देश में कई दिनों से बड़े स्तर पर किसान आंदोलन चल रहा है. जिसमें किसानों का आरोप है कि केंद्र सरकार द्वारा कृषि से संबंधित जो तीन कानून बनाए हैं वो पहले से ही बुरे हालातों में जी रहे किसानों को पूरी तरह बर्बाद कर देंगें. जिसके विरोध में कई किसान संगठन इन कानूनों को वापस लेने के लिए दबाव बनाने के लिए आंदोलन कर रहे हैं.
सरकार और किसान संगठनों में इस समस्या के समाधान के लिए कई स्तर पर बातचीत हो चुकी है. जिसमें कोई समाधान ना मिलने के बाद किसानों की तरफ से 8 दिसंबर, 2020 को भारत बंद का ऐलान किया था. इसके बाद सरकार की तरफ से बीच का रस्ता निकालने के लिए किसान संगठनों के पास प्रस्ताव भेजा गया. जिसमें किसानों द्वारा आरोप लगाया गया कि यह प्रस्ताव सिर्फ आंदोलन को स्थगित कराने का पैंतरा है. इसमें कोई ठोस बदलाव नहीं किया गया. किसान संगठनों की तरफ से साफ कर दिया गया है कि तीनों कानूनों का रद्द किया जाना चाहिएं. विपक्ष भी इस आंदोलन के समर्थन में इक्कठा होता जा रहा है. सरकार की तरफ से आरोप लगाए जा रहे हैं कि यह आंदोलन किसान के आंदोलन की जगह राजनीतिक हो गया है.
किसानों के हक की आवाज उठाने के लिए बने बीजेपी के किसान मोर्चा संगठन के इस किसान आंदोलन पर रूख की बात की जाए तो उनका मानना है कि इन कृषि सुधार कानूनों की जरूरत काफी समय से थी. ये कानून किसानों की हालात सुधारने में बहुत महत्तवपूर्ण भूमिका निभाएंगें. जिनसे किसानों को आजादी मिलेगी. इसके साथ ही बीजेपी के किसान संगठन का मानना है कि किसानों की बात भी सुनी जाएं तथा उनके द्वारा जो मुद्दे या भय प्रकट किया जा रहा है. उन बिंदुओं पर सरकार को ध्यान देना चाहिए तथा इन कानूनों में बदलाव किया जाना चाहिए लेकिन ये कानून खत्म नहीं किए जाने चाहिएं.
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बीजेपी के किसान मोर्चा संगठन की तरफ से इन कानूनों को जरूरी बताया जा रहा है. लेकिन साथ ही यह भी मानना है कि जिन बिंदुओं पर किसानों को आपत्ति है, उन पर सरकार को विचार करना चाहिए तथा उनमें बदलाव करना चाहिएं.