BJP के ‘मिशन पसमांदा’ के बीच भागवत के बयान का क्या है मतलब? मायावती क्यों हैं इससे परेशान

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BJP के ‘मिशन पसमांदा’ के बीच भागवत के बयान का क्या है मतलब? मायावती क्यों हैं इससे परेशान

BJP के ‘मिशन पसमांदा’ के बीच भागवत के बयान का क्या है मतलब? मायावती क्यों हैं इससे परेशान

लखनऊः उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोटों के लिए जमकर मारामरी मची है। कांग्रेस, सपा और बीएसपी का तो मुस्लिम समाज वोट बैंक भी है लेकिन अब भारतीय जनता पार्टी भी इस अल्पसंख्यक समुदाय को लुभाने में जुट गई है। यूपी में पार्टी बाकायदा मिशन पसमांदा चला रही है और जिन इलाकों में पार्टी का जनाधार कमजोर है, वहां पर सभाएं कर मुस्लिम समाज के इस बड़े हिस्से को अपने पाले में करने की कोशिश कर रही है। आरएसएस चीफ मोहन भागवत का मुस्लिमों को लेकर दिया गया हालिया बयान इसी मिशन का हिस्सा लगता है। हालांकि, बीजेपी और आरएसएस की इन कोशिशों से सबसे ज्यादा परेशानी मायावती को हो रही है, जो दलित और मुस्लिम खासतौर पर पसमांदा के गठजोड़ से फिर से यूपी की सत्ता में आने की कोशिश में लगी हैं।

भागवत ने क्या कहा
आरएसएस चीफ मोहन भागवत ने मंगलवार को कहा कि भारत में रहने वाले सभी लोगों के पूर्वज 40 हजार साल से एक हैं। सबका डीएनए एक है। उन्होंने कहा कि हमारे पूर्वजों ने हमें सिखाया है कि अपनी पूजा-पद्धति पर पक्के रहना, खान-पान और भाषा पर पक्के रहना चाहिए। इससे पहले भी मुस्लिमों को लेकर भागवत के बयान लोगों को चौंका चुके हैं। दरअसल, आरएसएस को एक मुस्लिम विरोधी संगठन माना जाता है और उसके हिंदुत्ववादी विचारधारा को लेकर उस पर लगातार निशाना बनाया जाता रहा है। ऐसे में उनके इस तरह के बयान जब सामने आते हैं तो लोग इसके मायने ढूंढने लग जाते हैं।

भागवत के बयान के क्या हैं मायने
भागवत का ये बयान ऐसे समय में आया है, जब यूपी में बीजेपी पसमांदा मुसलमानों को लुभाने में लगी है। दरअसल, देश के सर्वाधिक मुसलमान उत्तर प्रदेश में रहते हैं। मुसलमानों में सबसे ज्यादा संख्या पसमांदा समाज की है। यह समाज आर्थिक रूप से बेहद पिछड़ा माना जाता है। बीते कई चुनाव से बीजेपी सपा और बसपा के वोटबैंक में सेंधमारी करने की जी-तोड़ कोशिश कर रही है। विधानसभा चुनाव में उसने काफी हद तक सपा के गैर-यादव ओबीसी वोटबैंक और बीएसपी के गैर-जाटव दलितों को अपने पाले में कर लिया था। अब उसकी नजर पसमांदा यानी कि पिछड़े मुसलमानों पर है, जिसके दम पर विपक्ष सत्ता में आने का ख्वाब देखता है।

राजनैतिक एक्सपर्ट मानते हैं कि आर्थिक रूप से बेहद पिछड़े पसमांदा मुसलमानों को लुभावनकारी योजनाओं और जरा सी सहानुभूति से अपने पाले में किया जा सकता है। सबका साथ-सबका विकास के अपने स्लोगन के तले बीजेपी इस कोशिश में भी लगी है। इसके जरिए वह जरूर अपनी मुस्लिम विरोधी छवि को तोड़ना चाहती है और सही मायने में सर्वसमाज की पार्टी बनने की कोशिश करना चाहती है। इसके साथ ही मुस्लिमों के एक बड़े हिस्से को लुभाने में अगर वह सफल रहती है तो यह उसके विपक्षियों के लिए भी बड़ा झटका साबित होगा क्योंकि बीजेपी के खिलाफ लामबंदी करने वाले ज्यादातर राजनैतिक दल बीजेपी की मुस्लिम विरोधी छवि को आगे करके ही अपने लिए वोट मांगते हैं।

बीजेपी का मिशन पसमांदा
अपनी इस कोशिश में बीजेपी ने हाल ही में यूपी में पसमांदा बुद्धिजीवी सम्मेलन आयोजित किए जिसमें योगी सरकार के डेप्युटी सीएम ब्रजेश पाठक ने भी हिस्सा लिया। पार्टी के एकमात्र मुस्लिम मंत्री दानिश अंसारी भी उसमें शामिल रहे। इसके अलावा बीजेपी ने प्रदेश में मदरसों का सर्वे कराया और यह दावा किया कि वह मान्यता प्राप्त मदरसों को चिह्नित कर उन्हें मदद देगी। मदरसों के सिलेबस इस तरह से तैयार किए जाएंगे, जिससे मुस्लिम समाज के बच्चे विज्ञान और तकनीकी की पढ़ाई करने में सक्षम हो सकें।

मोहन भागवत बीजेपी के इसी मिशन के अनुकूल बयान देने लगे हैं। हाल ही में उन्होंने इमाम संगठन के एक बड़े नेता से मुलाकात की और यह संदेश देने की कोशिश की कि संघ को मुसलमानों से घृणा नहीं है। इसके अलावा छत्तीसगढ़ चुनाव से भी इसका कनेक्शन जुड़ता है। अगले साल वहां चुनाव होने वाले हैं और भागवत चार दिन के दौरे पर छत्तीसगढ़ भी जाएंगे। छत्तीसगढ़ में बड़े पैमाने पर गरीब आदिवासियों के धर्मांतरण के आरोप लगते हैं। ऐसे में भागवत के ‘अपने-अपने धर्म पर पक्के रहना’ का संदेश छत्तीसगढ़ चुनाव अभियान की पूर्वपीठिका भी हो सकती है।

भागवत के बयान पर भड़कीं मायावती
हालांकि, भागवत का यह बयान सामने आने के बाद बीएसपी चीफ मायावती ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई है। उन्होंने कहा कि केवल अपने संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थ के लिए पसमान्दा मुस्लिम समाज का राग भाजपा और आरएसएस छेड़ रहे हैं। मुस्लिम समाज पहले मुसलमान हैं और उनके प्रति बीजेपी-आरएसएस की सोच, नीयत, नीति और उनका ट्रैक रिकार्ड क्या और कैसा है यह किसी से भी छिपा नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि भाजपा की मुस्लिम समाज के प्रति निगेटिव सोच का परिणाम है कि इनकी सरकार में भी वे लगभग उतने ही गरीब, पिछड़े, त्रस्त एवं जान-माल-मजहब के मामलों में असुरक्षित हैं जितने वे कांग्रेसी राज में थे। मुस्लिम समाज का, दलितों की तरह पसमान्दा और उपेक्षित बने रहना अति-दुःखद है।

मायावती को क्या है परेशानी
दरअसल, बीते कुछ चुनावों में मायावती की बीएसपी के सामने अपने अस्तित्व को बचाने की समस्या खड़ी हो गई है। 2007 के चुनाव में पूर्ण बहुमत हासिल करने वाली बहुजन समाज पार्टी ने 2022 के विधानसभा चुनाव में सिर्फ एक सीट पर जीत हासिल की। इस हार के बाद से बीएसपी अपने पुराने मुस्लिम-दलित समीकरण पर काम करने लगी है। इसका पहला प्रयोग मायावती ने आजमगढ़ के लोकसभा उपचुनाव में किया, जहां गुड्डू जमाली को प्रत्याशी बनाने के बाद पार्टी को थोड़ा फायदा मिला।

मायावती मुस्लिम समाज को लुभाने में लगी हैं लेकिन उन पर बीजेपी की बी-टीम होने के आरोप लगते हैं। माना जाता है कि बीजेपी को जिताने के लिए आजमगढ़ उपचुनाव में उन्होंने अपने उम्मीदवार खड़ा किया। इसके अलावा बीते विधानसभा उपचुनाव में भी वह उस तरह से ऐक्टिव नहीं रहीं, जैसा उन्हें होना चाहिए। इस पर भी यह कहा गया कि ऐसा करके वह बीजेपी की मदद कर रही हैं। यह आरोप उनके गले की फांस बना हुआ है, जिसकी वजह से मुसलमान उन पर भरोसा करने से कतरा रहे हैं।

पसमांदा पर माया का कितना दावा
यूपी के पसमांदा मुसलमानों में ज्यादातर दलित हैं। पसमांदा का मतलब ही ‘पीछे छूटे हुए लोग’ होता है लेकिन इसमें भी दो कैटिगरी है। एक वर्ग में पिछड़े मुसलमान आते हैं और दूसरे में दलित और आदिवासी मुस्लिम। बीएसपी दलितों की पार्टी होने का दावा करती है। ऐसे में वह दलित और पसमांदा मुसलमानों के गठजोड़ से ऐसा समीकरण तैयार करना चाहती थीं, जिससे न सिर्फ वह बीजेपी को टक्कर दे पाएं बल्कि मुस्लिमों के तुष्टीकरण को लेकर बदनाम समाजवादी पार्टी की ताकत को भी कमजोर कर सकें।

यही कारण है कि बीजेपी की पिछड़े और अति पिछड़े मुसलमानों को लुभाने की किसी भी कोशिश पर मायावती परेशान हो जाती हैं और उस पर तुरंत प्रतिक्रिया देती हैं। मदरसों के सर्वे को लेकर भी उन्होंने बीजेपी का विरोध किया और भागवत के बयान पर पलटवार किया है। वह किसी भी तरह से मुस्लिमों का विश्वास फिर से हासिल करना चाहती हैं। इसके लिए ही उन्होंने सहारनपुर के प्रभावी मुस्लिम नेता इमरान मसूद को न सिर्फ पार्टी में शामिल किया बल्कि तत्काल उन्हें पार्टी में एक अहम देकर बड़ी जिम्मेदारी दे दी।

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