CM आवास की गंगाजल से धुलाई, राहुल मामले पर हमलावर, स्वामी प्रसाद मौर्य का साथ… आखिर अखिलेश की नजर कहां है?

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CM आवास की गंगाजल से धुलाई, राहुल मामले पर हमलावर, स्वामी प्रसाद मौर्य का साथ… आखिर अखिलेश की नजर कहां है?

CM आवास की गंगाजल से धुलाई, राहुल मामले पर हमलावर, स्वामी प्रसाद मौर्य का साथ… आखिर अखिलेश की नजर कहां है?


लखनऊ: उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ओबीसी सियासत पर एक बड़ा दांव खेल दिया है। उन्होंने 6 साल पुराने उस मामले को एक बार फिर उठाया है, जिस पर कई बार बहस हो चुकी है। मामला मुख्यमंत्री आवास के शुद्धिकरण का है। वर्ष 2017 में मुख्यमंत्री का कार्यभार संभालने के बाद योगी आदित्यनाथ जब पहली बार मुख्यमंत्री आवास में रहने के लिए गए थे, वहां पूजा कराई गई थी। अखिलेश यादव दावा करते हैं कि मुख्यमंत्री आवास को भाजपा के लोगों ने गंगाजल से धुलवाया। इसे वह अपने अपमान से जोड़ते हैं। मुख्यमंत्री आवास को अपना आवास बताते हुए अखिलेश कहते हैं कि हमारे घर को भाजपा के लोगों ने गंगाजल से धुलवाया, तब ओबीसी का अपमान नहीं हुआ। दरअसल, राहुल गांधी पर ओबीसी के अपमान का मामला चला। मोदी सरनेम मानहानि केस ने राहुल गांधी की राजनीति पर ब्रेक लगा दिया है। इस केस में सूरत कोर्ट ने राहुल को 2 साल की सजा सुनाई। जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धाराओं के तहत राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता छिन गई। अब इसी मामले को अखिलेश यादव 2017 के मुख्यमंत्री आवास धुलाई मामले से जुड़ रहे हैं। यह पूरी कवायद ओबीसी वोट बैंक में सेंधमारी और अपने वोट बैंक को एकजुट बनाए रखने की है।

ओबीसी वोट बैंक को साधने की कोशिश

उत्तर प्रदेश में ओबीसी वोट बैंक को साधने की सियासत जोर पकड़ रही है। लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर इस प्रकार के लगातार प्रयास चल रहे हैं। अखिलेश यादव ने इसी रणनीति के तहत एक बार फिर से सीएम आवास की गंगाजल से धुलाई का मामला उठा दिया है। अखिलेश यादव 2017 से पहले मुख्यमंत्री थे। मुख्यमंत्री आवास में रहते थे। यूपी चुनाव 2017 में भाजपा सरकार चुनकर आई। योगी मुख्यमंत्री बने। अब उस मसले को यादव ओबीसी से जोड़कर अखिलेश यादव अपने वोट बैंक को मजबूत बनाने की कोशिश करते दिख रहे हैं। साथ ही, स्वामी प्रसाद मौर्य के माध्यम से प्रदेश के अन्य ओबीसी तबकों में सेंधमारी की भी उनकी कोशिश है।

राष्ट्रीय परिदृश्य पर पीएम नरेंद्र मोदी के उभार और जमने के बाद यूपी की ओबीसी सियासत भाजपा के पाले में जाती दिखी है। हालांकि, यूपी चुनाव 2022 के दौरान ओबीसी वोट बैंक में एक बड़ा डेंट पड़ा है। अखिलेश यादव, भाजपा को मिलने वाले ओबीसी वोट बैंक में अपनी हिस्सेदारी को और बढ़ाने की कोशिश करते दिख रहे हैं। राहुल गांधी ने लोकसभा चुनाव 2019 में ‘मोदी’ सरनेम को लेकर जो बयान दिया था, उसी के आधार पर मानहानि का मुकदमा दर्ज हुआ। 4 साल बाद फैसला उनके खिलाफ आया। अब अखिलेश यादव ओबीसी के उस जाति को निशाने पर लेकर अन्य ओबीसी जातियों को साधने की कोशिश करते दिख रहे हैं।

भाजपा भी दे रही है बड़ा मैसेज

ओबीसी राजनीति को साधने की सियासत भारतीय जनता पार्टी में करते दिख रही है। राहुल गांधी के खिलाफ फैसला आने के बाद लगातार भाजपा के नेता आक्रामक हैं। राहुल गांधी के माफी न मांगने की बात को जोर-शोर से उठा रहे हैं। दरअसल, मानहानि मुकदमे में राहुल गांधी के सामने माफी मांगने का विकल्प था, लेकिन उन्होंने कोर्ट में कानूनी लड़ाई लड़ी। इसमें उन्हें हार मिली। संसद सदस्यता चली गई। अब इस मसले को भाजपा नेता ओबीसी की प्रतिष्ठा से जोड़कर पेश कर रहे हैं। वह कह रहे हैं कि राहुल गांधी ओबीसी वर्ग को छोटा समझते हैं। इसलिए, उनसे माफी मांगने में उन्हें दिक्कत हुई। यूपी के बड़े से लेकर छोटे नेता तक विभिन्न कार्यक्रमों में इस बात को कहते-सुनते दिखाई दे रहे हैं। अखिलेश यादव ने भी इस मसले को उठाया है। उन्होंने कहा कि यूपी के नेताओं को मोदी सरनेम मामले में मानहानि दिखती है, लेकिन मुख्यमंत्री आवास की धुलाई का मसला उन्हें मानहानि नजर नहीं आता है।

अखिलेश की रणनीति पीएम कैंडिडेट की तो नहीं?

सूरत कोर्ट ने राहुल गांधी को 2 साल की सजा सुनाई है। इस आधार पर लोकसभा सचिवालय ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धाराओं के तहत उनकी सदस्यता छिनने आदेश के जारी कर दिया। इस आदेश के जारी होने के बाद राहुल गांधी अगले 8 सालों तक के लिए राजनीति से दूर होते दिख रहे हैं। अगर कोर्ट से उन्हें राहत नहीं मिली तो जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धाराओं के तहत सजा पूरी होने के 6 साल बाद तक वे चुनावी मैदान में नहीं उतर पाएंगे। ऐसे में अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के दौरान विपक्ष का प्रधानमंत्री चेहरा कौन होगा? इसकी रेस तेज हो गई है। अखिलेश यादव जिस प्रकार से कांग्रेस को नसीहत देते दिख रहे हैं। कह रहे हैं कि कांग्रेस राष्ट्रीय पार्टी है। उसे क्षेत्रीय पार्टियों को बैकअप करना चाहिए। जहां पर क्षेत्रीय दल प्रभावी हैं, वहां पीछे खड़े होकर उन्हें सपोर्ट करना चाहिए। इसका सीधा अर्थ यह है कि अखिलेश यादव यूपी की राजनीति में विपक्ष का एकमात्र चेहरा बनने की कोशिश करते दिख रहे हैं।

ऐसे में यह भी चर्चा शुरू हो गई है कि अखिलेश विपक्ष के पीएम कैंडिडेट की दौड़ में भी शामिल हो सकते हैं। पिछले दिनों कोलकाता में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के दौरान भी इस प्रकार का मामला उठा था। अखिलेश और ममता बनर्जी की मुलाकात के बाद इसको लेकर गहमागहमी भी बढ़ी। पिछले दिनों में अखिलेश यादव की तेलंगाना के सीएम के चंद्रशेखर राव, शरद पवार, नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव, फारूक अब्दुल्ला से लेकर तमाम बड़े विपक्षी नेताओं से मुलाकात हुई है। सबसे अधिक लोकसभा क्षेत्र वाले प्रदेश से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुकाबले में अखिलेश यादव को विपक्ष का पीएम चेहरा बनाए जाने से फायदा मिलने की भी चर्चा यूपी के राजनीतिक गलियारों में तेज हो गई है।

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