Birju Maharaj News : थम गई घुंघरुओं की खनक… दिल्ली में बिरजू महाराज का वो घर, जहां बसती थी उनकी आत्मा

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Birju Maharaj News : थम गई घुंघरुओं की खनक… दिल्ली में बिरजू महाराज का वो घर, जहां बसती थी उनकी आत्मा

हाइलाइट्स

  • बिरजू महाराज का जन्म लखनऊ के मशहूर कथक घराने में हुआ था
  • दिल्ली में वह पांच दशकों से रह रहे थे, सरकारी आवास मिला था
  • कई फिल्मों में डांस की कोरियोग्राफी की, घर पर लोगों का तांता लगा रहता

नई दिल्ली
भारतीय शास्त्रीय नृत्य कथक के शिखर पुरुष बिरजू महाराज नहीं रहे। वह 83 साल के थे। कला के क्षेत्र में उनका अमूल्य योगदान ही है कि आज देशभर के कलाकार नम आंखों से लिख रहे हैं कि भारतीय संगीत की लय थम गई, सुर मौन हो गए और भाव शून्य हो गए। नर्तक और शास्त्रीय गायक बिरजू महाराज ने कई फिल्मों में भी डांस की कोरियोग्राफी की थी। कला के क्षेत्र में उन्होंने जिस ऊंचाई को छुआ, उनसे सीखने-समझने, मार्गदर्शन लेने वालों का उनके घर तांता लगा रहता था।

दिल्ली वाला घर
डी-II/33, शाहजहां रोड, नई दिल्ली। कई दशकों से बिरजू महाराज का यही पता था। शाहजहां रोड पर आमतौर पर भारत सरकार के बड़े बाबू रहते आए हैं। यहीं कथक सम्राट पंडित बिरजू महाराज भी रहते थे। यहां उन्हें सरकार ने फ्लैट आवंटित किया था। इस फ्लैट में तीन ड्रॉइंग-डायनिंग रूम के साथ तीन बेड रूम हैं। ग्राउंड फ्लोर के फ्लैट के आगे एक छोटा सा बगीचा है। बिरजू महाराज बताते कि सरकार ने यह घर उन्हें कला की दुनिया में उत्कृष्ट योगदान के चलते आवंटित किया था। साल दर साल और दशक बीतते गए। उन्हें इस घर से लखनऊ वाले घर की तरह ही प्यार था। वह कहते, दिल्ली गजब का शहर है…अब यहां से वापस जाने का मन नहीं करता।

दीवार पर मां का चित्र
यहां सत्यजीत रे, पंडित रवि शंकर, संजय लीला भंसाली, कमल हासन, माधुरी दीक्षित जैसी शख्सियतों का आना-जाना लगा रहता। अक्सर घर के ड्रॉइंग रूम में दाखिल होने पर पंडित जी कुछ शिष्यों के साथ बैठे दिखते, नृत्य की बारीकियों पर चर्चा चल रही होती। कमरे की दीवारों पर देवी-देवताओं के चित्र टंगे दिखते। वहीं उनकी मां का भी चित्र दिखाई देता। पंडित जी बताते कि उनके पिता का निधन बहुत छोटी उम्र में हो गया था। उसके बाद मां ने ही सब कुछ किया, इसलिए उन्हें वह ईश्वर मानते थे। वह कहते कि यह घर उनके लिए बड़ा ही शुभ है।

सरकारी नोटिस पर हो गए थे परेशान
हालांकि 2020 के आखिर में वह काफी परेशान थे। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वह 31 दिसंबर के बाद कहां रहेंगे। राजधानी दिल्ली के जिस सरकारी फ्लैट में गुजरे 50 वर्षों से रह रहे थे, उसे सरकार ने खाली करने के निर्देश दे दिए थे। हालांकि बाद में सरकारी आवास खाली करने के नोटिस पर दिल्ली हाई कोर्ट ने रोक लगा दी थी।

उनका आशियाना धीरे-धीरे कला का मंदिर बन चुका था। करीब पहुंचते ही घुंघुरूओं की खनक सुनाई देने लगती। एक ऊर्जा महसूस होती। माहौल में मिठास और आनंद को महसूस किया जा सकता था। यहां बिरजू महाराज के शिष्यों और प्रशंसकों का आना-जाना लगा रहता था।

अगर कोई पंडित जी के घर के ड्राइंग रूप में पहुंचता था। वह गर्मजोशी से स्वागत करते। पूछते, ‘पहले बताओ क्या नाश्ता करोगे? इससे पहले आप कुछ कहें, वह आवाज दे देते, ‘अरे, मिठाई भिजवाओ। पहले मिठाई खाएंगे, उसके बाद करेंगे बात।’

बिरजू महाराज का दिल्ली से नाता
महाराज को दिल्ली की सर्दी और बारिश का मौसम बड़ा दिलकश लगता था। बारिश में पहले तो वह नहाते भी थे। छप-छप पानी के बीच चलने के सुख को वह याद करते। वह कहते, ‘दिल्ली की हरियाली में बारिश का आनंद दोगुना बढ़ जाता है। एक दौर में वह मूसलाधार बारिश में लोधी रोड और इंडिया गेट घूमने निकल जाते थे।’ ये दोनों स्थान उनके के घर से पास ही हैं। यूं तो वह लखनऊ में पैदा हुए और बात-बात में लखनऊ को ले आते थे, पर दिल्ली को भी खूब चाहते। इस शहर ने उन्हें शिखर पर पहुंचाया।

कथक से कैसे रिश्ता बना?
बिरजू महाराज बताते थे, ‘मेरा जन्म लखनऊ के एक बड़े कथक घराने में हुआ। पिता अच्छन महाराज, चाचा शंभू महाराज का ख़ासा नाम था। मैं केवल नौ वर्ष का था, पिता जी गुज़र गए। एक वक़्त घर में नौकर थे, पर पिताजी के देहांत के बाद कर्ज़ और ग़रीबी का दौर झेला। उन दिनों हमारी गुरू बहन कपिला वात्स्यायन लखनऊ आईं और वह मुझे अपने साथ दिल्ली ले आईं। इसी तरह मेरी कथक यात्रा शुरू हुई।’

कथक गुरु से मिलने आते सत्यजीत, बिस्मिल्लाह
बिरजू महाराज के इसी घर में सत्यजीत राय, पंडित रवि शंकर, यश चोपड़ा, संजय लीला भंसाली, कमल हासन, माधुरी दीक्षित, उस्ताद बिस्मिल्लाह खान और दूसरी तमाम कला की दुनिया की शख्सियतें आती रहतीं। बिरजू महाराज की फ़िल्मकार सत्यजीत राय से मित्रता ‘शतरंज के खिलाड़ी’ के दौरान हुई थी। इसमें उन्होंने दो शास्त्रीय नृत्य दृश्यों के लिए संगीत रचा और गायन भी किया।

बिरजू महाराज ने ‘डेढ़ इश्किया’ फिल्म में माधुरी दीक्षित के नृत्य का निर्देशन किया था। तब माधुरी इधर कई बार आई थीं। बिरजू महाराज बताते कि माधुरी में सीखने की गजब की ललक है। उन्होंने माधुरी को `देवदास` और `दिल तो पागल है` में भी ट्रेनिंग दी थी। लखनऊ का जिक्र आते ही बिरजू महाराज की आंखों में यादों का सागर लहराने लगता। उन्हें अमीनाबाद का मेहरोत्रा पान वाला याद आता। वहां की रबड़ी मलाई भी खूब याद आती।

हालांकि बिरजू महाराज को दिल्ली भी खूब भाया। कहते थे, ‘बेजोड़ शहर है ये। अब यहां से बाहर जाने का सवाल ही नहीं होता। दिल्ली जैसा कोई शहर हो नहीं सकता।’ वह केवल नृत्य के क्षेत्र में सिद्धहस्त ही नहीं थे, बल्कि ‘भारतीय शास्त्रीय संगीत’ पर उनकी पकड़ थी। ठुमरी, दादरा, भजन और गजल गायकी में उनका कोई सानी नहीं था। वह कई वाद्य यंत्र भी बखूबी बजाते। तबले पर उनकी बहुत अच्छी पकड़ थी। इसके अलावा वह सितार, सरोद और सारंगी भी अच्छी तरह से बजा सकते थे। आश्चर्य की बात यह थी कि उन्होंने इन वाद्य यंत्रों को बजाने की विधिवत शिक्षा नहीं ली थी।

वह मेहमानों के लिए गुलाब जामुन, बर्फी, नमकीन, चाय पेश करते। जो भी उनसे मिलने आता, उसे मिठाई का भोग तो लगाना ही होता। इससे बचा नहीं जा सकता था। पंडित जी गुलाब जामुन लेने के लिए कहते… आप गुलाब जामुन के साथ इंसाफ करते हैं।
(विवेक शुक्ल के लेख से इनपुट के साथ)



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