Ashoka Stambh: शेरों का गुस्सैल दिखना महज धारणा में फर्क, जानिए मूर्तिकार की राय…संसद भवन पर अशोक स्तंभ को लेकर सियासत

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Ashoka Stambh: शेरों का गुस्सैल दिखना महज धारणा में फर्क, जानिए मूर्तिकार की राय…संसद भवन पर अशोक स्तंभ को लेकर सियासत

Ashoka Stambh: शेरों का गुस्सैल दिखना महज धारणा में फर्क, जानिए मूर्तिकार की राय…संसद भवन पर अशोक स्तंभ को लेकर सियासत

मुंबई: नए संसद भवन पर लगने वाले अशोक स्तंभ (Ashoka Stambh) के शेरों को लेकर सियासत जारी है। कोई कह रहा क‍ि ये देश के प्रतीक चिन्‍ह के साथ ख‍िलवाड़ है तो किसी का तर्क है इसे बदल दिया गया है। पक्ष में तर्क दिए जा रहे क‍ि ये नए भारत की तस्‍वीर है तो ख‍िलाफ में कहा जा रहा क‍ि ये आक्रामकता दर्शा रहा। लेकिन इसे बनाने वाले मूर्तिकार सुनील देवरे का क्‍या कहना है? विवादों के बीच उनके भी अपने तर्क हैं।

नए अशोक स्तंभ की खासियत
नया अशोक स्तंभ ब्रॉन्ज यानी कि कांस्य से बना है। इसकी लंबाई 6.5 मीटर है। इसका वजन 9500 किलो, साथ ही 6500 किलो का इसका सपोर्टिंग स्ट्रक्चर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 11 जुलाई को उद्घाटन किया है। 1200 करोड़ रुपए की लागत से बन रहे नए संसद भवन का निर्माण इस साल के अंत तक या फिर 2023 की शुरुआत में पूरा हो जाएगा। आपको बता दें कि इस स्तंभ को 150 टुकड़ो में बांटकर लगाने में करीब दो महीने का वक्त लगा।

‘विस्तृत अध्ययन के बाद किया गया निर्माण’
औरंगाबाद स्थित मुंबई के जेजे स्कूल ऑफ आर्ट्स के उत्पाद के लिए मूर्तिकार ने कहा कि कांस्य की मूर्ति मूल के विस्तृत अध्ययन के बाद बनाई गई है। उन्होंने कहा कि अशोक स्तंभ पर शेरों के चित्र समानांतर दृष्टि से लिए गए हैं। यदि हम मूल संरचना को तिरछी दृष्टि से देखें, तो नीचे से, शेर गुस्से में दिखेंगे। टीओआई से खास बातचीत में अशोक स्तंभ परियोजना के ग्राफिक डिजाइनर सुनील देवरे के भाई सुशील ने कहा कि संसद के शीर्ष पर स्थापित अशोक स्तंभ मॉडल सारनाथ में मूल से लगभग 20 गुना बड़ा है। उन्होंने कहा कि पूरी मूर्ति को सही परिप्रेक्ष्य में देखने के लिए इसे आदर्श रूप से 1-2 किलोमीटर की दूरी से देखा जाना चाहिए। चेहरे के भाव अलग-अलग कोणों से नग्न आंखों से अलग महसूस हो सकते हैं, खासकर जब बड़े पैमाने पर आवर्धन होता है।

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मेरा करार टाटा प्रोजेक्ट्स लिमिटेड से, सरकार से नहीं: देवरे
नए अशोक स्तंभ को लेकर हमारे सहयोगी चैनल टाइम्स नाउ नवभारत ने मूर्तिकार सुनील देवरे से खास बातचीत की। इस दौरान जब देवरे से यह सवाल किया गया कि क्या आपका किसी प्रकार से सरकार से कोई करार है या फिर कोई सलाह इस बारे में आदान-प्रदान की गई। इस पर देवरे ने कहा कि मेरा करार इस प्रोजेक्ट को लेकर टाटा प्रोजेक्ट्स लिमिटेड के साथ है, न कि किसी प्रकार से सरकार से।

सारनाथ में स्केच बनाने के साथ की शुरुआत
अशोक स्तंभ की मूर्ति बनाने को लेकर काम की शुरुआत देवरे ने सारनाथ में स्केच बनाने के साथ की। इसके बाद टाटा प्रोजेक्ट्स लिमिटेड के साथ कई दौर की बैठकें हुईं। दरअसल टाटा प्रोजेक्ट्स लिमिटेड ही नई संसद परियोजना को क्रियान्वित कर रही है और फाइनल का एक छोटा कांस्य मॉडल तैयार कर रही है। संसद की छत पर स्थापित अंतिम मूर्तिकला पर काम शुरू करने से पहले देवरे और उनकी टीम ने मूर्तिकला का 5 फीट फाइबर मॉडल भी टीम को प्रस्तुत किया। कांस्य धातु की ढलाई के विशेषज्ञ, लक्ष्मण व्यास की देखरेख में, जयपुर में शिल्पिक फाउंड्री में कांस्य मूर्तिकला की ढलाई की गई थी।

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‘अशोक स्तंभ को तीन भागों में ढाला गया’
मूर्तिकार सुनील देवरे ने कहा कि 21 फुट ऊंचे अशोक स्तंभ को तीन भागों में ढाला गया है – शेरों का आधार और पैर, मध्य और शेर के चेहरे। इनमें से प्रत्येक को अलग-अलग कास्ट किया गया और संसद की छत पर इकट्ठा किया गया। डिजाइनरों और वास्तुकारों को भी 33 मीटर की ऊंचाई पर हवा के दबाव को ध्यान में रखना पड़ा, जहां कि मूर्तिकला स्थापित है। सुशील ने कहा कि हमें युद्ध स्तर पर काम करने के लिए कहा गया क्योंकि परियोजना को जल्द से जल्द पूरा किया जाना था। हमें इस बात का पूरा विश्वास था कि हम लगभग नौ महीने के भीतर इस काम को पूरा कर सकते हैं।

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