Bihar Politics: बिहार में आरजेडी और जेडीयू से अलग अपनी आइडेंटिटी बना रही है कांग्रेस, कन्हैया को बना सकती है चेहरा

8
Bihar Politics: बिहार में आरजेडी और जेडीयू से अलग अपनी आइडेंटिटी बना रही है कांग्रेस, कन्हैया को बना सकती है चेहरा

Bihar Politics: बिहार में आरजेडी और जेडीयू से अलग अपनी आइडेंटिटी बना रही है कांग्रेस, कन्हैया को बना सकती है चेहरा

Kanhaiya Kumar V/S Tejashwi Yadav: कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार के साथ आरजेडी नेता और बिहार के डेप्युटी सीएम तेजस्वी यादव का मंच साझा न करना बिहार में इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है। कांग्रेस अपनी आइडेंटिटी अब बदल रही है। कन्हैया कुमार को पार्टी बिहार में अपना मजबूत स्तंभ बनाना चाहती है।

 

हाइलाइट्स

  • कन्हैया कुमार से तेजस्वी की अनबन का मिला संकेत
  • कन्हैया के कारण कार्यक्रम में नहीं आए तेजस्वी यादव
पटना: सीपीआई से निकल कर कांग्रेस को सियासी ठिकाना बनाने वाले कन्हैया कुमार एक कार्यक्रम में शामिल होने बुधवार को पटना आए थे। कार्यक्रम में आयोजकों ने आरजेडी के नेता और बिहार के डेप्युटी सीएम तेजस्वी यादव को भी आमंत्रित किया था। कार्यक्रम शुरू करने के लिए तेजस्वी का इंतजार होता रहा। आरजेडी दफ्तर से लेकर तेजस्वी के करीबियों तक को आयोजकों ने फोन किया कि कार्यक्रम के शुरू करने के लिए उनका इंतजार हो रहा है। कहीं से भी कोई पाजीटिव रेस्पांस आयोजकों को नहीं मिला। आखिरकार मुख्य अतिथि की अनुपस्थिति में जेडीयू नेता और बिहार सरकार में मंत्री अशोक चौधरी और मोहम्मद इस्राइल मंसूरी ने कन्हैया कुमार के साथ कार्यक्रम की शुरुआत की। सूत्र बताते हैं कि तेजस्वी यादव को जब सूचना मिली कि कन्हैया कुमार कार्यक्रम में शामिल होने पहुंच गए हैं तो उन्होंने चुप्पी साध ली। राजनीतिक मामलों के जानकार कहते हैं कि तेजस्वी यादव को कन्हैया कुमार से चिढ़ है। पहले भी वे कन्हैया के साथ मंच साझा करने से कतराते रहे हैं।


कन्हैया से तेजस्वी की अदावत 2019 में शुरू हुई थी

कन्हैया कुमार से तेजस्वी यादव की नाराजगी के कई कारण हैं, लेकिन सबसे बड़ा और पुराना कारण 2019 का लोकसभा चुनाव है। बेगूसराय से कन्हैया कुमार सीपीआई के उम्मीदवार थे। सीपीआई पहले से ही महागठबंधन का हिस्सा थी। कन्हैया कुमार को उम्मीद थी कि महागठबंधन का हिस्सा होने के नाते बेगूसराय में आरजेडी उनकी मदद करेगी। कन्हैया की लोकप्रियता तब काफी थी। ओजस्वी वक्ता के रूप में उनकी पहचान बन गई थी। बहरहाल, आरजेडी ने अपना उम्मीदवार भी बेगूसराय में दे दिया। नतीजा यह हुआ कि गैर भाजपा वोट दो हिस्सों में बंट गए और बीजेपी के टिकट पर गिरिराज सिंह जीत गए। बताते हैं कि कन्हैया की बढ़ती लोकप्रियता से तेजस्वी खतरा महसूस करने लगे थे। उनका यह भय अब भी बना हुआ है। इसी वजह से कुम्हार जाति के संगठन के कार्यक्रम में कह कर भी वे नहीं आए।

कन्हैया से क्यों चिढ़ते हैं आरजेडी नेता तेजस्वी यादव

अब सवाल उठता है कि कन्हैया कुमार से तेजस्वी यादव को इतनी चिढ़ क्यों हैं। अव्वल तो दोनों युवा हैं। तेजस्वी यादव के मुकाबले कन्हैया कुमार अधिक शिक्षित हैं। बल्कि यह कहना ज्यादा उचित होगा कि दोनों में शिक्षा के मामले में कोई तुलना ही नहीं। दोनों प्रखर वक्ता हैं और श्रोताओं पर अपनी छाप छोड़ने के दोनों में गुण हैं। कन्हैया के बिहार में सक्रिय रहने पर तेजस्वी को अपना प्रभाव घटने का खतरा महसूस होता है।

कांग्रेस तेजस्वी के कन्हैया से भय को भुनाना चाहती है

कांग्रेस ने जिस तरह की कवायद शुरू की है, उसमें कन्हैया कुमार के उभरने के चांस ज्यादा हैं। कांग्रेस ने हाल ही में जिला कमेटियों का गठन किया है। उनमें सवर्णों को जिस तरह तरजीह दी गई है, उससे साफ है कि आने वाले समय में कन्हैया को बिहार की जिम्मेवारी कांग्रेस सौंप सकती है। अभी कन्हैया को दिल्ली प्रदेश का अध्यक्ष बनाने की चर्चा चल रही है। उसके बाद पार्टी उन्हें राज्यसभा भी भेज सकती है। कांग्रेस की यह योजना तभी सफल होगी, जब आरजेडी का साथ मिले। तेजस्वी यादव भी चाहेंगे कि कन्हैया की साया भी बिहार की राजनीति पर न पड़े। पर, हर पार्टी की अपनी रणनीति होती है। पार्टी बिहार में कन्हैया को ही अपना चेहरा बनाना चाहती है। ग्राउंड वर्क भी कांग्रेस ने शुरू कर दिया है।

कांग्रेस बिहार में बदल रही अपनी छवि, सवर्णों पर नजर

वर्षों बाद कांग्रेस बिहार में अपनी छवि बदल रही है। अब सवर्णों में अपना खोया जनाधार पाने की कोशिश कर रही है। सवर्ण कांग्रेस के पारंपरिक वोट बैंक माने जाते रहे हैं। 90 के दशक के पहले बिहार में कांग्रेस कोटे से सवर्ण ही सीएम बनते रहे। सवर्णों को साधने के लिए कांग्रेस ने अपने 28 जिलाध्यक्ष सवर्णों को बनाया है। इनमें अकेले भूमिहार जाति से 11 लोग हैं। कांग्रेस बिहार केसरी के नाम से विख्यात श्री कृष्ण सिंह और बिहार विभूति अनुग्रह नारायण सिन्हा के दौर में लौटना चाहती है। सवर्ण वोटर अभी बीजेपी में शिफ्ट हो गए हैं।

विपक्ष एक नहीं हुआ तो सभी सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवार

विपक्षी एकता की कोशिश नीतीश कुमार कर रहे हैं। लेकिन इसके विफल होने का भी भय है। यही वजह है कांग्रेस अभी से बिहार में भी अपनी तैयारी में जुटी है। भरोसेमंद सूत्र का कहना है कि विपक्षी एकता की जो बैठक 12 जून को पटना में होने वाली है, उसमें मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी की उपस्थिति अभी तक पक्की नहीं है। हालांकि नीतीश कुमार के न्यौते को कांग्रेस ने स्वीकार जरूर कर लिया है। इसकी पुष्टि कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने भी कर दी है। दरअसल बंगाल में टीएमसी और दिल्ली व पंजाब में आम आदमी पार्टी पर कांग्रेस को भरोसा नहीं हो रहा है। पल-पल दोनों दल- आप और टीएमसी के स्टैंड बदलते रहते हैं। कभी विपक्ष के साथ रहने की बात कहते हैं तो कभी अकेले रहने की घोषणा करते हैं।
रिपोर्ट- ओमप्रकाश अश्क

आसपास के शहरों की खबरें

Navbharat Times News App: देश-दुनिया की खबरें, आपके शहर का हाल, एजुकेशन और बिज़नेस अपडेट्स, फिल्म और खेल की दुनिया की हलचल, वायरल न्यूज़ और धर्म-कर्म… पाएँ हिंदी की ताज़ा खबरें डाउनलोड करें NBT ऐप

लेटेस्ट न्यूज़ से अपडेट रहने के लिए NBT फेसबुकपेज लाइक करें

पढ़ें लेटेस्ट बिहार की ताजा खबरें लोकप्रिय Patna News की हिंदी वेबसाइट नवभारत टाइम्स पर

बिहार की और खबर देखने के लिए यहाँ क्लिक करे – Delhi News