Bihar Caste Survey पर रोक लगाई तो कैसे तय होगा आरक्षण, Supreme Court के फैसले की बड़ी बातें
क्या था याचिका में
बिहार में 7 जनवरी से शुरू हुई जातीय जनगणना के खिलाफ नीतीश कुमार के गृह जिले नालंदा के अखिलेश कुमार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। दायर याचिका में कहा गया कि जातीय जनगणना संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है। इसके अलावा इसकी अधिसूचना भेदभाव पूर्ण होने के साथ असंवैधानिक भी है। दायर याचिका में यह भी मांग की गई कि चल रहे जातीय जनगणना के कार्य को रद्द किया जाए क्योंकि, यह नोटिफिकेशन संविधान की धारा 14 का उल्लंघन करती है।
पहली बार ऐसी जनगणना नहीं
जातिगत जनगणना पहली बार नहीं हो रही है। यूपीए सरकार ने 2011 में जातिगत जनगणना की थी, लेकिन 2014-15 में आंकड़े आने के बाद इसे जारी नहीं किया गया। तकनीकी खामियों का हवाला दिया गया। इसके बाद 2017 में OBC के बीच नए सिरे से वर्गीकरण करने के लिए केंद्र सरकार ने रोहिणी कमिशन बनाई, जिसे तब 6 महीने के अंदर रिपोर्ट देने को कहा गया था। हालांकि, अब तक यह ठंडे बस्ते में है। जातिगत जनगणना के साथ अब उस रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की मांग तेज हो सकती है।
क्या है मांग
अगड़े गरीबों को आरक्षण देने के बाद से OBC के अंदर इस मसले पर अलग तरीके से विरोध के साथ मौका भी दिख रहा है। वे आबादी के प्रतिनिधित्व के हिसाब से आरक्षण को नए सिरे से तय करने की मांग कर रहे हैं। उनका तर्क है कि जिस तरीके से अगड़ों के लिए उनका कोटा 10 फीसदी तय किया गया उसी हिसाब से अब उनके कोटे को भी बढ़ाया जाए। देश में सबसे अधिक तादाद OBC की ही है। सवर्ण आरक्षण के बाद इनके कोटे को 27 फीसदी से बढ़ाकर 54 फीसदी करने की मांग उठने लगी। जातिगत जनगणना को सार्वजनिक कर उसी हिसाब से हर जाति को उसके हिसाब से आरक्षण देने की मांग की जा रही है।
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केंद्र को हो सकती है परेशानी
2024 आम चुनाव से पहले इस मुद्दे के उठने के बाद केंद्र सरकार को अब इस मांग पर जवाब देने में परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। देश में OBC सबसे बड़े वोट बैंक माने जाते हैं। ऐसे में इनकी मांगों को नजरअंदाज करना किसी भी दल के लिए आसान नहीं होता है। इसमें विपक्ष को मौका भी दिख रहा है। बिहार में शुरू हुई जातिगत जनगणना इस राजनीति को और हंगामेदार बनाने में मदद करेगी।