Chhatrapati Sambhaji: कौन हैं छत्रपति संभाजी महाराज जिन पर महाराष्ट्र में मचा है सियासी महाभारत, पढ़ें पूरा इतिहास

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Chhatrapati Sambhaji: कौन हैं छत्रपति संभाजी महाराज जिन पर महाराष्ट्र में मचा है सियासी महाभारत, पढ़ें पूरा इतिहास

Chhatrapati Sambhaji: कौन हैं छत्रपति संभाजी महाराज जिन पर महाराष्ट्र में मचा है सियासी महाभारत, पढ़ें पूरा इतिहास


मुंबई:मेरे चार बेटों में से अगर एक भी तुम्हारे जैसा होता तो कब का पूरा हिंदुस्तान मुगल सल्तनत का हिस्सा बन जाता। औरंगजेब ने छत्रपति संभाजी महाराज के लिए यह बात कही थी। छत्रपति संभाजी धर्मवीर थे या नहीं? महाराष्ट्र की सियासत में इस पर घमासान मचा हुआ है। मध्यकालीन भारत के इतिहास में संभाजी महाराज एक ऐसा नाम है, जिनकी चर्चा के बगैर मराठा शौर्य की कहानी अधूरी रहेगी। महाराष्ट्र में संभाजी महाराज के अपमान के आरोप लग रहे हैं। क्या संभाजी ने हिंदू धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी? आखिर और उनका क्या इतिहास है, आइए जानते हैं।

छत्रपति शिवाजी से संभाजी का क्या संबंध?
छत्रपति संभाजी महाराज मराठा साम्राज्य के महान शासक छत्रपति शिवाजी के सबसे बड़े पुत्र थे। संभाजी का जन्म 14 मई 1657 को पुरंदर के किले में हुआ था।शिवाजी महाराज को संभाजी राजे से अपार प्रेम था। संभाजी जब दो साल के थे, तब उनकी मां सईबाई की अकाल मृत्यु हो गई। उसके बाद राजमाता जीजाबाई (जिजाऊ) ने उनकी देखभाल की। जब छत्रपति शिवाजी महाराज आगरा अभियान पर निकले तो वे संभाजी राजे को भी साथ ले गए थे। उस समय संभाजी राजे सिर्फ नौ साल के थे। उन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराज की कई बातों को करीब से देखा था। शिवाजी महाराज के आगरा छोड़ने के बाद उन्होंने संभाजी महाराज को मथुरा में रखा। इस दौरान संभाजी राजे की मौत की अफवाह फैलाकर छत्रपति शिवाजी को सकुशल निकाला गया। 20 नवम्बर 1666 को संभाजी रायगढ़ पहुंच गए। आगरा से रायगढ़ लौटते वक्त संभाजी राजे की चतुराई की कई कहानियां मशहूर हैं।

महाराष्ट्र में क्यों मचा है सियासी घमासान?
30 दिसंबर को महाराष्ट्र विधानसभा के शीतकालीन सत्र का आखिरी दिन था। इस दौरान एनसीपी के नेता और राज्य के पूर्व उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने एक ऐसा बयान दिया, जिस पर हंगामा मच गया। अजित पवार ने कहा, ‘छत्रपति संभाजी महाराज धर्मवीर नहीं स्वराजरक्षक थे। उन्होंने कभी धर्म की वकालत नहीं की। छत्रपति शिवाजी महाराज ने ही हिंदू स्वराज्य की स्थापना की थी। लेकिन कुछ लोग जानबूझकर धर्मवीर-धर्मवीर का जिक्र करते रहते हैं। जब मैं कैबिनेट का हिस्सा था तभी मैंने साफ किया था कि संभाजी महाराज का नाम स्वराज रक्षक के रूप में लिया जाना चाहिए। जो बीत गया उसे भूल जाने में ही भलाई है। पुरानी बातों को याद दिलाने का कोई अर्थ नहीं है।’ पवार ने साथ ही शिंदे को नसीहत देते हुए कहा कि आप महाराष्ट्र की 13 करोड़ जनता के मुखिया हैं। महाराष्ट्र की एक संस्कृति और परंपरा है और इसे संरक्षित किया जाना चाहिए। शिंदेजी इसे संरक्षित और बढ़ाने की जिम्मेदारी आप पर है। अजित पवार के इस बयान के बाद उनका चौतरफा विरोध हो रहा है। बीजेपी ने पवार से माफी मांगने को कहा है। इसके साथ ही बीजेपी कार्यकर्ताओं ने पुणे, नासिक, नागपुर और बारामती में अजित पवार के खिलाफ प्रदर्शन किया।

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छत्रपति शिवाजी के वंशज ने क्या कहा?
छत्रपति शिवाजी के वंशज संभाजी छत्रपति ने इस मामले में अजित पवार से माफी मांगने या विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के पद से इस्तीफा देने को कहा है। संभाजी ने पवार पर हमला करते हुए कहा, ‘उन्हें साफ करना चाहिए कि उन्होंने किस संदर्भ में इस तरह की टिप्पणी की है। विषय का अध्ययन किए बगैर ऐतिहासिक घटनाओं पर अजित पवार को टिप्पणी नहीं करनी चाहिए। उनका बयान पूरी तरह से गलत और अर्धसत्य है। छत्रपति संभाजी महाराज को ‘स्वराज रक्षक’ कहना तो सही है लेकिन अजित पवार का यह कहना गलत है कि संभाजी महाजार धर्मवीर नहीं थे।

धर्मवीर संभाजी क्यों कहा जाता है?
1680 में शिवाजी महाराज के निधन के बाद औरंगजेब की नजर दक्कन (दक्षिण) पर फिर पड़ी। हालांकि संभाजी महाराज की शूरवीरता की वजह से उसके लिए मुश्किल बनी रही। 1689 की शुरुआत में छत्रपति संभाजी राजे के बहनोई गानोजी शिर्के और औरंगजेब के सरदार मुकर्रबखान ने संगमेश्वर पर हमला किया। मराठों और मुगल सेना के बीच संघर्ष हुआ। मराठों की शक्ति कम हो गई। मराठा योद्धा अचानक हुए दुश्मन के हमले का प्रतिकार नहीं कर सके। मुगल सेना संभाजी महाराज को जीवित पकड़ने में कामयाब रही। संभाजी राजे और कवि कलश को औरंगजेब के पास पेश करने से पहले बहादुरगढ़ ले जाया गया था। औरंगजेब ने शर्त रखी थी कि संभाजी राजे धर्म परिवर्तन कर लें तो उनकी जान बख्श दी जाएगी। हालांकि संभाजी राजे ने ये शर्त मानने से साफ इनकार कर दिया। 40 दिन तक औरंगजेब के अंतहीन अत्याचारों के बाद 11 मार्च 1689 को फाल्गुन अमावस्या के दिन संभाजी महाराज की मृत्यु हो गई। असहनीय यातना सहते हुए भी संभाजी राजे ने स्वराज और धर्म के प्रति अपनी निष्ठा नहीं छोड़ी। इसलिए अखंड भारतवर्ष ने उन्हें धर्मवीर की उपाधि से विभूषित किया।

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औरंगजेब ने मौत से पहले भीषण यातनाएं दिलवाईं
संभाजी महाराज को मौत से पहले भीषण शारीरिक यातनाएं दी गई थीं। महीने भर तक उनको तड़पाया गया। बताया जाता है कि सबसे पहले उनके हाथों को झुनझुने से बांधकर ऊंटों में बांधा गया। तुलापुर में संभाजी महाराज और कवि कलश का जुलूस निकलवाया गया। हर यातना के साथ उन्हें इस्लाम कबूल करने के लिए कहा जाता था। औरंगजेब के कहने पर उनकी आंखों में गरम लोहे की छड़ें डाल दी गई थीं। दोनों हाथ काट दिए गए और यहां तक कि चमड़ी भी उधेड़ दी गई। हाथ काटने के दो हफ्तों बाद उनका सर कलम कर दिया गया लेकिन संभाजी झुके नहीं। 11 मार्च 1689 को हिंदू धर्म और स्वाभिमान की रक्षा के लिए उन्होंने प्राणों की आहुति दे दी।

प्रकांड विद्वान भी थे संभाजी महाराज
छत्रपति संभाजी महाराज को संस्कृत भाषा की भी अच्छी जानकारी थी। संभाजी राजे ने चौदह साल की उम्र में बुद्धभूषण लिखा था। बुद्धभूषण में तीन भागों में काव्यलंकार, शास्त्र, संगीत, पुराण और धनुर्विद्या के अध्ययन का जिक्र है। यह राजा और उसके गुणों, राजा के सहायकों, राजा के सलाहकारों, उनके कर्तव्यों, राजकोष, किले, सेना, जासूसों, नौकरों के बारे में भी जानकारी देता है। इसके अलावा संभाजी ने गागभट्ट से नैतिक ग्रंथ ‘समयायण’ की रचना की। धर्मशास्त्र पर एक ग्रंथ ‘धर्म कल्पलता’ केशव पंडित द्वारा संभाजी राजे के लिए लिखा गया था। एक विदेशी लेखक अब्बे कारे ने युद्ध कला में संभाजी महाराज की कुशलता की प्रशंसा की है। इससे संभाजी महाराज की विशाल बुद्धि, ज्ञान, अनेक भाषाओं में निपुणता और धार्मिक भक्ति का अनुमान लगाया जा सकता है।

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महान योद्धा और रणनीति कौशल में सानी नहीं
केशवभट और उमाजी पंडित ने संभाजी राज को अच्छी शिक्षा दी। कई ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार संभाजी अत्यंत रूपवान और वीर थे। संभाजी महाराज ने बचपन से ही राजनीतिक रणनीति और छापामार शैली सीख ली थी। छत्रपति शिवाजी महाराज के बाद संभाजी महाराज ने कई अभियान सफलतापूर्वक चलाए गए। वह कभी किसी अभियान में असफल नहीं हुए। छत्रपति संभाजी महाराज जैसा योद्धा उस समय भारत में कोई नहीं था। छत्रपति संभाजी महाराज शासन चलाने में भी बहुत कुशल थे। वे एक कुशल संगठनकर्ता थे। छत्रपति शिवाजी महाराज की तरह छत्रपति बनने के बाद संभाजी महाराज ने भी अष्टप्रधान मंडल की नियुक्ति की। प्रधान मंत्री के रूप में निलोपंत पिंगले, चिटनिस के रूप में बालाजी अवाजी, जनरल के रूप में हंबीरराव मोहिते और न्यायाधीश के रूप में प्रहलाद नीराजी को और पंत सुमंत के रूप में जनार्दन पंत, पंडितराव चैरिटी अध्यक्ष के रूप में मोरेश्वर पंडितारो को नियुक्त किया था।

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120 युद्ध लड़े किसी में असफल नहीं हुए
छत्रपति संभाजी महाराज ने अपने पराक्रम के बल पर बहुत कम समय में मराठा साम्राज्य का विस्तार और बचाव किया। संभाजी महाराज ने अकेले ही मुगल साम्राज्य का मुकाबला किया, जो मराठा साम्राज्य के आकार का 15 गुना था। संभाजी ने अपने कार्यकाल में कुल 120 युद्ध लड़े। इन 120 लड़ाइयों में से किसी में भी वह असफल नहीं हुए। छत्रपति संभाजी महाराज ऐसी उपलब्धि हासिल करने वाले एकमात्र योद्धा थे। कहा जाता है कि उस वक्त संभाजी का मुकाबला करने वाला कोई योद्धा नहीं था। छत्रपति शिवाजी के बाद संभाजी महाराज ने हंबीर राव मोहिते को कमांडर-इन-चीफ (सेनापति) नियुक्त किया।

उदार धार्मिक नीति
छत्रपति शिवाजी महाराज की धार्मिक नीति संभाजी महाराज ने जारी रखी। कई मंदिरों, मठों में सालाना नियुक्तियां बहाल की गईं। संत तुकाराम के पुत्र महादोबा को संभाजी महाराज ने वर्षासन दिया। उनकी व्यवस्था की। संभाजी ने चिंचवाड़, मोरगांव, सज्जनगढ़, चपल, शिंगानवाड़ी, महाबलेश्वर आदि पर शासन किया। धर्मस्थलों के उचित प्रबंधन पर उनका खास जोर था। उस समय के पत्राचारों से संभाजी की उदार धार्मिक नीति का पता चलता है।

(महाराष्ट्र टाइम्स से मिले इनपुट के साथ)

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