बाबा, बाहूबली या विलेन?

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पिछले तीन दिनों से हिरयाणा और पंजाब में जो हालात हैं उसे देखते हुए बाबा गुरमीत राम रहीम के बारे में ये सवाल तो किया ही जा सकता है, क्या संत (बाबा) ऐसे होते हैं? हमारे देश में क्या साधुओं की यही परंपरा रही है? क्या वो फिल्मों में गाना गाते हैं? क्या वो ऐसे गुंडों को पालते हैं, जो सरेआम सबकुछ खत्म कर देने की धमकी दे?

आपको बता दें कि डेरा सच्चा सौदा प्रमुख बाबा गुरमीत राम रहीम की आज सीबीआई कोर्ट में पेशी है। उनके ऊपर ये आरोप है कि उन्होंने अपने आश्रम में रह रही साध्वियों का यौन-शोषण किया है। केवल यही नहीं बाबा के ऊपर और भी कई गंभीर आरोप हैं। जिसमें हत्या, बलात्कार, भक्तों को नपुंसक बना देने समेत कई आरोप हैं।

 

कैसे बढ़ती है ऐसे बाबाओं की ताकत

इनकी असली ताकत है इनकी अपार दौलत। अब सवाल ये कि इनके पास इतनी दौलत आती कहां से हैं? अगर मीडिया रिपोर्टों की बात करें तो हवाला से लेकर नेताओं के भ्रष्टाचार से एकत्रित किए खजाने को संभालने का काम ऐसे लोग करते हैं। नि:संदेह इन्हीं पैसों को ये अपना समर्थक बनाने के लिए उन लोगों में इस्तेमाल करते हैं, जिनकी कहीं ना कहीं समाज में पकड़ होती है। उनके माध्यम से ऐसे बाबा लोग बेरोजगार और भोले-भाले लोगों को इस्तेमाल करते हैं। धर्म के आढ़ में लोग इन पर विश्वास भी कर लेते हैं। हालांकि हम इस बात की कोई पुष्टि नहीं करते हैं, लेकिन सवाल तो करना ही पड़ता है ना, जब एक ऐसे व्यक्ति के लिए इतना कुछ हो रहा हो और वो व्यक्ति, जो हो ना हो कि कुछ देर में कोर्ट द्वारा अपराधी घोषित कर दिया जाए।

 

राजनीतिक सांठ-गांठ

ऐसे बाबा अपने समर्थकों के बल पर राजनीतिक सांठ-गांठ बनाने के लिए इस्तेमाल करते हैं। राजनीतिक हालात तो ऐसे हैं कि हमारे राजनीतिज्ञ तो चुनाव जीतने के लिए किसी का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। चुनाव के वक्त ऐसे बाबाओं के पास बड़े-बड़े नेताओं की भीड़ लगी रहती हैं। हर राजनीतिक दल ऐसे बाबाओं से अपना गठजोड़ करना चाहते हैं। यही नहीं चुनाव जीतने के बाद ये इन्हें संरक्षण भी देते हैं। यही कारण है कि ऐसे लोग राजनीति और धर्म के आढ़ में देश के कानून के लिए इतनी बड़ी समस्या खड़ी कर देते हैं।

 

इसलिए हमें अपने धर्म पर विश्वास करने की जरूरत है ऐसे बाबओं पर नहीं। धर्म का पालन करने के लिए उस पर विश्वास होना चाहिए ना कि ऐसे ढोंगियों आवश्यकता।