Bihar Politics : तो नीतीश की राजनीतिक गाड़ी कांग्रेस की चाकरी की ओर निकल पड़ी? जानिए क्यों

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Bihar Politics : तो नीतीश की राजनीतिक गाड़ी कांग्रेस की चाकरी की ओर निकल पड़ी? जानिए क्यों

Bihar Politics : तो नीतीश की राजनीतिक गाड़ी कांग्रेस की चाकरी की ओर निकल पड़ी? जानिए क्यों

रमाकांत चंदन, पटना : अब इसे राजनीति की जरूरत माने या कह लें समय का घूमता चक्र। पर इतना तो तय लग रहा है कि जिस कांग्रेस विरोध की राजनीति से अपनी राजनीति को धार दी और जिस जंगल राज के विरुद्ध नीतीश कुमार ने सत्ता हासिल की। आश्चर्य है कि समय का पहिया इस कदर घुमा कि आज वे राजद और कांग्रेस के अनुग्रही हो गए हैं। इतना ही नहीं उनकी जुबान पर वो नाम भी चढ़ने लगे हैं जो खुद उनके अनुयायियों में गाहे बेगाहे ही लिए जाते हैं।

फिरोज गांधी का स्मरण क्यूं?
सत्ता की राजनीति में जिस दिन उन्होंने भाजपा का साथ छोड़ा उनमें काफी परिवर्तन देखा गया। जंगल राज पता नहीं कब जनता राज बन गया। ठीक उसी तरह से नेहरू परिवार प्रातः स्मरणीय हो गए। यह सब यूं ही नहीं हुआ । दरअसल विपक्षी एकता के दौरान उन्हें यह लग गया कि कांग्रेस के बिना भाजपा को केंद्र की सत्ता से उतरना नामुमकिन है। हालांकि उन्होंने एनडीए से नाता तोड़ने के बाद जब पहली बार जदयू कार्यकारिणी की बैठक की तो उस बैठक के बाद पत्रकारों से बात करते यह कह बैठे कि बिना कांग्रेस और वाम के एक फ्रंट बनना असंभव है। और यही से उनकी परेशानी शुरू हुई। तेलंगाना के सीएम वन फ्रंट के बजाए थर्ड फ्रंट की बात करने लगे। दिल्ली सीएम केजरीवाल की तरफ से कुछ विशेष तव्वजो भी नहीं मिला। यहां तक कि उनके प्रवक्ताओं के भी बोल निराशाजनक थे। आप के प्रवक्ता सांसद संजय सिंह का राग ही कुछ अलग है। वो कह रहे हैं अगली लड़ाई केजरीवाल बनाम नरेंद्र मोदी हैं। उधर, राहुल अपनी यात्रा शुरू कर चुके हैं। ऐसे में विपक्षी एकता की सांस को बचाए रखने के लिए नेहरू परिवार को स्मरण करना कांग्रेस की और नजदीक आने का प्रयत्न भी हो सकता है।

लेकिन अगर व्यक्तित्व की बात करें तो फिरोज गांधी एक बेहतर पार्लियामेंट्रीयन की रूप में सर्वदलीय स्वीकार्य नेता के रूप में जाने जाते हैं। दो बार रायबरेली से चुनाव जीत कर अपनी स्वीकार्यता बनाने वाले फिरोज गांधी को इसलिए भी जाना जाता है कि वे जनहित में अपनी सरकार पर सवाल खड़े करने से भी बाज नहीं आते। वह भी तब जब वे पंडित जवाहरलाल नेहरू के दामाद थे। अब यहां विचारणीय है कि ये बेहतर सांसद को नमन है या कांग्रेस को। बड़ी बारीक फर्क है। पर पूर्व में फिरोज गांधी के नमन का कोई वाकया याद नहीं आता।

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क्या कहती है भाजपा?
भाजपा के प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल मानते हैं कि नीतीश कुमार को सम्पूर्ण विपक्ष खास कर समाजवादी नेता, यहां तक कि ममता, केसी राव और केजरीवाल पर भरोसा नहीं रहा हो। इसलिए कांग्रेस की शरण में जाने की तैयारी कर चुके हैं। शरणागत होना नीतीश कुमार की राजनीति का हिस्सा हो गया है, इसलिए पहले लालू प्रसाद के यहां शरणागत हुए और अब नेहरू परिवार के आगे। हालांकि भाजपा के पूर्व प्रदेश महासचिव और भूमिहार-ब्राह्मण फ्रंट के कार्यकारी अध्यक्ष सुधीर शर्मा इसे राजनीति से नहीं जोड़कर व्यवहार से जोड़ते हैं। फिरोज गांधी को याद करना एक बेहतर सांसद को याद करना है। अल्पायु रहे फिरोज गांधी ने रायबरेली से जनता का विश्वास जीतने का काम किया। इसलिए भी उन्हें दूसरी बार रायबरेली की जनता ने उन्हें लोकसभा भेजा।

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कांग्रेस क्या समझ रही है?
कांग्रेस नेता और प्रवक्ता राजेश राठौर ने नीतीश कुमार की ओर से कांग्रेसी नेता फिरोज गांधी को याद करने को एक अच्छी पहल मानते हैं। फिरोज गांधी स्वतंत्रता सेनानी रहे हैं। बेहतर सांसद भी रहे हैं। व्यक्ति के रूप में तो किसी को भी याद किया जाना चाहिए, चाहे वो किसी दल का हो। विचार तो पार्टी और गंठबंधन के साथ है। ये पूछे जाने पर कि पहले कोई वाकया याद नही है? इस पर राठौर कहते हैं कि जब जागे तभी सवेरा।

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