब मुखर्जी ने गुप्त मतदान कराने का फैसला लिया। जब वोटिंग हो रही थी तब हॉल में केवल नवनिर्वाचित विधायक थे, गैर विधायक के रूप में दिग्विजय सिंह और उनके प्राइवेट सिक्रेट्री राजेंद्र रघुवंशी थे। रघुवंशी वहां इसलिए रुके थे क्योंकि उन्हें दिग्विजय सिंह की बेटी की शादी में आने के लिए विधायकों को आमंत्रित करना था। वोटिंग का रिजल्ट चौंकाने वाला आया। 174 विधायकों में श्यामचरण शुक्ल के पक्ष में 56 और दिग्विजय सिंह को सीएम बनाने के पक्ष में 100 विधायकों के वोट मिले। तत्काल कमनाथ ने फोन करके कांग्रेस के हाई कमान को विधायकों के फैसले के बारे में फोन करके सूचना दे दी। इसके तुरंत बाद प्रणब मुखर्जी के लिए तत्कालनी प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष और पीवी नरसिम्हा राव का फोन आया और कहा गया कि जिसके भी पक्ष में ज्यादा विधायकों का समर्थन है उन्हें सीएम बना दीजिए। इस तरह सबको चौंकाते हुए दिग्विजय सिंह मध्य प्रदेश के नये मुख्यमंत्री बने।