Bihar Politics : नीतीश करेंगे राज या भतीजे तेजस्वी जलाएंगे लालेटन, बीजेपी का क्या होगा? बिहार में का होई?

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Bihar Politics : नीतीश करेंगे राज या भतीजे तेजस्वी जलाएंगे लालेटन, बीजेपी का क्या होगा? बिहार में का होई?

Bihar Politics : नीतीश करेंगे राज या भतीजे तेजस्वी जलाएंगे लालेटन, बीजेपी का क्या होगा? बिहार में का होई?

पटना : बिहार को 2024 के लोकसभा चुनावों (Loksabha Election) के लिए दो साल से भी कम समय में साथ सत्ता परिवर्तन देखना पड़ा है। NDA ने 2020 में एक साथ विधानसभा चुनाव लड़ा। वादे और नतीजे के अनुसार सरकार बनाई। इस वक्‍त बिहार में तीन प्रमुख पार्टियां है। इनमें अगर दो पार्टियां साथ आ जाएं तो बिहार में सरकार बना सकती हैं। बीजेपी आरजेडी साथ आएगी नहीं क्‍योंंकि आरजेडी की पूरी राजनीति भाजपा के खिलाफ है। लेकिन जेडीयू बिहार (JDU) में ऐसी पार्टी है जो कभी भी कहीं भी आ और जा सकती है। समाजवाद के नाम पर आरजेडी के साथ भी हाथ मिलाना आसान और विकास की बात कर बीजेपी के साथ आने में भी उन्‍हें कोई परहेज नहीं। ऐसे में बिहार में नए राजनीतिक गठबंधन ने हर राजनीतिक दल को सत्‍ता के फलक पर आने का मौका दे दिया है। वहीं अब बिहार में तीनों पार्टियां ही तय करेंगी बिहार किस ओर जाएगा।

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आजेडी : तेजस्‍वी यादव उभरते हुए नेता
बिहार में राजद और उसके नेता तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) नए गठबंधन में विनर दिखाई दे रहे हैं। उनकी पार्टी, जेडीयू के साथ सत्ता में वापस की है। अब वो‍ बिहार के उपमुख्‍यमंत्री हैं। वैसे संख्या बल के हिसाब से देखा जाए तो बिहार विधानसभा में आरजेडी (RJD) सबसे बड़ी पार्टी है। उन्‍होंने 2020 के विधानसभा चुनाव में काफी मेहनत की थी। चुनाव प्रचार हो या लोगों से जुड़े मुद्दे दोनों फ्रंट पर शानदार काम किया। पिता लालू प्रसाद यादव के पुराने राजनीतिक सिद्धांतों से इतर अपने नए सिद्धांत गढ़े। उन्होंने बिहार में जातीय राजनीति को भी साधने की कोशिश की। एक तरफ जहां उनके पिता लालू प्रसाद यादव ‘भूराबाल’ साफ करो की बात कर बिहार की प्रमुख सवर्ण जातियों को नाराज किए हुए थे। वहीं, तेजस्वी ने अपनी पार्टी को केवल मुस्लिमों और यादवों की पार्टी वाली छवि से बाहर निकालने की कोशिश की। उन्होंने A to Z का नारा दिया और सबके साथ की बात की। लोगों ने भी उन्हें वोट किया। माना जा रहा है अगर नीतीश कुमार केंद्र की राजनीति में शामिल होते हैं। जैसा कि अनुमान लगाया जा रहा है तो तेजस्वी यादव बिहार के मुख्‍यमंत्री बनने की संभावना है।

अवसर: अब तेजस्वी यादव के सामने एक मौका है कि वो लालू राज के जंगलराज की छवि को धोने का प्रयास करें। यादवों की पार्टी, हुडदंग, गुंडई और जाति विशेष के उत्‍पात पर आंखें मूंदे रहने वाली पुरानी छवि को बदलें। उन्हें बिहार में रोजगार, विकास और बेहतर कानून-व्यवस्था के साथ पार्टी की धारणा बदलने का मौका मिलता है।

चुनौतियां: पार्टी मुस्लिम-यादव समर्थन आधार पर निर्भर है और चुनौती इस गठबंधन के साथ वो अन्य जातियों को कैसे साधते हैं।

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भाजपा : मजबूती से डरा सहयोगी
अपने मतदाताओं के छूटने, वोटरों के खिसकने की वजह से नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू लगातार पिछड़ रही है। अब नतीजा ये है कि जहां बीजेपी कभी जेडीयू की पिछलग्‍गू कही जाती थी। नीतीश कुमार के मतदाताओं के हाशिए पर जाने के कारण उन्‍हें आज बीजेपी से दामन छुड़ाकर जेडीयू के साथ जाकर अपनी मजबूती का एहसास करने की जरूरत पड़ गई। जिसकी भाजपा को भी उम्मीद नहीं थी। बीजेपी कभी पीलर राइडर हुआ करती थी, लेकिन 2019 और 2020 में चीजें बदल गईं। अब बीजेपी बिहार में बड़े पार्टनर के रूप में उभरी है। जिसकी वजह से चुनावी रूप से सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी के रूप में भाजपा का उदय उसके सहयोगियों को डरा रहा है। अब जब जेडीयू ने बीजेपी का साथ छोड़ दिया है और जेडीयू-आरजेडी के साथ पूरा विपक्ष एक जुट हो गया है। बीजेपी को अब बिहार में पार्टी के लिए नया समीकरण बनाना होगा। जो केंद्रीय नेतृत्‍व पर निर्भर करेगा। लाभार्थी (कल्याणकारी योजना के लाभार्थी) राजनीति भाजपा के लिए आजमाया हुआ औजार है। पार्टी के नेता पहले से ही पीएम मोदी को गरीबों के लिए काम करने वाले नेता के रूप में पेश कर रहे हैं।

अवसर: बीजेपी के अकेले होने से लाभार्थियों और गरीबों तक पहुंचकर अपने सामाजिक आधार का विस्तार करने का अवसर बना है, जैसा कि उसने उत्तर प्रदेश में किया था। ब्रांड मोदी एक बहुत बड़ा फैक्‍टर है।

चुनौतियां : बीजेपी को एक मजबूत विपक्ष के खिलाफ खुद को मजबूत करने की जरूरत है, दूसरे पक्ष के पक्ष में जातिगत समीकरणों को साधने की जरूरत है।

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जेडीयू : तेजी से गिरता जनाधार
नीतीश कुमार फिर से बिहार मुख्यमंत्री बन गए हैं। उन्‍होंने 8वींं बार बिहार के मुख्‍यमंत्री पद की शपथ ली। लेकिन चुनाव दर चुनाव उनकी जदयू में गिरावट देखने को मिल रही है। जिसे रोकना जेडीयू मुश्किल है। भाजपा जहां मुख्य विपक्षी दल होगी। वहीं, राजद अपनी ताकत झोंकने की स्थिति में होगी। पहचान और प्रासंगिकता के लिए जदयू का संघर्ष जारी एक बार फिर से शुरू होगा। चाहे कोई भी भागीदार हो। अहम बात ये भी है कि इसके दूसरे पायदान के कई नेता नए जेडीय आरजेडी के गठबंधन से असहज हैं। खासकर वे जिन्हें पिछले विधानसभा चुनाव में राजद ने हराया है। जदयू भाजपा की तरह कैडर आधारित पार्टी नहीं है और यह जमीनी स्तर पर संगठनात्मक रूप से मजबूत नहीं है। इस स्थिति में, बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि कुमार 2024 के लिए विपक्ष का चेहरा बनते हैं या नहीं। भले ही वह कुछ राज्यों में विपक्षी खेमे को भाजपा के खिलाफ संयुक्त लड़ाई के लिए प्रेरित करने में अहम भूमिका निभाएं। वैसे नीतीश कुमार का कद राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ेगा। इसका फायदा उनकी पार्टी को भी मिलेगा।

अवसर: नीतीश कुमार सुशासन की अपनी छवि को बनाए रखते हुए देश भर में विपक्षी एकता के लिए काम कर सकते हैं।

चुनौतियां: बिहार में जेडीयू की लोकप्रियता और उसके वोटरों में लगातार गिरावट आ रही है। अब नीतीश कुमार के सामने इन्‍हें बटोरने की चुनौती होगी।

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