Bhopal: रेलवे ने हमें लूप-लाइन में डाल दिया… तीन दिन से खुले आसमान के नीचे रह रहे आरिफ नगर के लोग

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Bhopal: रेलवे ने हमें लूप-लाइन में डाल दिया… तीन दिन से खुले आसमान के नीचे रह रहे आरिफ नगर के लोग

Bhopal: रेलवे ने हमें लूप-लाइन में डाल दिया… तीन दिन से खुले आसमान के नीचे रह रहे आरिफ नगर के लोग

भोपाल: रेलवे लाइन विस्तार के लिए ट्रैक (Bhopal railway track slums) के किनारे बसे झुग्गियों को हटाया जा रहा है। भोपाल के आरिफ नगर में 347 झुग्गियों को बुलडोजर से तोड़ दिया गया है। इसके तीन दिन बाद किसी परिवार के सिर पर छत नहीं है। झुग्गियों को तोड़े जाने के बाद रेलवे की तरफ से कहा गया है कि ये झुग्गियां 759 मीटर लूप-लाइन के विकास में रोड़ा थीं। स्थानीय प्रशासन को रेलवे ने मार्च 2022 में इसके लिए सूचित किया था। स्थानीय प्रशासन के पास इनके पुनर्वास की व्यवस्था के लिए 10 महीने का वक्त था। सैकड़ों परिवार बेघर होने के बाद 72 घंटे से खुले आसमान के नीचे हैं।


सोमवार को अपने दशकों पुराने घर को ढहते देखकर इनका दिल टूट गया। मंगलवार की रात बारिश के साथ कड़ाके की ठंड आ गई। परिवार के सात सदस्यों के साथ खुले आसमान के नीचे रह रहे 48 वर्षीय मोहम्मद रफीक ने कहा कि लूप-लाइन के लिए, हम सब को लूप-लाइन में डाल दिया गया है। वहीं, दो टेबल-टेनिस टेबल के आकार की जमीन का टुकड़ा उन्हें ऑफर किया गया है, यह एमपी वक्त बोर्ड के स्वामित्व वाली है। इसके साथ ही कई अन्य लोगों की तरह उनके पास भी चार इंच की बिना सील वाली हस्तलिखित पर्ची है, जिसमें नाम, मोबाइल नंबर और एक स्क्रॉल नंबर लिखा है। कागज यह टुकड़ा अनुमोदन की मुहर से अधिक मूल्यवान है।

गोविंदपुरा इलाके के तहसीलदार ने कहा कि लगभग 260 परिवारों की पहचान की गई है। वहीं, कुछ हिस्सा बैरागढ़ क्षेत्राधिकार में आता है। संपर्क करने पर एसडीएम बैरागढ़ ने कोई जवाब नहीं दिया। स्थानीय राजनेताओं ने अनुसार, पुनवार्सित किए जाने वाले परिवारों की संख्या 600 है।

काम करने में नहीं हैं सक्षम
वहीं, आरिफ नगर के लोगों पर दोहरी मार पड़ी है। ज्यादातर महिलाएं और पुरुष काम पर नहीं जा रहे हैं। उन्हें इंतजार है कि जगह और घर मिले। वहीं, जिनके घर तोड़े गए हैं, उनमें ज्यादातर दिहाड़ी मजदूर है। घर तोड़े जाने से पहले मजदूरों ने अपनी बकरी और अन्य जानवरों को बेच दिया। अब समस्या है कि रात में उनके घर का चूल्हा कैसे जले। साथ ही कड़ाके की सर्दी का सामना कर रहे हैं।

खुले में रह रही है गैस पीड़ित की विधवा
वहीं, 52 साल की नसरीन ने कहा कि मुझे अतिक्रमण हटाए जाने के बाद जमीन का एक टुकड़ा मिला है। मेरे दो बेटे दो दिन बाद काम पर गए हैं। उनकी पत्नियां दूसरी जगह पर हैं। वह खुले आसमान के नीचे बैठी हैं। उन्होंने कहा कि मैं दिन-रात यही बैठी रहती हूं। वह जमीन पर चटाई बिछाकर बैठी हैं। उन्होंने कहा कि जो घेरा बना है, उसे मैं ढकने में सक्षम नहीं हूं। एंट्री अभी खुला है। टॉयलेट की भी व्यवस्था नहीं है।

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