Brahmastra Movie Review: ‘ब्रह्मास्त्र’ भी चूक गया ‘लक्ष्य’

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‘ब्रह्मास्त्र’ भी चूक गया ‘लक्ष्य’ | Movie Review Brahmastra Part One Shiva | Patrika News

‘ब्रह्मास्त्र’ भी चूक गया ‘लक्ष्य’ | Movie Review Brahmastra Part One Shiva | Patrika News


आर्यन शर्मा @ जयपुर. निर्देशक अयान मुखर्जी की ‘अस्त्रवर्स’ फिल्म ‘ब्रह्मास्त्र- पार्ट वन: शिवा’ मनोरंजन के लिहाज से गेमचेंजर हो सकती थी, लेकिन अफसोस, यह मौका चूक गई। फिल्म का स्केल बड़ा है। नॉन-स्टॉप वीएफएक्स की ‘चकाचौंध’ भी खूब है, लेकिन लेखन के कई सिरे ढीले हैं। एक निश्चित मात्रा में भावनात्मक गहराई का अभाव है, जिससे फिल्म की ‘आत्मा’ कहीं गुम-सी गई है। फिल्म का कुछ हिस्सा लीड जोड़ी की ढीली प्रेम कहानी की आग से ‘भस्म’ हो गया है। इनके रोमांटिक सीन बोरिंग लम्हे जैसा एहसास देते हैं। संवाद बचकाने और पकाऊ हैं। खराब लेखन के कारण फिल्म बोझिल और थोड़ी खिंची हुई लगती है। जब भी वीएफएक्स आते हैं तो यह सरपट दौड़ने लगती है जबकि अन्य दृश्यों में रेंग-रेंग कर आगे बढ़ती है। फिल्म में एंटरटेनिंग सीन का अभाव है। संपादन कमजोर कड़ी है।

कहानी की बात करें तो शिवा (रणबीर कपूर) मुंबई में डीजे है। दशहरा उत्सव के दौरान ईशा (आलिया भट्ट) से उसे पहली नजर का प्यार हो जाता है। शिवा के साथ कुछ अजीब घटनाएं होती हैं। उसे लगता है कि आग से उसका कुछ रिश्ता है, क्योंकि वह आग से नहीं जलता। ‘सपने’ में वह देखता है कि ब्रह्मास्त्र के तीन टुकड़े हासिल करने के लिए ‘अंधेरे’ की ताकतें लगी हुई हैं। इन बुरी ताकतों ने ब्रह्मास्त्र का एक टुकड़ा पाने के लिए साइंटिस्ट मोहन भार्गव की हत्या कर दी है। उनका अगला टारगेट आर्टिस्ट अनीश है। इसके अलावा भी उनके और भी खतरनाक इरादे हैं। शिवा और ईशा इन ताकतों को रोकने के लिए कदम बढ़ाते हैं…।
पटकथा में खोट है, जिससे रोमांच में खलल पड़ती है। निर्देशक अयान मुखर्जी ने पौराणिक आधार पर काल्पनिक कहानी पेश करने की कोशिश की है। इसके लिए उन्होंने विजुअल ट्रीटमेंट पर खास फोकस किया है। इस चक्कर में वह राइटिंग और अन्य दूसरे पहलुओं को नजरअंदाज कर गए। साफ नजर आता है कि उन्होंने मार्वल सिनेमैटिक यूनिवर्स की फिल्मों से प्रेरणा ली है, हालांकि उस तरह का मैजिक क्रिएट नहीं कर पाए। फिल्म में गाने स्पीड ब्रेकर की तरह हैं। इनसे बार-बार कहानी का पेस स्लो पड़ जाता है। बैकग्राउंड स्कोर अच्छा है। सिनेमैटोग्राफी लुभावनी है।
रणबीर कपूर की परफॉर्मेंस ठीक है। आलिया भट्ट अपने टैलेंट से पूरी तरह न्याय नहीं कर पाईं। उनसे बेहतर की उम्मीद थी। दोनों की ऑनस्क्रीन केमिस्ट्री में स्पार्क नहीं है। अमिताभ बच्चन की मौजूदगी प्रभावी है। हालांकि उनके कद जैसा काम नहीं है। नेगेटिव रोल में मौनी रॉय बढि़या हैं। नागार्जुन का काम ठीक-ठाक है, पर उनका इस्तेमाल सही नहीं हुआ। शाहरुख खान का कैमियो हाइलाइट है। डिम्पल कपाडि़या के पास करने को कुछ खास नहीं है। चूंकि यह फिल्म तीन भागों में है, इसलिए दूसरी किस्त ‘ब्रह्मास्त्र- पार्ट टू: देव’ शीर्षक से होगी, जिसका संकेत फिल्म के अंत में दिया गया है। पहला भाग तो उम्मीदों पर खरा नहीं उतरता, ऐसे में यही उम्मीद कर सकते हैं कि दूसरे पार्ट में पहले भाग में जो कमियां रह गई हैं, उसे दूर किया जाएगा।

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