Bhairon Singh Shekhawat कैसे बने ‘बाबोसा’, जानें किसान के बेटे से देश के उपराष्ट्रपति बनने तक का सफर | Bhairon Singh Shekhawat Death Anniversary Special Story, Babosa’s Biography | News 4 Social

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Bhairon Singh Shekhawat कैसे बने ‘बाबोसा’, जानें किसान के बेटे से देश के उपराष्ट्रपति बनने तक का सफर | Bhairon Singh Shekhawat Death Anniversary Special Story, Babosa’s Biography | News 4 Social

Bhairon Singh Shekhawat कैसे बने ‘बाबोसा’, जानें किसान के बेटे से देश के उपराष्ट्रपति बनने तक का सफर | Bhairon Singh Shekhawat Death Anniversary Special Story, Babosa’s Biography | News 4 Social

Bhairon Singh Shekhawat Death Anniversary: राजनीति के दबंग नेता माने जाने वाले देश के पूर्व उपराष्ट्रपति (2002-2007) और प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे भैरोंसिंह शेखावत यानि ‘बाबोसा’ स्वभाव से मिलनसार थे। उनका 15 मई 2010 को निधन हो गया था।

Remembering ‘Babosa’: राजनीति के दबंग नेता माने जाने वाले देश के पूर्व उपराष्ट्रपति (2002-2007) और प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे भैरोंसिंह शेखावत यानि ‘बाबोसा’ स्वभाव से मिलनसार थे। उनका 15 मई 2010 को निधन हो गया था। ‘बाबोसा’ की पुण्यतिथि पर सोशल मीडिया पर भैरोसिंह शेखावत और बाबोसा ट्रेंड कर रहा है। राजस्थान की सियासत के इतिहास की जब भी बात हो और ‘बाबोसा’ का ज़िक्र नहीं आए ये कभी नहीं हो सकता। ‘बाबोसा’ या ‘ठाकर साहब’ के नाम से अपनी अलग ही पैठ बनाने वाले पूर्व उपराष्ट्रपति दिवंगत भैरो सिंह शेखावत जनसंघ से लेकर भाजपा तक के सफर में उन दिग्गज नेताओं की फहरिस्त में शामिल हैं जिनकी भूमिका को शायद ही नज़रअंदाज़ किया जा सके।

23 अक्टूबर 1923 को तत्कालिक जयपुर रियासत के गांव खाचरियावास (अब सीकर ज़िला) में जन्मे भैरो सिंह शेखावत ने किशोरावस्था से लेकर राजनितिक करियर में हर तरह के उतार-चढ़ाव को महसूस किया। लेकिन, जीवन की अड़चनों को चुनौती समझकर उनसे पर पाना भी उनकी एक अद्भुत कला ही मानी जाती है। यही वजह है कि उन्होंने सफल और दिग्गज राजनेता की पहचान पाई।

पिता देवी सिंह शेखावत और मां बन्ने कंवर की यह संतान राजस्थान ही नहीं बल्कि हिंदुस्तान की राजनीति में पहचान बनाएगी ये शायद ही किसी ने सोचा होगा। गांव की पाठशाला में अक्षर-ज्ञान प्राप्त किया। हाई-स्कूल की शिक्षा गांव से 30 किलोमीटर दूर जोबनेर से प्राप्त की, जहां पढ़ने के लिए उन्हें पैदल जाना पड़ता था। फिर जयपुर के महाराजा कॉलेज में दाखिला लिया ही था कि पिता का देहांत हो गया। पारिवारिक स्थितियों के चलते उन्हें अपने हाथों में हल उठाना पड़ा। हालांकि इसके बाद पुलिस की नौकरी भी की, लेकिन उसमें मन नहीं लगा और त्यागपत्र देकर वापस खेती करने लगे।

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राजस्थान में वर्ष 1952 में विधानसभा की स्थापना हुई तो शेखावत ने भी भाग्य आजमाया और विधायक बन गए। फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखा तथा सीढ़ी-दर-सीढ़ी चढ़ते हुए विपक्ष के नेता, मुख्यमंत्री और उपराष्ट्रपति पद तक पहुंच गए।

आखिरकार इस लंबे जीवन सफर का अंत 15 मई 2010 को जयपुर के सवाई मानसिंह अस्पताल में हो गया। कैंसर और उम्र से संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं के आगे उनके शरीर ने घुटने टेक दिए। उनकी शवयात्रा में हजारों लोगों का जनसैलाब उमड़ पड़ा। इस ‘ऐतिहासिक’ विदाई पर बाबोसा की धरातल के हर वर्ग से जुड़ाव को साफ़ देखा गया।

राजनीति में ‘बाबोसा’
भैरों सिंह शेखावत ने 1952 में राजनीति में प्रवेश किया। 1952 से 1972 तक वह राजस्थान विधानसभा के सदस्य रहे। 1967 के चुनाव में भारतीय जनसंघ और सहयोगी स्वतंत्र पार्टी बहुमत के नजदीक तो आई लेकिन सरकार नहीं बना सकी। 1974 से 1977 तक उन्होंने राज्यसभा सदस्य के तौर पर अपनी सेवाएं दीं। 1977 से 2002 वह राजस्थान विधानसभा के सदस्य रहे। 1977 में 200 में से 151 सीटों पर कब्जा करके उनकी पार्टी ने चुनाव में जीत दर्ज की और वह राजस्थान के मुख्यमंत्री बने। उन्होंने 1980 तक अपनी सेवाएं दीं। 1980 में भारतीय जनसंघ और स्वतंत्र पार्टी के विघटन के बाद वह बीजेपी में शामिल हो गए और 1990 तक नेता प्रतिपक्ष की भूमिका निभाई।

1984 में इंदिरा गांधी के शासनकाल में बीजेपी चुनाव हार गई। इसके बाद 1989 के चुनाव में बीजेपी-जनता दल गठबंधन ने लोकसभा में 24 सीटें जीतीं और राजस्थान विधानसभा चुनाव में 140 सीटों पर कब्जा किया। 1990 में भैरों सिंह शेखावत फिर से राजस्थान के मुख्यमंत्री बने और 1992 तक पद पर बने रहे। उनके नेतृत्व में बीजेपी ने अगले चुनाव में 95 सीटें जीतीं। इस प्रकार स्वतंत्र समर्थकों के सहयोग से वह सरकार बनाने में सक्षम हो गए लेकिन कांग्रेस इसके विरोध में थी। 1993 में लगातार तीसरी बार वह राजस्थान के मुख्यमंत्री बने और पांच साल तक रहे। 1998 में वह प्याज की बढ़ती कीमतों जैसे मुद्दों के कारण चुनाव हार गए। इसके बाद 1999 में बीजेपी ने लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज की। इस बार बीजेपी को राजस्थान में 25 में से 16 लोकसभा सीटों पर जीत मिली।

वर्ष 2002 में भैरों सिंह शेखावत सुशील कुमार शिंदे को हराकर देश के उपराष्ट्रपति चुने गए। विपक्षी दल को 750 में से 149 मत मिले। जुलाई 2007 में उन्होंने नेशनल डेमोक्रेटिक अलाइंस के समर्थन से निर्दलीय राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ा, लेकिन दुर्भाग्यवश वह चुनाव हार गए और प्रतिभा पाटिल चुनाव जीतीं और देश की राष्ट्रपति बनीं। इसके बाद भैरों सिंह शेखावत ने 21 जुलाई 2007 को उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया।

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नहीं भुलाया जा सकता महत्वपूर्ण योगदान
भैरों सिंह शेखावत ने राजस्थान के मुख्यमंत्री के तौर पर प्रदेश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने शिक्षा, बालिकाओं के उत्थान व उनका कल्याण, अनुसूचित जाति, जनजाति, अल्पसंख्यक, पिछड़ा वर्ग और शारीरिक विकलांग लोगों की स्थिति में सुधार पर बल दिया। उनका मुख्य उद्देश्य गरीबों तक अधिकारों का लाभ पहुंचाना था। उन्होंने लोगों को परिवार नियोजन और जनसंख्या विस्फोट का राज्य के विकास पर पड़ने वाले दुष्परिणामों के बारे में जागरूक किया। लोगों की आर्थिक मदद के लिए उन्होंने नई निवेश नीतियां शुरू की, जिनमें उद्योगों का विकास, खनन, सड़क और पर्यटन शामिल है। उन्होंने हेरिटेज होटल और ग्रामीण पर्यटन जैसे योजनाओं को लागू करने का सिद्धांत दिया, जिससे राजस्थान के पर्यटन क्षेत्र में वृद्धि हुई। इस प्रकार उनके कार्यकाल के दौरान राजस्थान की अर्थव्यवस्था और वित्तीय स्थिति बेहतर रही। राजपूत समाज से अलग हटकर भैरोसिंह जी ने जमीदारी उन्मूलन का समर्थन किया और रूपकँवर सती मामले में भी राजपूतो की नाराजगी के बावजूद सती प्रथा की निंदा भी की।

पुरस्कार और सम्मान
भैरों सिंह शेखावत को उनकी कई उपलब्धियों और विलक्षण गुणों के चलते आंध्रा विश्वविद्यालय विशाखापट्टनम, महात्मागांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी, और मोहनलाल सुखाडि़या विश्वविद्यालय, उदयपु,र ने डीलिट की उपाधि प्रदान की। एशियाटिक सोसायटी ऑफ मुंबई ने उन्हें फैलोशिप से सम्मानित किया तथा येरेवन स्टेट मेडिकल यूनिवर्सिटी अर्मेनिया द्वारा उन्हें गोल्ड मेडल के साथ मेडिसिन डिग्री की डॉक्टरेट उपाधि प्रदान की गई।

रोचक पहलू
बीजेपी के संस्थापक सदस्यों में रहे भैरोसिंह जी की स्वीकार्यता सभी दलो में दलगत राजनीति से ऊपर उठकर थी। उपराष्ट्रपति के चुनाव में उनके विरुद्ध दलित नेता सुशील कुमार शिंदे को इस उद्देश्य से खड़ा किया गया था कि वो एनडीए ख़ेमे के दलित मतों में सेंधमारी करेंगे। लेकिन जब परिणाम आया तो मालूम पड़ा कि उल्टा भैरो सिंह के पक्ष में विपक्षी दलो में भारी क्रॉस वोटिंग हुई थी। लेकिन यह भी तथ्य है कि स्वर्गीय भैरोसिंह जी के मुख्यमंत्रिकाल में ही राजस्थान में राजपूत विधायको की संख्या घटकर 16 तक आ गई थी और जाट विधायको की संख्या बढ़कर 50 तक पहुंच गई थी। उन्होंने जाटों को बीजेपी से जोड़ने का भरसक प्रयत्न किया पर सफलता नही मिली। यहां तक कि राजस्थान विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव में अपने भतीजे प्रतापसिंह खाचरियावास के विरुद्ध उन्होंने जाट छात्र नेता पूनिया को समर्थन दिया था।

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