Bibek Debroy News: PM मोदी के थिंक टैंक ने बैठे बिठाए लालू यादव को थमाया हथियार, ब्रह्मास्त्र बनाकर 2024 में BJP पर करेंगे वार!
पटना: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आर्थिक सलाहकार बिबेक देबरॉय राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के निशाने पर आ गए हैं। लालू यादव ने ट्वीट कर कहा है कि प्रधानमंत्री मोदी का कोई आर्थिक सलाहकार है बिबेक देबरॉय। वह बाबा साहेब के संविधान की जगह नया संविधान बनाने की वकालत कर रहे हैं। क्या प्रधानमंत्री की मर्ज़ी से यह सब कहा और लिखा जा रहा है? संवैधानिक संस्थाओं को समाप्त करने पर तुली मोदी सरकार अब संविधान पर हमला कर सीधा संविधान ही समाप्त करने की बात कहने लगी है।’ इसके अलावा जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह ऊर्फ ललन सिंह ने कहा है कि इस तरह के विचारों को देश कभी भी स्वीकार नहीं करेगा।
क्या कहा है बिबेक देबरॉय
बिबेक देबरॉय का द मिंट में एक आर्टिकल प्रकाशित हुआ है। इस आर्टिकल में लिखा कि मौजूदा संविधान काफी हद तक 1935 के भारत सरकार अधिनियम पर बेस्ड है। संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिए एक आयोग का गठन हुआ था, 2022 में इसकी रिपोर्ट आई थी, लेकिन यह आधा-अधूरा प्रयास था। कानून में सुधार के कई पहलुओं पर काम करने की जरूरत है। कुछ संशोधनों से काम नहीं चलेगा। हमें ड्राइंग बोर्ड पर वापस जाना चाहिए और पहले सिद्धांतों से शुरू करना चाहिए, यह पूछना चाहिए कि प्रस्तावना में समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक, न्याय, स्वतंत्रता और समानता जैसे शब्दों का अब क्या मतलब है। हम लोगों को, खुद को एक नया संविधान देना होगा। उन्होंने आगे लिखा है कि हमें पहले सिद्धांतों से शुरुआत करनी चाहिए जैसा कि संविधान सभा की बहस में हुआ था। 2047 के लिए भारत को किस संविधान की जरूरत है?
देबरॉय ने एक स्टडी को आधार बनाते हुए कहा कि लिखित संविधान का जीवनकाल केवल 17 साल होता है। भारत का मौजूदा संविधान औपनिवेशिक विरासत है। हमारा वर्तमान संविधान कहीं ना कहीं1935 के भारत सरकार अधिनियम पर आधारित है। इससे साफ है कि यह केवल औपनिवेशिक विरासत है।
बिबेक देबरॉय के लेख पर राजनीतिक बयानबाजी शुरू होते ही प्रधानमंत्री पैनल ईएएसी-पीएम ने इस पूरे मसले पर सफाई दी है। सोशल मीडिया पर स्पष्टीकरण देते हुए लिखा, ‘डॉ. बिबेक देबरॉय का हालिया लेख उनकी व्यक्तिगत राय थी, वह किसी भी तरह से ईएएसी-पीएम या भारत सरकार के विचारों को नहीं दर्शात।’ ईएएसी-पीएम भारत सरकार, खासकर प्रधानमंत्री को आर्थिक मुद्दों पर सलाह देने के लिए गठित की गई बॉडी है।
बिबेक देबरॉय ने थमाया लालू-ललन को मुद्दा!
लालू प्रसाद यादव और ललन सिंह का बयान सामने आने के बाद लोग बिबेक देबरॉय के बारे में जानने समझने की कोशिश कर रहे हैं। यह भी चर्चा शुरू हो गई है कि 2015 के विधानसभा चुनाव से पहले आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण की समीक्षा करने की बात कही थी, जिसके बाद लालू यादव ने पूरे चुनाव में प्रचारित किया था कि बीजेपी और आरएसएस आरक्षण को खत्म करना चाहती है। अब लालू यादव बिबेक देबरॉय के संविधान बदलने की बात को 2024 के लोकसभा चुनाव में जोरशोर से उठा सकते हैं। इसी बहाने वह बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी घेर सकते हैं। लालू यादव समेत तमाम समाजवादी नेता पिछले 7-8 साल से आरोप लगा रहे हैं कि बीजेपी संविधान को अपने हिसाब से बदलना चाहती है। विपक्षी यह भी आरोप लगाते हैं कि भारत का संविधान खतरे में है। बीजेपी आरएसएस की विचारधारा से प्रेरित संविधान देश में लागू करना चाहती है। अब पीएम मोदी के थिंक टैंक बिबेक देबरॉय का यह बयान सामने आने के बाद मामला और भी गरम हो गया है। बिबेक देबरॉय का यह आर्टिकल सामने आने के बाद लोग जानना चाह रहे हैं आखिर वह कौन हैं और वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इतने करीबी ऑफिसर कैसे हैं।
कौन हैं बिबेक देबरॉय
- बिबेक देबरॉय भारत के जाने माने अर्थशास्त्री हैं, फिलहाल वह भारत के प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष के रूप में कार्यरत हैं।
- बिबेक वित्त मंत्रालय की ‘अमृत काल’ के बुनियादी ढांचे के लिए बनाई गई विशेषज्ञ समिति के अध्यक्ष भी हैं।
- बिबेक देबरॉय की हाल ही में सह-लिखित महान कृति, इंक्ड इन इंडिया, भारत में मान्यता प्राप्त फाउंटेन पेन, निब और स्याही निर्माताओं की संपूर्णता पर कब्जा करने वाले प्रमुख व्यापक प्रलेखन के रूप में प्रतिष्ठित है।
- बिबेक मीडिया से भी जुड़े हैं, वह संसद टीवी पर एक शो भी होस्ट करते हैं।
- साल 2015 में बनी नीति आयोग में शुरुआत से ही बिबेक को जोड़ा गया। वह 2019 तक इसमें थिंक टैंक की भूमिका निभाते रहे।
- 2015 में उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया गया था। 2016 में उन्हें यूएस-इंडिया बिजनेस समिट की ओर से लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया था। उन्हें ऑस्ट्रेलिया इंडिया चैंबर ऑफ कॉमर्स की ओर से लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है।
- बिबेक देबरॉय मूलरूप से मेघायल के रहने वाले हैं। 25 जनवरी 1955 को जन्में देबरॉय के दादा-दादी 1948 में सिलहट से चले गए थे, जो अब बांग्लादेश में है। हालांकि उनके पिता भारतीय लेखा परीक्षा और लेखा सेवा में शामिल हो गए।
- बिबेक देबरॉय की स्कूली शिक्षा नरेंद्रपुर के रामकृष्ण मिशन स्कूल में हुई। उन्होंने कोलकाता प्रेसीडेंसी कॉलेज और दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से उच्च शिक्षा की डिग्री हासिल की।
- देबरॉय ट्रिनिटी कॉलेज की छात्रवृत्ति पर कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय गए, जहां उनकी मुलाकात प्रसिद्ध ब्रिटिश अर्थशास्त्री फ्रैंक हैन से हुई। उन्हीं की निगरानी में देबरॉय ने अपना रिसर्च पूरा किया।
- भारत लौटने के बाद बिबेक देबरॉय ने राजीव गांधी समकालीन अध्ययन संस्थान के निदेशक, वित्त मंत्रालय (भारत सरकार) के आर्थिक मामलों के विभाग के सलाहकार, पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के महासचिव और भारत में कानूनी सुधारों की जांच के लिए वित्त मंत्रालय और यूएनडीपी की ओर से स्थापित परियोजना एलएआरजीई (लीगल एडजस्टमेंट्स एंड रिफॉर्म्स फॉर ग्लोबलाइजिंग द इकोनॉमी) के निदेशक जैसे पदों पर रहे।
- दिसंबर 2006 और जुलाई 2007 के बीच वह गरीबों के कानूनी सशक्तिकरण आयोग में भी कार्य किया। वह राजस्थान में मुख्यमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य रहे हैं। इसके अलावा झारखंड के मुख्यमंत्री की ओर से राज्य के लिए एक विकास योजना की सिफारिश करने के लिए गठित समिति के अध्यक्ष भी रहे।
- 2014 से 2015 तक वह भारतीय रेलवे के पुनर्गठन के लिए रेल मंत्रालय की ओर से गठित उच्चाधिकार प्राप्त समिति के अध्यक्ष रहे।
- देबरॉय कोलकाता प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रोफेसर भी रह चुके हैं।
- सितंबर 2018 से सितंबर 2022 तक भारतीय सांख्यिकी संस्थान के अध्यक्ष। सितंबर 2022 में उन्हें पुणे के डेक्कन कॉलेज स्नातकोत्तर और अनुसंधान संस्थान का कुलाधिपति नियुक्त किया गया था।
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क्या कहा है बिबेक देबरॉय
बिबेक देबरॉय का द मिंट में एक आर्टिकल प्रकाशित हुआ है। इस आर्टिकल में लिखा कि मौजूदा संविधान काफी हद तक 1935 के भारत सरकार अधिनियम पर बेस्ड है। संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिए एक आयोग का गठन हुआ था, 2022 में इसकी रिपोर्ट आई थी, लेकिन यह आधा-अधूरा प्रयास था। कानून में सुधार के कई पहलुओं पर काम करने की जरूरत है। कुछ संशोधनों से काम नहीं चलेगा। हमें ड्राइंग बोर्ड पर वापस जाना चाहिए और पहले सिद्धांतों से शुरू करना चाहिए, यह पूछना चाहिए कि प्रस्तावना में समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक, न्याय, स्वतंत्रता और समानता जैसे शब्दों का अब क्या मतलब है। हम लोगों को, खुद को एक नया संविधान देना होगा। उन्होंने आगे लिखा है कि हमें पहले सिद्धांतों से शुरुआत करनी चाहिए जैसा कि संविधान सभा की बहस में हुआ था। 2047 के लिए भारत को किस संविधान की जरूरत है?
देबरॉय ने एक स्टडी को आधार बनाते हुए कहा कि लिखित संविधान का जीवनकाल केवल 17 साल होता है। भारत का मौजूदा संविधान औपनिवेशिक विरासत है। हमारा वर्तमान संविधान कहीं ना कहीं1935 के भारत सरकार अधिनियम पर आधारित है। इससे साफ है कि यह केवल औपनिवेशिक विरासत है।
बिबेक देबरॉय के लेख पर राजनीतिक बयानबाजी शुरू होते ही प्रधानमंत्री पैनल ईएएसी-पीएम ने इस पूरे मसले पर सफाई दी है। सोशल मीडिया पर स्पष्टीकरण देते हुए लिखा, ‘डॉ. बिबेक देबरॉय का हालिया लेख उनकी व्यक्तिगत राय थी, वह किसी भी तरह से ईएएसी-पीएम या भारत सरकार के विचारों को नहीं दर्शात।’ ईएएसी-पीएम भारत सरकार, खासकर प्रधानमंत्री को आर्थिक मुद्दों पर सलाह देने के लिए गठित की गई बॉडी है।
बिबेक देबरॉय ने थमाया लालू-ललन को मुद्दा!
लालू प्रसाद यादव और ललन सिंह का बयान सामने आने के बाद लोग बिबेक देबरॉय के बारे में जानने समझने की कोशिश कर रहे हैं। यह भी चर्चा शुरू हो गई है कि 2015 के विधानसभा चुनाव से पहले आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण की समीक्षा करने की बात कही थी, जिसके बाद लालू यादव ने पूरे चुनाव में प्रचारित किया था कि बीजेपी और आरएसएस आरक्षण को खत्म करना चाहती है। अब लालू यादव बिबेक देबरॉय के संविधान बदलने की बात को 2024 के लोकसभा चुनाव में जोरशोर से उठा सकते हैं। इसी बहाने वह बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी घेर सकते हैं। लालू यादव समेत तमाम समाजवादी नेता पिछले 7-8 साल से आरोप लगा रहे हैं कि बीजेपी संविधान को अपने हिसाब से बदलना चाहती है। विपक्षी यह भी आरोप लगाते हैं कि भारत का संविधान खतरे में है। बीजेपी आरएसएस की विचारधारा से प्रेरित संविधान देश में लागू करना चाहती है। अब पीएम मोदी के थिंक टैंक बिबेक देबरॉय का यह बयान सामने आने के बाद मामला और भी गरम हो गया है। बिबेक देबरॉय का यह आर्टिकल सामने आने के बाद लोग जानना चाह रहे हैं आखिर वह कौन हैं और वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इतने करीबी ऑफिसर कैसे हैं।
कौन हैं बिबेक देबरॉय
- बिबेक देबरॉय भारत के जाने माने अर्थशास्त्री हैं, फिलहाल वह भारत के प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष के रूप में कार्यरत हैं।
- बिबेक वित्त मंत्रालय की ‘अमृत काल’ के बुनियादी ढांचे के लिए बनाई गई विशेषज्ञ समिति के अध्यक्ष भी हैं।
- बिबेक देबरॉय की हाल ही में सह-लिखित महान कृति, इंक्ड इन इंडिया, भारत में मान्यता प्राप्त फाउंटेन पेन, निब और स्याही निर्माताओं की संपूर्णता पर कब्जा करने वाले प्रमुख व्यापक प्रलेखन के रूप में प्रतिष्ठित है।
- बिबेक मीडिया से भी जुड़े हैं, वह संसद टीवी पर एक शो भी होस्ट करते हैं।
- साल 2015 में बनी नीति आयोग में शुरुआत से ही बिबेक को जोड़ा गया। वह 2019 तक इसमें थिंक टैंक की भूमिका निभाते रहे।
- 2015 में उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया गया था। 2016 में उन्हें यूएस-इंडिया बिजनेस समिट की ओर से लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया था। उन्हें ऑस्ट्रेलिया इंडिया चैंबर ऑफ कॉमर्स की ओर से लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है।
- बिबेक देबरॉय मूलरूप से मेघायल के रहने वाले हैं। 25 जनवरी 1955 को जन्में देबरॉय के दादा-दादी 1948 में सिलहट से चले गए थे, जो अब बांग्लादेश में है। हालांकि उनके पिता भारतीय लेखा परीक्षा और लेखा सेवा में शामिल हो गए।
- बिबेक देबरॉय की स्कूली शिक्षा नरेंद्रपुर के रामकृष्ण मिशन स्कूल में हुई। उन्होंने कोलकाता प्रेसीडेंसी कॉलेज और दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से उच्च शिक्षा की डिग्री हासिल की।
- देबरॉय ट्रिनिटी कॉलेज की छात्रवृत्ति पर कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय गए, जहां उनकी मुलाकात प्रसिद्ध ब्रिटिश अर्थशास्त्री फ्रैंक हैन से हुई। उन्हीं की निगरानी में देबरॉय ने अपना रिसर्च पूरा किया।
- भारत लौटने के बाद बिबेक देबरॉय ने राजीव गांधी समकालीन अध्ययन संस्थान के निदेशक, वित्त मंत्रालय (भारत सरकार) के आर्थिक मामलों के विभाग के सलाहकार, पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के महासचिव और भारत में कानूनी सुधारों की जांच के लिए वित्त मंत्रालय और यूएनडीपी की ओर से स्थापित परियोजना एलएआरजीई (लीगल एडजस्टमेंट्स एंड रिफॉर्म्स फॉर ग्लोबलाइजिंग द इकोनॉमी) के निदेशक जैसे पदों पर रहे।
- दिसंबर 2006 और जुलाई 2007 के बीच वह गरीबों के कानूनी सशक्तिकरण आयोग में भी कार्य किया। वह राजस्थान में मुख्यमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य रहे हैं। इसके अलावा झारखंड के मुख्यमंत्री की ओर से राज्य के लिए एक विकास योजना की सिफारिश करने के लिए गठित समिति के अध्यक्ष भी रहे।
- 2014 से 2015 तक वह भारतीय रेलवे के पुनर्गठन के लिए रेल मंत्रालय की ओर से गठित उच्चाधिकार प्राप्त समिति के अध्यक्ष रहे।
- देबरॉय कोलकाता प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रोफेसर भी रह चुके हैं।
- सितंबर 2018 से सितंबर 2022 तक भारतीय सांख्यिकी संस्थान के अध्यक्ष। सितंबर 2022 में उन्हें पुणे के डेक्कन कॉलेज स्नातकोत्तर और अनुसंधान संस्थान का कुलाधिपति नियुक्त किया गया था।